नवंबर में होने वाले निकाय चुनाव योगी सरकार की पहली परीक्षा
करीब सात−आठ माह बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश चुनावी प्रक्रिया से गुजरेगा। योगी सरकार के ढुलमुल रवैये के बीच हाईकोर्ट की सख्ती के बाद नवंबर में नगर निकाय और ''ग्रामीण निकाय'' (नगर पंचायत) चुनाव होने जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपने काम का खूब ढिंढोरा पीट रही है। सच्चाई क्या है? जनता योगी सरकार के कामकाज से खुश है या यह सरकार भी जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है। लोकतंत्र में इसके मापने का पैमाना है हमारी चुनावी व्यवस्था। इस साल मार्च महीने में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हुए थे। मतदाताओं ने दिल खोल कर बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था, जिसके बल पर यूपी में बीजेपी का न केवल 15 वर्षों का सत्ता का वनवास खत्म हुआ, इसके अलावा बीजेपी ने जीत के कई पुराने रिकार्ड भी तोड़ दिये। करीब सात−आठ माह बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश चुनावी प्रक्रिया से गुजरेगा। योगी सरकार के ढुलमुल रवैये के बीच हाईकोर्ट की सख्ती के बाद नवंबर में नगर निकाय और 'ग्रामीण निकाय' (नगर पंचायत) चुनाव होने जा रहे हैं।
24−25 अक्तूबर को 16 नगर निगमों, 198 नगर पालिका परिषद व 439 नगर पंचायतों के लिए अधिसूचना जारी होगी। पहली बार प्रत्याशियों के नामांकन ऑनलाइन फीड किए जाएंगे। ऑनलाइन नामांकन की रसीद भी तत्काल मुहैया कराई जाएगी। राज्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल ने बताया कि सरकार ने परिसीमन की प्रक्रिया पूरी कर ली है। वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण का काम चल रहा है। यह काम 18 अक्तूबर तक पूरा हो जाएगा। इस बीच शासन स्तर पर अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी पता करने के लिए रैपिड सर्वे कराया जा रहा है। सर्वे पूरा होते ही उत्तर प्रदेश नगर निगम व नगर पालिका नियमावली−1994 के तहत वार्डों के आरक्षण के बाद नवंबर के अंत तक चुनाव हो जाएंगे। वार्डों का नये सिरे से आरक्षण किये जाने के बाद वार्डों में व्यापक बदलाव होना तय है। निकायों में अनुसूचित जाति के लिये 21 प्रतिशत वार्ड आरक्षित रहेंगे। अनुसूचित जाति के लिये जो वार्ड आरक्षित रहेंगे, उसमें से 33 प्रतिशत वार्ड अनुसूचित जाति की महिलाओं के हिस्से में चले जायेंगे। अनुसूचित जाति के लिये वार्डों का आरक्षण होने के बाद शेष वार्डों में से 27 प्रतिशत वार्ड अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित रहेंगे। इन वार्डों में भी 33 प्रतिशत हिस्सेदारी इस वर्ग की महिलाओं की रहेगी। इसके बाद जो अनारक्षित वार्ड बचेंगे उनमें से भी 33 प्रतिशत महिलाओं के लिये आरक्षित रहेंगे।
बीजेपी पहले लोकसभा और उसके बाद विधान सभा चुनाव में मिली शानदार जीत के बाद अब निकाय चुनावों में भी अपनी जीत का परचम फहराना चाहती है। निकाच और पंचायत चुनावों में भी बीजेपी की जीत का सिलसिला जारी रहा तो इसके दो फायदे होंगे। एक तो योगी सरकार के कामकाज पर जनता की सहमति की 'मोहर' लग जायेगी, दूसरे 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये भी बीजेपी को सियासी टॉनिक मिल जायेगा। फिलहाल, बीजेपी के लिये अच्छी खबर यह है कि कांग्रेस, सपा और बसपा के बीच इन चुनावों को लेकर सहमति बनती नहीं दिख रही है, तीनों ही दल एकला चलो की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि बीजेपी विरोधी दल अपने बूते पर चुनाव लड़कर जमीनी हकीकत भांपना चाह रहे हैं। इस सबके बीच निकाय चुनावों के लिये परिसीमन का कार्य पूर्ण हो चुका है और अब वोटर पुनरीक्षण का काम चल रहा है। नवंबर में नगर निकाय और नगर पंचायत चुनाव के अलावा गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा और एक विधान सभा सीट पर भी वोट पड़ेंगे।
निकाय चुनावों को बीजेपी ठोस रणनीति बनाकर लड़ने जा रही है। इसी क्रम में पुराने पार्षदों का टिकट काट कर मतदाताओं की नाराजगी कम करने के प्रयास किये जा रहे हैं। बीजेपी आलाकमान की यह रणनीति दिल्ली निकाय चुनाव में खरी उतरी थी। उम्मीद यह भी है कि बीजेपी महिला प्रत्याशियों को दिल खोलकर टिकट दे सकती है। निकाय चुनाव के रूप में पहली परीक्षा में योगी सरकार और संगठन कोई कोर−कसर नही छोड़ना चाहते हैं। पार्टी के रणनीतिकारों की बैठकें चल रही हैं। निकाय चुनावों में सरकार और संगठन की भूमिका पर चर्चा के अलावा यह भी तय किया गया कि नगर निगमों के लिए समीकरण दुरूस्त करने के मकसद से प्लान तैयार किया जाए। साथ ही चुनाव की आचार सहिंता लागू होने से पहले लोगों को संदेश देने और भाजपा के पक्ष में लामबंद करने वाली कुछ घोषणाएं भी सरकारी स्तर से की जा सकती हैं।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मश्ती वर्ष के तहत चल रहे कार्यक्रमों की श्रृंखला 24 सितंबर को पूरी होने के बाद पूरे संगठन ने सिर्फ निकाय चुनाव पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर लिया है। शहरी क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं को अन्य कार्यक्रमों से मुक्त करके मतदाता सूची पुनरीक्षण के काम में लगाया गया है। इसके लिए पार्टी के किसी प्रमुख कार्यकर्ता को स्थानीय स्तर पर प्रभारी बनाया जा रहा है। बूथ कमेटियों के लोगों को भी इसमें जुटाकर प्रयास किया जा रहा है ताकि भाजपा समर्थक मतदाताओं के नाम सूची में शामिल होने से छूट न सकें। स्थानीय स्तर पर यह समीक्षा भी की जा रही है कि वार्डों में जहां−जहां भाजपा को निकाय के पिछले दो चुनावों में कम वोट मिलते रहे हैं, वहां की मतदाता सूची में शामिल लोग क्या वास्तव में वहां रहते हैं। अगर नहीं रहते हैं तो सूची से उनके नाम कटवाने का काम भी किया जायेगा। बीजेपी चुनाव प्रचार के लिये अपने दिग्गजों को भी मैदान में उतारेगी।
-अजय कुमार
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