उत्तर प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियों से सियासी जमीन तैयार करने की कोशिश

Uttar Pradesh map
Prabhasakshi
अजय कुमार । Sep 2 2024 5:49PM

योगी सरकार ने सबसे पहले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन किया। इसके बाद पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और सदस्यों की नियुक्ति की गई। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष की भी नियुक्ति की गई है।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार के बाद उपचुनाव से पहले संगठन को सुदृढ़ करने की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। पिछले ढाई वर्षों से लंबित पड़ी राजनैतिक नियुक्तियों का सिलसिला अब प्रदेश में आरंभ हो गया है। इन नियुक्तियों के माध्यम से योगी सरकार बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को विभिन्न निगम, आयोग, और बोर्ड में चेयरमैन और सदस्य के रूप में नियुक्त करके उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश में जुटी हुई है। यह रणनीति सरकार द्वारा सामाजिक समीकरणों को फिर से मजबूत करने की एक महत्वपूर्ण योजना मानी जा रही है।

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार का दूसरा कार्यकाल 25 मार्च 2022 को आरंभ हुआ था। इसके बाद से ही बीजेपी कार्यकर्ता राजनैतिक नियुक्तियों की प्रतीक्षा कर रहे थे। हालांकि, सरकार और संगठन के बीच तनातनी के कारण आयोग में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और सदस्यों के नामों पर सहमति नहीं बन पा रही थी। हाल ही में लखनऊ में संघ, सरकार, और संगठन के बीच हुई एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद राजनैतिक नियुक्तियों का यह सिलसिला शुरू किया गया है।

इसे भी पढ़ें: अगले दो साल में उत्तर प्रदेश पुलिस में एक लाख नौजवानों की होगी भर्ती : Yogi Adityanath

योगी सरकार ने सबसे पहले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन किया। इसके बाद पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और सदस्यों की नियुक्ति की गई। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष की भी नियुक्ति की गई है। यह नियुक्तियां ढाई साल के अंतराल के बाद की गई हैं, जिससे प्रदेश के राजनैतिक समीकरणों को साधने की कवायद की जा रही है।

उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग राज्य आयोग के अध्यक्ष के रूप में सीतापुर के पूर्व सांसद राजेश वर्मा को नियुक्त किया गया है। साथ ही मिर्जापुर के सोहन लाल श्रीमाली और रामपुर के सूर्य प्रकाश पाल को उपाध्यक्ष नामित किया गया है। इसके अलावा आयोग में 24 अन्य सदस्यों को भी शामिल किया गया है, जिनमें सत्येंद्र कुमार बारी, मेलाराम पवार, फुल बदन कुशवाहा, विनोद यादव, शिव मंगल बयार, अशोक सिंह, ऋचा राजपूत, चिरंजीव चौरसिया, रवींद्र मणि, आरडी सिंह, कुलदीप विश्वकर्मा, लक्ष्मण सिंह, विनोद सिंह, रामशंकर साहू, डॉ. मुरहू राजभर, घनश्याम चौहान, जनार्दन गुप्ता, बाबा बालक, रमेश कश्यप, प्रमोद सैनी, करुणा शंकर पटेल, महेंद्र सिंह राणा और राम कृष्ण सिंह पटेल शामिल हैं।

योगी सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग का भी गठन किया है। बाराबंकी के पूर्व विधायक बैजनाथ रावत को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जबकि गोरखपुर के पूर्व विधायक बेचन राम और सोनभद्र के जीत सिंह खरवार को उपाध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है। इसके अलावा आयोग में 17 अन्य सदस्यों की भी नियुक्ति की गई है, जिनमें हरेंद्र जाटव, महिपाल बाल्मीकि, संजय सिंह, दिनेश भारत, शिव नारायण सोनकर, नीरज गौतम, रमेश कुमार तूफानी, नरेंद्र सिंह खजूरी, तीजाराम, विनय राम, अनिता राम, रमेश चंद्र, मिठाई लाल, उमेश कठेरिया, अजय कोरी, जितेंद्र कुमार, और अनिता कमल शामिल हैं।

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग की प्रोफेसर कीर्ति पांडेय को उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उनकी नियुक्ति के बाद बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग में लंबित पदों पर भर्ती की प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है। उपचुनाव से पहले योगी सरकार ने इन राजनैतिक नियुक्तियों के माध्यम से सियासी समीकरणों को साधने की कोशिश शुरू कर दी है।

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग की कमान कुर्मी समुदाय के नेता को सौंपी है, जबकि अन्य ओबीसी जातियों को उपाध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया गया है, जिसमें पाल समाज को भी अहम स्थान दिया गया है। इसी तरह से आयोग में सदस्यों के रूप में अतिपिछड़ी जातियों को विशेष तवज्जो दी गई है। अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग की कमान पासी समुदाय के नेता को सौंपी गई है, जबकि उपाध्यक्ष के पद पर खरवार समाज को नियुक्त किया गया है। इसके अलावा दलित समाज की अन्य जातियों के नेताओं को भी स्थान दिया गया है। शिक्षा सेवा चयन आयोग की कमान ब्राह्मण समाज से आने वाली कीर्ति पांडेय को दी गई है, जो सामाजिक समीकरणों के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव बीजेपी के लिए काफी अहम हैं, खासतौर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश की 80 में से सिर्फ 33 सीटें ही मिली हैं, जबकि 2019 में जीती हुई 29 सीटों का नुकसान हुआ है। प्रदेश में मिली इस हार ने बीजेपी को हिला कर रख दिया है, जिसके चलते उपचुनाव को लेकर विशेष सावधानी बरती जा रही है।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद मोर्चा संभालते हुए उपचुनाव वाली सीटों पर प्रचार के साथ-साथ संगठन को मजबूत करने की कवायद शुरू की है। इसके लिए उन्होंने नाराज कार्यकर्ताओं और नेताओं को मनाने का काम भी शुरू कर दिया है, जिसके तहत राजनैतिक नियुक्तियों का यह सिलसिला शुरू हुआ है। पार्टी के बड़े नेताओं को विधानसभा और लोकसभा के चुनाव लड़ने का अवसर मिलता है, जबकि कार्यकर्ताओं को सत्ता में आने पर राजनैतिक नियुक्तियां मिलने की आस रहती है। इसी को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने अब नियुक्तियों का सिलसिला शुरू करके कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया है।

हालांकि, अभी भी कई महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां नहीं की गई हैं। राज्य खाद्य आयोग में अध्यक्ष के अलावा पांच सदस्यों का कार्यकाल 2022 की शुरुआत में खत्म हो चुका है। राज्य महिला आयोग में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष, और 25 सदस्यों के पद भी खाली पड़े हैं। इसके अलावा प्रदेश के 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका, और 546 नगर पंचायतों में मनोनीत पार्षदों और सदस्यों की नियुक्तियां होनी हैं, जो 2022 से खाली हैं। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पूर्व सैनिक कल्याण निगम, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, उत्तर प्रदेश किन्नर विकास निगम, सिंधी अकादमी, पंजाबी अकादमी, और उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम में भी नियुक्तियां अभी लंबित हैं।

योगी सरकार में सिर्फ बीजेपी के नेता ही नहीं, बल्कि सहयोगी दलों के नेता भी इन नियुक्तियों के लिए दावेदारी कर रहे हैं। अपना दल (एस), आरएलडी, सुभासपा, और निषाद पार्टी के नेता भी निगम, आयोग, और बोर्ड में अध्यक्ष और सदस्य बनने की जुगत में हैं। इसके अलावा लोकसभा चुनाव से पहले सपा, बसपा, और कांग्रेस से आए नेता भी इन नियुक्तियों में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन नियुक्तियों के माध्यम से सत्ताधारी दल सूबे के सामाजिक समीकरणों को साधने का प्रयास कर रहा है।

उत्तर प्रदेश की राजनीतिक फिजां में इन नियुक्तियों का खासा असर दिखाई दे रहा है। उपचुनाव से पहले की जा रही ये नियुक्तियां स्पष्ट तौर पर चुनावी गणित को साधने के लिए हैं, जहां सरकार ने समाज के विभिन्न वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया है।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़