अपना स्तंभ गिराकर खोखले नेताओं के सहारे कैसे पंजाब की चुनावी नैया पार लगायेगी कांग्रेस
प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, पार्टी ने ऐसा नहीं होने दिया। पार्टी उन्हें कैप्टन को हटाने तक इस्तमाल करना चाहती थी, उतना ही उसने किया। ऐसे हालात बने कि कैप्टन मंत्रिमंडल के सदस्य चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल में कहा है कि कांग्रेस के रवैये से भाजपा मजबूत हो रही है। उसके कार्यों से भाजपा को ताकत मिल रही है। देखने से लग भी ऐसा ही रहा है। कांग्रेस के उच्च नेतृत्व की गलती से पंजाब में कांग्रेस दो फाड़ हो गई। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के रवैये से पंजाब में कांग्रेस विभाजित हो गई। पार्टी के मजबूत स्तंभ कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी अलग बना ली।
कांग्रेस को लगता था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद वहां की राजनीति में गुटबंदी खत्म हो जाएगी, उसमें आया भूचाल रूक जाएगा पर ऐसा हुआ नहीं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का विलाप पहले भी जारी था, अब भी जारी है। पार्टी के वर्तमान मुख्यमंत्री को कमजोर करने के उनके षड्यंत्र कम नहीं हुए। पुराने क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार में मंत्री रहे। बड़बोलेपन के कारण उन्होंने मंत्री पद छोड़ा। कैप्टेन अमरिंदर सिंह का विरोध जारी रखा। कांग्रेस हाईकमान कैप्टन अमरिंदर सिंह के बढ़ते कद से नाराज था। उसने नवजोत सिंह सिद्धू को बढ़ाया। मुखयमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को कमजोर करने के लिए सिद्धू को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सिद्धू को और पर लग गए। कैप्टन अमरिंदर सिंह का विरोध और बढ़ गया। गुटबंदी घटने की जगह बढ़ी। पार्टी के रवैये का देख अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।
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प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, पार्टी ने ऐसा नहीं होने दिया। पार्टी उन्हें कैप्टन को हटाने तक इस्तमाल करना चाहती थी, उतना ही उसने किया। ऐसे हालात बने कि कैप्टन मंत्रिमंडल के सदस्य चरणजीत सिंह चन्नी को मुखयमंत्री बनाया गया। शुरुआत में तो सिद्धू उन्हें साथ लेकर घूमे। सिद्धू को लगा था कि मुख्यमंत्री चन्नी उनके इशारे पर ही चलेंगे, अप्रत्यक्ष रूप से वे ही मुख्यमंत्री होंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। कहना न मानते देख सिद्धू चन्नी के विरोध पर उतर आए। कांग्रेस उच्च नेतृत्व ने पहले तो ध्यान नहीं दिया। चुप्पी साधे रहा कि खुद ही ठीक हो जाएगा। लेकिन अपनी न चलती देख सिद्धू ने पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। अब पार्टी की कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी सक्रिय हुईं। सिद्धू और मुख्यमंत्री चरण सिंह चन्नी को बुलाकर समझाया। नवजोत सिंह सिद्धू को साफ कहा कि जो कहना है पार्टी के अंदर कहें बाहर नहीं।
अपनी आदत से मजबूर सिद्धू ने दिल्ली से वापिस आते ही प्रेस को फिर मुख्यमंत्री चन्नी को लेकर फिर बयान जारी कर दिया। चन्नी की घोषणाओं का विरोध शुरू कर दिया। पंजाब कांग्रेस के प्रभारी रहे हरीश रावत ने हाल में कहा था कि सिद्धू के रवैये को देखते हुए पार्टी हाईकमान को उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लेना चाहिए था, पर हुआ नहीं। ऐसा हो जाता तो पार्टी का विवाद खत्म हो जाता। ये भी हो सकता था कि मनाने पर कैप्टन मान जाते। पार्टी का विभाजन टल जाता। अमरिंदर अलग पार्टी न बनाते।
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अब हालात यह हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह पार्टी से अलग हो गए। उन्होंने अपनी पार्टी बना ली। वे कांग्रेस में लंबे समय रहे हैं। उनके पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से संबंध हैं। ये कटु सत्य है कि वे गए हैं तो पार्टी के अन्य नाराज कार्यकर्ता और नेता भी उनके साथ जाएंगे। कैप्टन के अलग पार्टी बनाने से कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचा। सिद्धू के रवैये में कोई अंतर नहीं आया। उनका अपना रूदन जारी है। यह जब तक जारी रहेगा, जब तक उनकी मनचाही नहीं हो जाती। पार्टी उन्हें पंजाब का मुख्यमंत्री नहीं बना देती। दूसरा रास्ता बचता है सिद्धू को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने का। अब कांग्रेस को सोचना होगा कि वह क्या करे। सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाना चन्नी और कुछ अन्य को पसंद नहीं होगा। अगर पार्टी ऐसा करती है तो उन्हें भी खोएगी।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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