आजम−ओवैसी को लेकर अखिलेश का दोहरा रवैया

आजम खान और अपने बयानों को लेकर विवादों में घिरे रहने वाले एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी के बीच कार्रवाई करने के मामले में समाजवादी पार्टी सरकार दोहरा चरित्र दिखा रही है।
सियासत का खेल भी निराला है। यहां 'दोस्तों' को तो सात खून माफ हैं लेकिन दुश्मनों की जुबान भी हिलती है तो उन्हें 'फांसी' पर लटकाने की तैयारी शुरू हो जाती है। दोस्तों को बगलगीर और दुश्मनों को आसपास की बात तो दूर सूबे तक में फटकने नहीं दिया जाता है। अगर ऐसा न होता तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और समाजवादी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव एक ही से दो मसलों में कभी दोहरा मापदंड नहीं अपनाते। बात विवादास्पद बयानबाजी करने में माहिर समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान और अपने बयानों को लेकर विवादों में घिरे रहने वाले ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी के बीच कार्रवाई करने के मामले में दोहरा चरित्र दिखाने वाली समाजवादी सरकार की हो रही है।
भारत माता, भाजपा नेताओं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, उत्तर प्रदेश के तमाम राज्यपालों, कभी सपा के कद्दावर नेताओं में शामिल रहे अमर सिंह, आरएसएस, चुनाव आयोग, जामा मस्जिद के इमाम बुखारी, प्रमुख शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद आदि ही नहीं यहां तक की सेना तक पर विवादास्पद बयानबाजी करने वाले आजम की जुबान पर न तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अंकुश लगा पाते हैं, न मुलायम सिंह ही, लेकिन बात जब ओवैसी जैसे नेता की आती है तो उन्हें इलाहाबाद, आगरा, आजमगढ़ और अब लखनऊ में इसलिये कार्यक्रम की इजाजत नहीं मिलती है क्योंकि अखिलेश सरकार को लगता है कि ओवैसी के कार्यक्रम से शांति व्यवस्था बिगड़ सकती है। आजम दादरी कांड को यूनएओ तक ले जाने का कुचक्र रचते नजर आते हैं तो ताजमहल और संसद भवन को गुलामी का प्रतीक बता चुके हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आजम को न तो अपनी कौम से मोहब्बत है, न देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर उनका भरोसा है। वह अफजल के समर्थन में भी खड़े हो जाते हैं तो बगदादी को भी उनका समर्थन मिल जाता है। आजम बेतुकी बयानबाजी करते हैं तो उनको अपने लिये भी ऐसा ही सुनना पड़ता है। कोई उन्हें देशद्रोही बताता है तो कोई कौम का गद्दार, ऐसे लोंगो की भी संख्या कम नहीं है जो आजम को पाकिस्तान जाने की सलाह देते रहते हैं।
अपने काम से अधिक विवादास्पद बयानबाजी के सहारे सुर्खिंया बटोरने वाले सपा नेता आजम खान की हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अखिलेश सरकार में उनके पास संसदीय कार्य, मुस्लिम वक्फ, नगर विकास, जल आपूर्ति, नगरीय रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन, शहरी समग्र विकास, अल्पसंख्यक कल्याण और हज जैसे विभाग उनके पास है। अखिलेश राज में ही नहीं इससे पूर्व जब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब भी आजम के पास भारी भरकम विभागों का जमावड़ा रहता था। आजम खान की सियासत अगर परवान चढ़ी तो इसका पूरा श्रेय मुलायम सिंह यादव को जाता है। मुलायम ने ही आजम को आगे बढ़ाया। यह बात आजम कई बार कह भी चुके हैं और हकीकत यह भी है कि जब अमर सिंह विवाद के बाद आजम को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पड़ा तो उनकी सियासत कौड़ियों की हो गई थी। मुलायम को आजम अपना बहुत कुछ मानते हैं तो सीएम अखिलेश यादव की जुबान पर चचा आजम के अलावा कुछ नहीं आता है। आजम का विवादों से पुराना नाता है और जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तो इन विवादों में चार चांद लग जाते हैं। खासकर मंत्री पद पर रहते आजम की राजभवन से हमेशा ठनी रही। रामपुर में बनने वाले जौहर विश्वविद्यालय की वजब से राजभवन से उनका टकराव जगजाहिर है, लेकिन इसके अलावा भी लोकायुक्त की नियुक्ति, विधान परिषद के लिये कुछ सदस्यों के मनोनयन पर राजभवन की नुक्ताचीनी, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट स्तर के मंत्री का दर्जा देने की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा हाथ खड़े किये जाने जैसे तमाम मसलों पर आजम खान का गुस्सा राजभवन पर फूटता रहा है। स्थिति यह है कि सरकार और राजभवन के बीच कोई भी मसला होता है उसमें आजम खान 'बेगानों की शादी में, अब्दुल्ला दीवाना' की कहावत को चरितार्थ करते हुए कूद पड़ते हैं।
लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में जब राज्यपाल राम नाईक ने सरकार के चुने गये नामों पर सहमति नहीं दी थी तो आजम ने यहां तक कह दिया कि राज्यपाल राम नाईक, उनकी प्रमुख सचिव और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस तीनों महाराष्ट्र से जुड़े हुए हैं। इसीलिये यह लोग लोकायुक्त की नियुक्ति में अड़चन डाल रहे हैं। गौरतलब हो लोकायुक्त की नियुक्ति में सरकार और हाईकोर्ट से चीफ जस्टिस के बीच का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। बात जौहर विश्वविद्यालय विवाद की कि जाये तो रामपुर में बनने वाले इस विवि को आजम ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ रखा था। पहले तो इसको मंजूरी ही बहुत मुश्किल से मिली और जब यह बनकर तैयार हुआ तो विवि का कुलाधिपति कौन हो, इसको लेकर आजम अड़ गये। नियमानुसार राज्यपाल राज्य के अधीन आने वाले सभी विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है परंतु आजम चाहते थे कि राज्यपाल नहीं वह कुलाधिपति बनें। इसको लेकर राजभवन से टकराव लम्बा चला, परंतु दो माह के लिये कार्यकारी राज्यपाल बने अजीज कुरैशी ने आजम की महत्वाकांक्षा को अमली जामा पहनाते हुए विधेयक पर अपनी मंजूरी दे दी थी। इस पर काफी विवाद भी हुआ लेकिन फैसला पलटा नहीं जा सका। आजम अक्सर आरोप लगाते रहते हैं कि जब से राम नाईक राज्यपाल बने हैं राजभवन राजनीति भवन बन गया है। यहां आरएसएस वालों का जमावड़ा लगा रहता है।
राज्यपाल और आजम खान के बीच विवाद का नया मामला उत्तर प्रदेश नगर निगम के मेयरों के अधिकारों को कटौती के लिये राजवभवन भेजे गये एक विधेयक से जुड़ा है। आजम खान चाहते थे कि राजभवन तुरंत इस विधेयक को मंजूरी दे दे, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो विधानसभा में आजम ने राज्यपाल की शान में वह सब कुछ कह दिया, जिसकी उम्मीद लोकतांत्रिक व्यवस्था और स्वस्थ राजनीति में नहीं की जा सकती है। आजम ने राज्यपाल को लेकर अनाप−शनाप टिप्पणी की, इसे भाजपा विधायकों के विरोध के बाद विधानसभा अध्यक्ष रिकार्ड से हटाने पर भी सहमत हो गये थे लेकिन जब आजम की विवादित टिप्पणियां अखबारों की सुर्खियां बन गईं तो राज्यपाल राम नाईक के सब्र का बांध टूट गया।
मामला आठ मार्च 2016 का था। नगर निगम के मेयरों से संबंधित एक विधेयक को लेकर आजम खान सख्त लहजे में अपनी बात रख रहे थे। उनके निशाने पर राज्यपाल राम नाईक थे। विधानसभा में भाजपा के सुरेश खन्ना द्वारा आपत्ति व्यक्त करने के बाद विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने आश्वस्त किया था कि आजम खान द्वारा राज्यपाल के बारे में जो कुछ कहा गया है, उसमें जो कुछ भी असंसदीय होगा उसे वह हटवा देंगे। इससे पहले ही यह बयान अखबारों में छप गये। सूत्रों का कहना है कि राज्यपाल ने असंपादित और सम्पादित दोनों सीडी विधानसभा से मंगा ली है। वह देखेंगे विधानसभा अध्यक्ष ने किन अंशों को आपत्तिजनक माना है। खास बात यह भी है कि जिन शब्दों और वाक्यों को आपत्तिजनक मानते हुए हटाया गया है, वे भी समाचार पत्रों में छपे थे। खबर छपी यह तो एक बात थी, लेकिन राजभवन को इस बात का अधिक मलाल था कि क्यों नहीं स्पीकर ने राज्यपाल पर की गई टिप्पणियों को छपने से प्रतिबंधित किया। ऐसा किया गया होता तो राजभवन के लिए इस मामले में दखल देने का कारण ही न पैदा होता।
बहरहाल, चुनावी आहट के बीच राज्यपाल राम नाईक व मोहम्मद आजम खां का विवाद उस मुकाम पर पहुंच गया है जहां आजम को एक बार फिर राजभवन में घिरता देखा जा रहा है। आजम की राज्यपाल राम नाईक को लेकर की गई लगातार गलत बयानबाजी उन्हें अतीत की याद दिला सकती है जब उन्हें करीब एक दशक पूर्व राजभवन जाकर माफी मांगनी पड़ी थी। करीब दस साल पहले तत्कालीन राज्यपाल टीवी राजेस्वर से भी मोहम्मद आजम खां का विवाद चला था। आजम खां उन पर भी लगातार हमले करते रहे लेकिन जब पानी सिर से ऊपर चला गया तो राज्यपाल ने आजम को बुरी तरह से लपेटे में ले लिया। आखिर में यह प्रकरण आजम खां के राजभवन जाकर खेद प्रकट के साथ समाप्त हुआ था। माना जाता है कि टीवी राजेस्वर की नाराजगी जब चरम पर पहुंच गई तो इससे बचने का कोई रास्ता न देख तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपने मंत्री आजम खान को स्वयं मामले को रफा दफा कराने आगे आए थे। आजम खां को लेकर वह टीवी राजेस्वर के पास गए थे और अपने कथन पर आजम खां द्वारा अफसोस जाहिर करने के बाद मामला समाप्त हुआ था। इस बार राज्यपाल राम नाईक नाराज हैं और उनकी नाराजगी की वजह है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के संज्ञान में लाए जाने के बावजूद राज्यपाल पर आजम खां के हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। इसी कारण राजभवन गंभीर रूख अख्तियार किये हुए है। राजभवन सूत्रों का दावा है कि नाईक सीडी देखेंगे, सुनेंगे और पटकथा को पढ़ेंगे। उसके बाद ही इस सम्बन्ध में कोई निर्णय लेंगे।
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