किसान आंदोलन ने देशव्यापी रूप लिया तो सरकार को होगी मुश्किल

मध्य प्रदेश सरकार किसानों का आंदोलन कुछ समय के लिए तो दबा देगी लेकिन देर-सबेर इस आंदोलन की चपेट में पूरा प्रदेश ही नहीं बल्कि देश आ सकता है। केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए।

मध्य प्रदेश में आंदोलन कर रहे किसानों पर सरकार की गोलीबारी से छह किसानों की मौत जितनी दुखद है, उतनी ही हतप्रद करने वाली केन्द्र सरकार की चुप्पी है। केन्द्र की भाजपानीत सरकार अपनी ही एक राज्य सरकार के मुखिया के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोली और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह एवं उनकी ही सरकार के गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह यह राग अलाप रहे हैं कि आंदोलन को कांग्रेस ने भड़काया और उपद्रव के लिए उकसाया था। यह तो सर्वविदित है कि किसी भी आंदोलन को हमेशा से विपक्षी पार्टियां हवा देती रही हैं लेकिन यह कहकर इस जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकतीं कि यह विपक्षी पार्टियों का किया-धरा है। निरीह, निहत्थे किसानों पर बिना किसी पूर्व चेतावनी के गोलीबारी की घटना तो घोर निंदनीय है और यह घटना ब्रिटिशकालीन मानसिकता की परिचायक है। हालांकि 1998 में दिग्विजय सिंह के शासनकाल में भी आंदोलन हिंसक हो गया था और 18 लोगों की मौत हो गयी थी, उस घटना के दोषियों को सजा मिली या नहीं लेकिन कांग्रेस अब तक भुगत रही है।

मध्य प्रदेश के किसानों ने फसल के वाजिब दाम समेत 20 सूत्रीय मांगों को लेकर 1 जून से 10 जून तक आंदोलन की घोषणा की थी। मंगलवार को नीमच रतलाम हाईवे पर सैंकड़ों किसान विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। इस दौरान कुछ लोगों ने पुलिस पर पथराव कर दिया। वहीं दलौदा के मुख्य चौराहे पर पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे किसानों पर काबू पाने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और बल का प्रयोग किया। इसी क्रम में पिपलियामंडी में भी पुलिस और किसानों के बीच झड़प हुई। बाद में यह खबर आई कि पुलिस की गोली से छह किसानों की मौत हो गई। साथियों की मौत की खबर के बाद तो वहां हालात और गंभीर हो गए और आनन-फानन में मंदसौर के आसपास तैनात सुरक्षा बलों को बुलाया गया। इस दौरान जब किसानों के शव मंदसौर के शासकीय अस्पताल पहुंचे तो बड़ी संख्या में आंदोलनकारी भी वहां जुटना शुरू हो गए। पुलिस ने लाठीचार्ज किया और इंटरनेट के इस दौर में भ्रामक खबरें फैलाई गई और लगातार फैलाई जा रहीं हैं, जिससे खतरा बढ़ गया है।

मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन के पांचवें दिन हालात नियंत्रण से बाहर हो गए थे और मंदसौर के दलौदा में एकाएक हिंसा भड़क गई, जिसमें किसान और सीआरपीएफ के जवान आमने सामने आ गए। इस दौरान हुई गोलीबारी में 6 किसानों की मौत हो गई, जबकि 5 घायल हो गए थे। राज्य के गृहमंत्री ने आनन-फानन में कहाकि सीआरपीएफ की ओर से कोई गोलीबारी नहीं की गई, कुछ असामाजिक तत्वों ने इस मामले को भड़काने के लिए गोलीबारी की, जिसमें किसानों की मौत हुई है। जबकि किसानों का कहना है कि सुरक्षा बलों की गोली से ही किसानों की मौत हुई है। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि गोली पुलिस और सीआरपीएफ की ओर से ही चलाई गई थी, जिसमें किसानों की मौत हुई है। हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आनन-फानन में मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रूपए मुआवजे की घोषणा की थी, जिसे अब बढ़ाकर एक-एक करोड़ रूपए कर दिया गया है लेकिन मुख्यमंत्री का अपराध कम नहीं हुआ है और नैतिकता के आधार पर उन्हें इस्तीफा देकर इस गोलीबारी की जांच करानी चाहिए और मुख्यमंत्री, गृहमंत्री समेत दोषी पुलिस अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

राज्य के मौजूदा हालातों को लेकर सीएम शिवराज सिंह चौहान वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे हैं और मंदसौर के वरिष्ठ अधिकारियों को हटा दिया गया है। लेकिन इस बात की प्रबल संभावना है कि इससे किसानों का आंदोलन सरकार कुछ समय के लिए तो दबा देगी लेकिन देर-सबेर इस आंदोलन की चपेट में पूरा प्रदेश ही नहीं बल्कि देश आ सकता है। अभी पिछले कुछ समय से भिन्न-भिन्न मुद्दों को लेकर उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, राजस्थान से किसानों के धरने-प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं और मध्य-प्रदेश की घटना के बाद आंदोलन भड़कने की संभावना जताई जा रही है। किसानों की ही तरह जगह-जगह से मजदूरों के आंदोलन की खबरें भी आ रही हैं जिससे आने वाले दिनों में मजदूरों और किसानों के आंदोलन व्यापक पैमाने पर फैलने का खतरा बढ़ गया है। अभी सरकार मीडिया मैनेजमेंट एवं पुलिस के जरिए इस तरह के आंदोलनों को दबा रही है लेकिन इनके विकराल होने का खतरा बढ़ गया है।

मध्य प्रदेश के मंदसौर में हुए गोलीकांड के दो दिनों तक सरकार खुद भ्रामक बयान देती रही है। तीसरे दिन सरकार ने यू-टर्न ले लिया और गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह ने पुलिस फायरिंग में 6 किसानों की मौत होने की बात मान ली। राज्य सरकार ने मंदसौर के कलेक्टर और एसपी का तबादला भी कर दिया। उधर, शाजापुर में हिंसा भड़क गई। पिपलिया गोपाल गांव में पथराव के दौरान एसडीएम राजेश यादव और दो जवान घायल हो गए। अब यह खुलासा हुआ है कि मंदसौर में पहले सीआरपीएफ ने और बाद में पुलिस ने किसानों पर गोलियां चलाई थीं। इससे हिंसा भड़की और गोलियों की गूंज मध्य प्रदेश से निकल कर पूरे देश में सुनाई पड़ रही है।

मंदसौर और पिपलियामंडी के बीच पार्श्वनाथ फोरलेन पर मंगलवार सुबह 11.30 बजे एक हजार से ज्यादा किसान सड़कों पर उतर आए और अपनी पूर्व की घोषणा के अनुरूप पहले उन्होंने चक्का जाम करने की कोशिश की और जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो पथराव शुरू कर दिया। पुलिस किसानों के बीच घिर गई। किसानों का आरोप है कि सीआरपीएफ और पुलिस ने बिना वॉर्निंग दिए फायरिंग शुरू कर दी. इसमें 6 लोगों की मौत हो गई।

दरअसल यह आंदोलन महाराष्ट्र से शुरू हुआ था। कर्ज माफी और दूध के दाम बढ़ाने जैसे मुद्दों पर यह आंदोलन महाराष्ट्र में 1 जून से शुरू हुआ था। मध्य प्रदेश के किसानों ने भी इसी तर्ज पर कर्ज माफी, मिनिमम सपोर्ट प्राइस, जमीन के बदले मिलने वाले मुआवजे और दूध के रेट को लेकर आंदोलन शुरू किया। शनिवार को इंदौर में यह आंदोलन हिंसक हो गया। अब मंदसौर और राज्य के बाकी हिस्सों में भी फैल रहा है। किसान जमीन के बदले मुआवजे के लिए कोर्ट जाने का अधिकार देने, फसल पर आए खर्च का डेढ़ गुना दाम देने, किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने, कर्ज माफ करने और दूध खरीदी के दाम बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

इस दुर्घटना के दो दिन बाद लम्बी चर्चा और बिगड़ते हालात के मददेनजर किसानों पर केस खत्म करने, जमीन मामले में किसान विरोधी प्रावधानों को हटाने, फसल बीमा को ऑप्शनल बनाने, मंडी में किसानों को 50 प्रतिशत नकद भुगतान और 50 प्रतिशत आरटीजीएस से देने का एलान किया है। यह भी कहा है कि सरकार किसानों से इस साल 8 रु. किलो प्याज और गर्मी में समर्थन मूल्य पर मूंग दाल खरीदेगी। खरीदी 30 जून तक चलेगी।

मध्य प्रदेश में 19 साल बाद इस तरह का आंदोलन हुआ है लेकिन किसी भी आंदोलन में निरीह, निहत्थे लोगों की हत्या को जायज नहीं ठहराया जा सकता और ऊपर से सरकार एवं उसके नुमाइंदे लीपापोती की नाकाम कोशिश करें, यह और भी घृणित कहा जाएगा। हालांकि शिवराज सिंह को गलती का अहसास होते ही उन्होंने सभी मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ रूपए मुआवजे का ऐलान किया है लेकिन किसी की भी हत्या का मोल मुआवजा हो ही नहीं सकती। इससे पहले मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में 1998 में किसानों ने इस तरह का आंदोलन किया था। 12 जनवरी 1998 को प्रदर्शन के दौरान 18 लोगों की मौत हो गई थी। दरअसल, मुलताई में उस वक्त किसान संघर्ष मोर्चा के बैनर तले आंदोलन हुआ था और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। किसान बाढ़ से हुई फसलों की बर्बादी के लिए 5000 रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजे और कर्ज माफी की मांग कर रहे थे लेकिन आज जो कांग्रेस सत्ता के लिए लोलुप हो रही है उसके मुख्यमंत्री और राहुल गांधी के अनाधिकृत सलाहकार दिग्विजय सिंह ने न कभी अफसोस जाहिर किया और न मुआवजा। इसलिए किसानों के लिए भी यह उचित होगा कि वे किसी के बहकावे में न आयें लेकिन किसानों और मजदूरों के जायज मुददे हर हाल में वरीयता पर हल होने चाहिए वरना एक आने वाले दिनों में देश की कुल आबादी के 83 प्रतिशत यह वर्ग केन्द्र की सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द खड़ा करने वाले हैं।

- सोनिया चोपड़ा

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