तमाम उतार-चढ़ाव के बाद फिर से पटरी पर लौट रही है भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में विभिन्न बैंकों द्वारा व्यापारियों, उद्योगपतियों एवं नागरिकों को वित्तीय सहायता आसानी से उपलब्ध कराने हेतु खाका तैयार किया जा चुका है। अब तो केवल इन व्यापारियों, उद्योगपतियों एवं व्यक्तियों को ही आगे आने की ज़रूरत है।
कोरोना वायरस महामारी के चलते लॉकडाउन के बाद, अनलॉक के दूसरे चरण को प्रारम्भ हुए भी एक अर्सा बीत चुका है। अतः देश में आजकल यह चर्चा ज़ोरों पर है कि क्या हम आर्थिक क्षेत्र में कोरोना वायरस की महामारी के पूर्व की स्थिति में पहुँच गए हैं अथवा नहीं। इस सम्बंध में सरकार की ओर से समय-समय पर जारी आँकड़ों एवं हाल ही में जारी गूगल की कोविड-19 मोबिलिटी रिपोर्ट पर यदि नज़र डालें तो स्पष्ट रूप से यह दृष्टिगोचर हो रहा है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते भारत की अर्थव्यवस्था अब वापस पटरी पर लौटती दिख रही है।
बिजली की खपत का स्तर कोविड-19 के पूर्व के खपत के स्तर के 90 प्रतिशत तक पहुँच चुका है। जून 2020 माह में वस्तु एवं सेवा कर (GST) का संग्रहण भी 91000 करोड़ रुपए का रहा जो जून 2019 के संग्रहण के स्तर का 90 प्रतिशत है। टोल कर का संग्रहण भी 80 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया है।
इसे भी पढ़ें: प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शितापूर्ण नीतियों से आत्मनिर्भर बन रहा है देश
कोरोना महामारी के चलते अप्रैल 2020 में औद्योगिक उत्पादन में 57.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी जो मई माह में घटकर 34.7 प्रतिशत की रह गई है। जून 2020 में इसमें और अधिक सुधार देखने को मिलेगा क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र का परचेसिंग मैनेजर इंडेक्स मई माह के 30.8 से बढ़कर जून माह में 47.2 प्रतिशत हो गया है। इसी प्रकार, देश में उत्पाद को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने के लिए ई-वे बिल जारी किया जाता है। आज ई-वे बिल जारी किए जाने का स्तर भी कोविड-19 के पूर्व के स्तर पर पहुँच गया है। अर्थात, जितने ई-वे बिल प्रतिदिन औसतन जनवरी एवं फ़रवरी 2020 में जारी किए जा रहे थे लगभग इसी स्तर पर आज भी जारी किए जाने लगे हैं। हाल ही में जारी किए गए खुदरा महँगाई की दर के आँकड़ों में भी थोड़ी तेज़ी दिखाई दी है। इसका आशय यह है कि देश में उत्पादों की माँग में वृद्धि हो रही है।
ट्रैक्टर एवं उर्वरकों की बिक्री भी कोविड-19 के पूर्व के स्तर पर पहुँच गई है। देश में मानसून की स्थिति भी बहुत अच्छी बनी हुई है। जिसके कारण, ख़रीफ़ के मौसम की बुआई का कार्य लगभग 85 प्रतिशत से ऊपर तक पूर्ण हो चुका है। सबसे अच्छी ख़बर तो यह है कि बेरोज़गारी की जो दर माह अप्रैल एवं मई 2020 के दौरान 38 प्रतिशत तक पहुँच गई थी वह CMIE के अनुसार, अब घटकर 11 प्रतिशत एवं एक अन्य रीसर्च एजेन्सी के अनुसार लगभग 8 प्रतिशत तक नीचे आ गई है।
बेरोज़गारी की दर के एकदम इतना नीचे आने के मुख्यतः दो कारण हैं- एक तो केंद्र सरकार ने जिन विभिन्न राहत उपायों की घोषणा की जिसके अंतर्गत ख़ासकर व्यापारियों एवं एमएसएमई सेक्टर को 3 लाख करोड़ रुपए का एक विशेष वित्तीय पैकेज प्रदान किया गया था तथा जिसकी गारंटी केंद्र सरकार ने विभिन बैकों को प्रदान की थी, इस वित्तीय पैकेज के तहत छोटे-छोटे व्यापारियों एवं उद्योगों को बैंकों से वित्त उपलब्ध कराये जाने की व्यवस्था की गई है, इसके चलते छोटे-छोटे व्यापारियों एवं उद्योगों को अपना व्यापार पुनः प्रारम्भ करने में काफ़ी आसानी हुई है। अतः व्यापारियों एवं छोटे उद्योगपतियों के लिए वित्त की उपलब्धता में व्यापक सुधार दृष्टिगोचर हो रहा है। दूसरा सबसे बड़ा कारण है कि देश में विभिन्न उत्पादों की माँग में भी वृद्धि हुई है क्योंकि अप्रैल एवं मई माह में लॉकडाउन के कारण लोगों ने वस्तुओं की ख़रीदी बहुत ही कम मात्रा में की थी। साथ ही, बहुत कम समय में भारत में बहुत मज़बूत एवं दृढ़ मेडिकल तंत्र तैयार कर लिया गया है। मेडिकल क्षेत्र में फ़ार्मा उद्योग बहुत तगड़ी ग्रोथ करने की तैयारी में दिख रहा है।
इसे भी पढ़ें: किसानों की समस्याएँ हल करने की बातें ही होती हैं...आखिर ऐसा कब तक चलेगा?
हालाँकि आर्थिक गतिविधियाँ पूरे देश में ही सफलतापूर्वक प्रारम्भ हो चुकी हैं परंतु ग्रामीण इलाक़ों में मनरेगा योजना के अंतर्गत पिछले 3 से 4 सप्ताहों के दौरान असाधारण काम हुआ है। इसके कारण जो बेरोज़गारी की दर पहले 38 प्रतिशत तक पहुँच चुकी थी वह अब घटकर लगभग 8 से 11 प्रतिशत के बीच आ चुकी है। इस बीच प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना पर भी तेज़ी से कार्य प्रारम्भ हुआ है जिसके कारण विशेष रूप से ग्रामीण इलाक़ों में रोज़गार के नए अवसर निर्मित होना प्रारम्भ हुए हैं। देश में ग़रीब परिवारों को खाने पीने का सामान, देश की जनता के सहयोग से उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके प्रबंधन की भी मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए। इस प्रकार तो देश में एक मिसाल क़ायम हुई है क्योंकि इतना बड़ा देश एवं इतनी अधिक जनसंख्या के बावजूद सामान्यतः किसी भी तरह की विपत्ति अथवा नागरिकों में पीड़ा देखने को नहीं मिली।
भारत में विभिन्न बैंकों द्वारा व्यापारियों, उद्योगपतियों एवं नागरिकों को वित्तीय सहायता आसानी से उपलब्ध कराने हेतु खाका तैयार किया जा चुका है। अब तो केवल इन व्यापारियों, उद्योगपतियों एवं व्यक्तियों को ही आगे आने की ज़रूरत है एवं बैंकों द्वारा आसानी से उपलब्ध करायी जा रही सुविधाओं का लाभ लेना प्रारम्भ करना है।
देश की अर्थव्यवस्था में जो तेज़ी देखने में आ रही है, वह अल्पकालीन नहीं होकर लंबे समय तक आगे जाने को तैयार दिख रही है। इसी कारण तो कई अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2021-22 में 9 प्रतिशत से भी अधिक वृद्धि की सम्भावनाएँ व्यक्त कर रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: भारत की अर्थव्यवस्था पर कोरोना संकट का सबसे कम प्रभाव पड़ेगा
यूँ तो देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 16/17 प्रतिशत ही रहता है परंतु देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामों में ही निवास करती है अतः रोज़गार के लिए यह आबादी मुख्यतः कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर रहती है। इसके चलते आजकल कृषि क्षेत्र, केंद्र सरकार की नज़र में प्राथमिकता की श्रेणी में आ गया है। जिसके कारण देश में गांवों में ही ट्रैक्टर, दो पहिया वाहन एवं कम लागत वाले चार पहिया वाहनों की बहुत अच्छी माँग उत्पन्न हो रही है। देश एवं विभिन्न राज्यों की सरकारों का जितना अधिक ध्यान कृषि क्षेत्र की ओर बना रहेगा देश में उतनी अधिक आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेंगी। जबकि पूर्व में देश में दिल्ली, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र जैसे राज्य आर्थिक दृष्टि से विकास के मुख्य केंद्र रहे हैं। परंतु, हाल ही में इन प्रदेशों में कोरोना महामारी का प्रभाव बहुत ज़्यादा देखने में आया है अतः वर्तमान में इन केन्द्रों में आर्थिक विकास प्रभावित होता दिख रहा है जो अंततः भारत की आर्थिक गतिविधियों को भी विपरीत रूप से प्रभावित करेगा ही। इसीलिए वर्तमान में ग्रामीण इलाक़ों के माध्यम से ही देश के आर्थिक विकास को गति मिल सकती है।
देश में नागरिकों के बीच आय का संकट भी गहराता दिख रहा है क्योंकि या तो कई नागरिकों की नौकरियों पर असर पड़ा है अथवा उनके वेतन कम हुए हैं। जिसके चलते हो सकता है आगे आने वाले समय में कुछ नागरिक बैंकों को अपनी ईएमआई चुकाने में चूक करें। परंतु, केंद्र सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक के माध्यम से इनकी ईएमआई की तारीख़ें 6 माह से आगे बढ़ा दी हैं। अतः यह संकट भी फ़िलहाल तो टल ही गया लगता है।
केवल एक चिंता का विषय अभी भी बरक़रार है और वह है विभिन्न राज्यों द्वारा छोटे-छोटे लॉकडाउन की घोषणा करना जिसके कारण इन इलाक़ों में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं। आज भी विभिन्न राज्यों जैसे- महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आदि में 3, 5, अथवा 7 दिनों तक का लॉकडाउन घोषित हो रहा है। इससे इन इलाक़ों में सप्लाई चैन बाधित हो रही है। इन इलाक़ों की जनता और व्यापारियों को तेज़ी से आर्थिक गतिविधियों को प्रारम्भ करने हेतु विश्वास नहीं बन पा रहा है क्योंकि पता नहीं कल किस प्रदेश की सरकार किस क्षेत्र को रोकथाम केंद्र घोषित कर देगी एवं जिसके कारण इन इलाक़ों में आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प पड़ जाएँगी।
भारत में चूँकि लॉकडाउन का पालन बहुत कठोरता से हुआ था अतः भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव भी बहुत गहरा नज़र आया है। बाक़ी कुछ देशों में तो लॉकडाउन के नियमों का पालन इतनी कठोरता से नहीं किया गया था। परंतु, भारत अब बहुत तेज़ी से बदलाव की ओर अग्रसर है। चीन से उत्पादों का आयात घटाकर देश में इन उत्पादों का निर्माण करने का एक सुनहरा अवसर देश के सामने आया है। अतः ग्रामीण इलाक़ों में लघु एवं कुटीर उद्योगों की अधिक से अधिक संख्या में स्थापना कर देश को आत्म निर्भर बनाए जाने की ओर आगे बढ़ने की आज आवश्यकता है।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
अन्य न्यूज़