जब प्रदर्शनकारियों को पता था कि PM आने वाले हैं तो पुलिस को यह बात कैसे पता नहीं थी?
देश के मौजूदा प्रधानमंत्री ही नहीं, किसी भी पिछले या भविष्य के प्रधानमंत्री का काफिला अगर किसी फ्लाईओवर पर 15-20 मिनट के लिए रुक जाए, तो यह न सिर्फ चिंता की बात, बल्कि उस राज्य सरकार की गंभीर लापरवाही का भी प्रदर्शन है।
उत्तर प्रदेश की वाराणसी लोकसभा सीट से सांसद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ पंजाब में जो कुछ हुआ उससे वाराणसी की जनता तो दुखी है ही यूपी में भी आक्रोश कम नहीं है। खासकर दुख इस बात का है कि गांधी परिवार इस मामले में घटिया राजनीति कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बुधवार को फिरोजपुर (पंजाब) जाते समय सुरक्षा में हुई चूक से वाराणसी के भाजपाई नेता और जनता आक्रोशित हो गए हैं। वाराणसी समेत पूर्वांचल के अन्य जिलों में भाजपा कार्यकर्ताओं ने पंजाब सरकार का पुतला फूंका है। वाराणसी में भाजपा कार्यकर्ताओं ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का पुतला फूंका और नारेबाजी की। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर जैसे कमेंट्स की बाढ़ आ गई। इस बीच यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी के एक ट्वीट ‘हाऊ इज जोश’ के बाद बीजेपी नेताओं और नेटिजन्स का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। दरअसल श्रीनिवास बीवी ने फिल्म ‘उरी-द सर्जिकल स्ट्राइक के एक पॉपुलर डायलॉग का हवाला देते हुए ट्वीट किया था- 'मोदीजी, हाउज द जोश?’ उनके इस कमेंट को सोशल मीडिया यूजर्स ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक से जोड़कर देखा और बेहद तल्ख प्रतिक्रियाएं दीं।
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कांग्रेस की उत्तर प्रदेश प्रभारी और पार्टी की महासचिव प्रियंका वाड्रा जो कानून व्यवस्था को लेकर हर समय योगी सरकार की खिंचाई करती रहती हैं, वह ऐसे गंभीर मुद्दे पर चुप्पी कैसे साध सकती हैं। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों का भी प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर ऐसा ही रवैया रहता होगा, जिसके चलते देश के दो प्रधानमंत्रियों- इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। यह दोनों प्रधानमंत्री कांग्रेस के ही नेता थे, इसीलिए सवाल यह उठ रहा है कि जब कांग्रेस सरकारें अपने दिग्गज नेताओं और प्रधानमंत्रियों इंदिरा-राजीव की समुचित सुरक्षा नहीं कर पाईं तो वह कैसे यह कह सकते हैं कि पंजाब सरकार ने मोदी की सुरक्षा में कोई चूक नहीं की होगी। इतना ही नहीं पंजाब के मुख्यमंत्री अपनी गलती को छिपाने के लिए इस चूक को सियासी रंग देने में लगे हैं और कांग्रेस के दिग्गज नेता भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं।
देश के मौजूदा प्रधानमंत्री ही नहीं, किसी भी पिछले या भविष्य के प्रधानमंत्री का काफिला अगर किसी फ्लाईओवर पर 15-20 मिनट के लिए रुक जाए, तो यह न सिर्फ चिंता की बात, बल्कि उस राज्य सरकार की गंभीर लापरवाही का भी प्रदर्शन है, जबकि यह फ्लाईओवर पाकिस्तान बार्डर से मात्र 25-30 किलोमीटर की दूरी पर था। प्रधानमंत्री का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था, उन्हें फिरोजपुर में एक रैली को संबोधित करना था, लेकिन जब काफिला रुक गया, तो उन्हें लौटना पड़ा। विशेषज्ञ इसे सुरक्षा में भारी चूक मान रहे हैं। पंजाब पहले आतंकवाद से प्रताड़ित रह चुका है, अतः वहां विशिष्ट लोगों की सुरक्षा चाक-चौबंद होनी चाहिए। प्रधानमंत्री की सुरक्षा तो विशेष रूप से सुनिश्चित होनी चाहिए, लेकिन पंजाब में यह शायद सरकार के स्तर पर हुई बड़ी चूक है। इस पर सियासत करने की बजाए पंजाब सरकार को इस चूक की तह में जाना चाहिए। अगर यह चूक प्रशासन के स्तर पर हुई है, तो ऐसे लापरवाह अधिकारियों के लिए सेवा में कोई जगह नहीं होनी चाहिए और यदि इसके पीछे कोई सियासत है, तो इससे घृणित कुछ नहीं हो सकता। प्रदर्शनकारियों को पता था कि प्रधानमंत्री का काफिला गुजरने वाला है, लेकिन क्या यह बात सुरक्षा अधिकारियों को नहीं पता थी कि प्रधानमंत्री का रास्ता प्रदर्शनकारी रोकने वाले हैं?
पंजाब सरकार और वहां के पुलिस अधिकारी यह नहीं कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम और यात्रा की योजना के बारे में उनको पहले से नहीं बताया गया था। गृह मंत्रालय ने इस गंभीर सुरक्षा चूक का संज्ञान लेते हुए पंजाब सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। मंत्रालय ने कहा कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम और यात्रा की योजना के बारे में पंजाब सरकार को पहले ही जानकारी दे दी गयी थी। पंजाब सरकार को सड़क मार्ग से किसी भी यात्रा को सुरक्षित रखने के लिए अतिरिक्त सुरक्षाकर्मी तैनात करने चाहिए थे। ऐसे मौके पर वहां के मुख्यमंत्री का फोन नहीं उठाना भी कम चौंकाने वाली बात नहीं है, इसीलिए उन पर भी उंगली उठ रही है। यह चूक काफी बड़ी और गंभीर है, इसलिए इस चूक के गुनाहागारों के खिलाफ कार्रवाई तो होगी ही। मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच है, जहां से सब आईने की तरह साफ हो जाएगा।
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यह बात कतई छिपी नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या उनकी कैबिनेट के अन्य मंत्री एवं कई राज्यों के मुख्यमंत्री सहित तमाम दलों के दिग्गज नेता, सब के सब आतंकवादियों और खालिस्तानियों के निशाने पर हैं। पाकिस्तान भी इस कोशिश में लगा रहता है कि किस तरह से भारत को अस्थिर किया जाए। ऐसे तत्वों के साथ अपराधी तत्वों का घालमेल हमें पहले भी मुसीबत में डाल चुका है। जम्मू-कश्मीर और पंजाब तो खासकर आतंकवादियों का पसंदीदा राज्य है। यहां आतंकवाद के साथ नशीले पदार्थों और हथियारों की सप्लाई भी चिंता का विषय रहती है। इस चूक को सिर्फ नाराज किसानों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है, जैसा कि भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत और कांग्रेसी कर रहे हैं। बेशक, इस देश के लोगों को प्रधानमंत्री से कुछ मांगने का पूरा हक है, लेकिन उनका रास्ता रोकने की हिमाकत किसी अपराध से कम नहीं है और जो लोग इस हिमाकत का समर्थन करते हैं, वह भी कहीं न कहीं इस कृत्य में बराबर के भागीदार हैं। क्या हमने एक प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री को खोकर कुछ सीखा है? दिल्ली की सीमाओं पर महीनों तक बैठने और पंजाब में सीधे प्रधानमंत्री का रास्ता रोकने के बीच जमीन-आसमान का फर्क है।
बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं है कि पंजाब में पीएम के रैली स्थल पर नहीं पहुँच पाने की वजह जो भी रही हो, लेकिन इससे बेपरवाह लोग इस संवेदनशील मसले पर भी राजनीति करने से चूकेंगे नहीं, क्योंकि पंजाब में हुई इस चूक ने उन्हें मौका दे दिया है। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री ने भी इस चूक पर नाराजगी जताई है। अतः इस चूक को पूरी गंभीरता से लेते हुए पंजाब सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि उस राज्य में रास्ता रोकने की राजनीति अपनी हदों में रहे। आशंका है कि ऐसे रास्ता रोकने वालों को किसी प्रकार की कार्रवाई से बचाने के लिए भी पंजाब में राजनीति होगी। कोई आश्चर्य नहीं कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध की खबर के बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर दी है।
कुल मिलाकर अच्छा यह रहता है ऐसी गंभीर चूक पर राजनीतिज्ञों को ठोस समाधान के बारे में सोचना व बताना चाहिए, यदि पंजाब के सीएम को अपनी सरकार की चूक का अंदाजा नहीं हो तो राष्ट्रपति शासन इसका समाधान हो सकता है। यह दुखद है कि अपने देश में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच अक्सर समस्या जस की तस बनी रह जाती है। अपना तात्कालिक राजनीतिक मकसद हल करने के बाद नेता भी ऐसी मूलभूत चूक या समस्या को भुला देते हैं। इस बार ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी पंजाब सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय की है। यह भी ध्यान रखना होगा कि पंजाब में दो-तीन महीने के भीतर चुनाव होने वाले हैं, चुनाव के दौरान कई दलों के छोटे-बड़े नेता भी पार्टी का प्रचार करने के लिए आएंगे, यदि उनको पंजाब सरकार समुचित सुरक्षा नहीं दिला पाएगी तो कैसे काम चलेगा। तमाम दलों और नेताओं की विचारधारा में मतभेद होना स्वभाविक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई ग्रुप या अवांछित तत्व किसी नेता को शारीरिक नुकसान पहुंचाए जाने की सोचे।
- अजय कुमार
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