संविधान, आरक्षण और डॉ अंबडेकर पर कांग्रेस की विकृत राजनीति हो रही बेनकाब
यद्यपि दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप और कांग्रेस आमने सामने हैं किन्तु आप के नेता भी गृहमंत्री की कथित टिप्पणी का वीडियो बनाकर गली-गली में घुमा रहे हैं कि शायद इसका लाभ विधानसभा चुनाव में मिल जाए।
संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे के साथ समाप्त हो चुका है। अपनी आदत के अनुसार विपक्ष विरोध के नाम पर सदन से भी सियासी चिंगारी निकालने का प्रयास कर रहा है। संसद के शीतकालीन सत्र में संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर संविधान पर चर्चा का आयोजन किया गया था जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं ने संविधान पर अपने-अपने विचार व्यक्त किये।
लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने अपने संबोधन में संविधान, आरक्षण और डॉ. आंबेडकर पर कांग्रेस के विचारों को सप्रमाण सदन में रखा जिससे निरुत्तर हुई कांग्रेस ने राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह के संबोधन से 12 सेकेंड का एक टुकड़ा उठाकर उसे बाबा साहेब का अपमान बताते हुए गृहमंत्री के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। इस झूठे विमर्श को सच सिद्ध करने के प्रयास में पूरा विपक्ष कांग्रेस के नेतृत्व में एक बार फिर एकजुट हो रहा है।
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यद्यपि दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप और कांग्रेस आमने सामने हैं किन्तु आप के नेता भी गृहमंत्री की कथित टिप्पणी का वीडियो बनाकर गली-गली में घुमा रहे हैं कि शायद इसका लाभ विधानसभा चुनाव में मिल जाए। गृहमंत्री के विरुद्ध उसी प्रकार का वातावरण बनाने का प्रयास किया जा रहा जैसा 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को आरक्षण विरोधी व संविधान विरोधी साबित करने के लिए किया गया था। अब हर एक दल व नेता डॉ. आंबेडकर को भगवान बनाकर अपनी डूबती हुई राजनीतिक नैया को पार लगाने का स्वप्न देखने लगा है। गृहमंत्री अमित शाह के भाषण के अगले दिन राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा दलितों के प्रति अपना प्रेम दिखाने के लिए संसद परिसर में नीली टी शर्ट और नीली साड़ी पहनकर नमूदार हुए। उप्र में समाजवादी पार्टी भी भला पीछे क्यों रहती उसने भी डॉ. आंबेडकर की तस्वीरों के साथ यूपी विधानसभा में जमकर हंगामा किया ओर सदन की कार्यवाही ठप करने का प्रयास किया।
गृहमंत्री के बयान के खिलाफ विपक्ष देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का प्रयास कर रहा है। इस पूरे घटनाक्रम में बसपा नेत्री मायावती ने भी आक्रामक तेवर अपनाए हैं किन्तु वह सधे हुए बयान देकर कांग्रेस, भाजपा और सपा तीनों ही दलों को नसीहत दे रही हैं। बसपा नेत्री मायावती कांग्रेस पर हमलावर हैं, उनका कहना है कि बाबा साहेब की उपेक्षा करने वाली और देशहित में उनके द्वारा किये गये संघर्ष को हमेशा आघात पहुंचाने वाली कांग्रेस पार्टी का बाबा साहेब के अपमान को लेकर उतावालापन विशुद्ध छलावा है। बहिन मायावती ने डॉ. आंबेडकर के प्रति प्रेम दर्शा रहे समाजवादियों की पोल भी खोलकर रख दी है, मायावती का मानना है कि आज सपाई बाबासाहेब के नाम पर पीडीए का पर्चा निकाल रहे हैं जबकि वास्तविकता यह है कि सपा ने भी कभी भी डॉ. आंबेडकर का सम्मान नहीं किया था। समाजवादियों ने वास्तव में बाबा साहब सहित बहुजन समाज में जन्मे सभी महान संतों, गुरुओं, महापुरुषों के प्रति द्वेष के तहत नए जिले, नई संस्थाओं व जनहित योजनाओं तक के नाम बदल डाले थे। सपा सरकार में तो डॉ. आंबेडकर का नाम तक सही नहीं लिखा जाता था।
कांग्रेस पार्टी आज नीली टी शर्ट व नीली साड़ी पहनकर इतराती हुई घूम रही है और उसे लग रहा है कि उसे वह मुद्दा मिल गया है जिससे उसकी वापसी की राह आसान हो जायेगी लेकिन कांग्रेस बहुत बड़े भ्रम में है। सभी जानते हैं यह वहीं कांग्रेस पार्टी है जिसने कभी भी डॉ. आंबेडकर का सम्मान नहीं किया और न ही संविधान का कभी मान रखा। आज कांग्रेस नीले कपड़े पहनकर दलित समाज को छलने के लिए निकल पड़ी है। अगर कांग्रेस पार्टी ने कभी भी डॉ. आंबेडकर का सम्मान किया होता तो आज उसकी यह दुर्गति न होती।
स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही कांग्रेस और डॉ. आंबेडकर के मध्य गहरे मतभेद उत्पन्न हो गये थे। कांग्रेस के साथ बाबासाहेब का प्रथम विवाद 1930 में गोलमेज कांफ्रेस के समय हुआ था। आंबेडकर अनुसूचित जाति के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र चाहते थे जबकि गांधी जी इसके विरोधी थे। गांधी जी ने आंबेडकर जी के खिलाफ आमरण अनशन तक किया था। 29 जनवरी 1932 को दूसरी गोलमेज सम्मेलन के बाद मुंबई में बाबा साहब ने कहा कि मुझे कांग्रेसी देशद्रोही कहते हैं, यानी आज जो बाबासाहब की फोटो लेकर राजनीति कर रहे हैं,उस समय उन्हें गद्दार कहते थे। संविधान सभा में आंबेडकर जी के चयन का रास्ता भी नेहरू जी ने ही रोका था। हिंदू कोड बिल और सरकार की दलित विरोधी मानकिता के चलते आंबेडकर ने 1951 में नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हुए लिखा, “संरक्षण की सबसे अधिक जरूरत अनुसूचित जाति को है पर नेहरू का सारा ध्यान सिर्फ मुसलमानों पर है। ध्यान देने योग्य बात है कि आज भी कांग्रेस पार्टी पूरी तरह मुस्लिम परस्त है।
कांग्रेस स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी आंबेडकर जी का लगातार अपमान करती रही। बाबा साहब को 40 साल तक भारत रत्न के लिए इंतजार करना पड़ा जबकि कांग्रेस अपने ही परिवार को भारत रत्न देती रही। नई दिल्ली में गांधी नेहरू परिवार की पीढ़ियों के स्मारक बने हैं जबकि गांधी परिवार ने आंबेडकर जी का अंतिम संस्कार तक दिल्ली में नही होने दिया। कांग्रेस ने पग-पग पर डॉ. आंबेडकर के विचारों का धुर विरोध किया और आज राहुल गांधी नीली टी शर्ट पहनकर उनके अपमान पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। वस्तुतः कांग्रेस का आंबेडकर के प्रति प्रेम 2019 लोकसभा चुनाव में हारने के बाद से उमड़ा है।
गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस व विरोधी दलों के सभी आरोपों को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वह सपने में भी डॉ.आंबेडकर का अपमान नहीं कर सकते। संसद में चर्चा के दौरान यह तो सिद्ध हो गया है कि कांग्रेस ने न केवल जीते जी बाबा साहेब का लगातार अपमान किया वरन उनकी मृत्यु के बाद भी उनका मजाक उड़ाने का प्रयास किया। जब तक कांग्रेस सत्ता में रही बाबा साहेब का एक भी स्मारक नहीं बना जबकि जहां -जहां अन्य दलों की सरकारें आती गई वहां -वहां उनका स्मारक बनता चला गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बाबासाहेब के जीवन से संबंधित पंचतीर्थ विकसित किये। जिसमें मध्य प्रदेश में महू, लंदन में डॉ. भीमराव आंबेडकर स्मारक, नागपुर में दीक्षा भूमि, दिल्ली में राष्ट्रीय स्मारक और महाराष्ट्र के मुंबई में चैत्य भूमि का विकास किया। 19 नवंबर 2015 को पीएम मोदी ने डॉ. आंबेडकर के सम्मान में 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की घोषणा की। आज जो लोग संविधान की किताब हाथ में लेकर घूम रहे हैं यही लोग संविधान दिवस का विरोध व बहिष्कार करते रहे हैं।
कांग्रेस के नेतृत्व में आज संपूर्ण विपक्ष केवल वोटबैंक की राजनीति के कारण ही सदन में डॉ. आंबेडकर के अपमान का मुद्दा उछाल रहा है, क्योंकि देश में 20 करोड़ 13 लाख 78 हजार 86 दलित हैं जो आबादी का 16.63 फीसदी है। दलितो की आबादी का ग्रामीण क्षेत्रों में 68.8 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 23.6 फीसदी है। इस आबादी को अपना वोट बैंक बनाने के लिए आतुर कांग्रेस अपने साथियों के साथ मिलकर रोज नए नए स्टंट कर रही है क्योंकिउसको लगता है कि अकेले मुस्लिम वोट बैंक से उसे सत्ता नहीं मिल सकती।
- मृत्युंजय दीक्षित
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