Chai Par Sameeksha: Stalin ने Rupee Symbol को हटा कर और Karnataka Govt. ने Muslim ठेकेदारों को आरक्षण देकर खतरनाक संकेत दिया है

MK Stalin Siddaramaiah
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प्रभासाक्षी के संपादक ने कहा कि अगले साल होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले अपनी सरकार की नाकामियों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए गैर-जरूरी मुद्दों को उठा रहे स्टालिन ने रुपए के लोगो को बदल कर अपनी खतरनाक मानसिकता का भी संदेश दिया है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह तमिलनाडु सरकार की ओर से बजट के लोगों में रुपए का प्रतीक चिह्न हटाने और कर्नाटक में कांग्रेस सरकार द्वारा सरकारी ठेकों में मुस्लिमों को 4 प्रतिशत आरक्षण देने से संबंधित मुद्दों का विश्लेषण किया गया। प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने पाठकों/दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर दिये।

प्रश्न-1. तमिलनाडु सरकार ने बजट के ‘लोगो’ में रुपये का प्रतीक चिह्न हटा कर तमिल अक्षर को शामिल किया, क्या यह सही फैसला है?

वित्त वर्ष 2025-26 के लिए तमिलनाडु के बजट के ‘लोगो’ में भारतीय रुपये के देवनागरी लिपि वाले प्रतीक चिह्न की जगह एक तमिल अक्षर का उपयोग किया गया है। एमके स्टालिन सरकार का यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत त्रि-भाषा फॉर्मूला के खिलाफ उसके अड़ियल रुख का संकेत देता है। ‘लोगो’ में तमिल शब्द ‘रुबय’ का प्रथम अक्षर अंकित किया गया है। तमिल भाषा में भारतीय मुद्रा को ‘रुबय’ कहा जाता है। जहां तक रुपए के प्रतीक चिह्न की बात है तो स्टालिन को समझना चाहिए कि यह देवनागरी के ‘र’ और रोमन लिपि के ‘आर’ अक्षर का मिश्रण है, जिसके शीर्ष पर दो समानांतर क्षैतिज पट्टियां हैं जो राष्ट्रीय ध्वज और गणित में उपयोग किये जाने वाले ‘बराबर’ के चिह्न का प्रतिनिधित्व करती हैं। रुपये के चिह्न को भारत सरकार ने 15 जुलाई 2010 को अपनाया था। इस चिह्न को जिन्होंने डिजाइन किया था वह तमिलनाडु के ही हैं। उनका नाम है तिरु उदय कुमार और वह द्रमुक के एक पूर्व विधायक के बेटे हैं। रुपये का प्रतीक चिह्न डिजाइन करने वाले आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर डी उदय कुमार ने हालांकि इस विवाद में पड़ने से इंकार कर दिया है लेकिन एक चीज साफ है कि द्रमुक सरकार का यह निर्णय राज्य संचालित शराब निगम में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा चिह्नित 1,000 करोड़ रुपये की रिश्वतखोरी मामले से ध्यान भटकाने का प्रयास प्रतीत हो रहा है।

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अगले साल होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले अपनी सरकार की नाकामियों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए गैर-जरूरी मुद्दों को उठा रहे स्टालिन ने रुपए के लोगो को बदल कर अपनी खतरनाक मानसिकता का भी संदेश दिया है क्योंकि यह कदम देश की एकता को कमजोर करता है। साथ ही रुपये का चिन्ह मिटाकर द्रमुक न केवल एक राष्ट्रीय प्रतीक को खारिज कर रही है, बल्कि एक तमिल युवा के रचनात्मक योगदान की भी अवहेलना कर रही है। यह एक खतरनाक मानसिकता का संकेत है जो देश की एकता को कमजोर करता है और क्षेत्रीय गौरव के बहाने अलगाववादी भावनाओं को बढ़ावा देता है। स्टालिन को समझना चाहिए कि रुपये का प्रतीक चिह्न अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छी तरह से पहचाना जाता है और वैश्विक वित्तीय लेनदेन में भारत की पहचान के रूप में काम करता है। ऐसे समय में जब भारत यूपीआई का उपयोग करके सीमापार भुगतान पर जोर दे रहा है, क्या हमें वास्तव में अपने स्वयं के राष्ट्रीय मुद्रा प्रतीक को कमतर आंकना चाहिए? देखा जाये तो इंडोनेशिया, मालदीव, मॉरीशस, नेपाल, सेशेल्स और श्रीलंका सहित कई देश आधिकारिक तौर पर 'रुपया' या इसे मिले-जुले नाम को अपनी मुद्रा के नाम के रूप में उपयोग करते हैं।’’

इसके अलावा सभी निर्वाचित प्रतिनिधि और अधिकारी संविधान के तहत हमारे राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेते हैं। इसलिए राज्य बजट दस्तावेजों से रुपये के चिन्ह जैसे राष्ट्रीय प्रतीक को हटाना उस शपथ के खिलाफ है। यह राष्ट्रीय एकता के प्रति प्रतिबद्धता को कमजोर करता है। स्टालिन ने जो काम शुरू किया है यदि उसे अन्य राज्यों ने आगे बढ़ाया तो कल को तमाम राष्ट्रीय प्रतीकों का कोई महत्व नहीं रह जायेगा क्योंकि सभी अपना अलग-अलग डिजाइन बनाने लग जायेंगे।

जहां तक तमिलनाडु सरकार के बजट में इस्तेमाल किये गये तमिल शब्द ‘रुपाई’ की बात है तो इसके बारे में भी शायद स्टालिन नहीं जानते कि इसकी जड़ें संस्कृत शब्द ‘रुपया’ से गहराई से जुड़ी हैं, जिसका अर्थ है ‘गढ़ी हुई चांदी’ या ‘ऐसा चांदी का सिक्का जिस पर काम हुआ हो।’ यह शब्द तमिल व्यापार और साहित्य में सदियों से चलता आ रहा है और आज भी, ‘रुपाई’ तमिलनाडु और श्रीलंका में मुद्रा का नाम बना हुआ है। वैसे स्टालिन बार-बार तमिल भाषा की दुहाई दे रहे हैं लेकिन वह और उनकी पार्टी के नेता जिन द्रविड़ आंदोलन के अग्रणी नेता पेरियार की पूजा करते हैं वह तमिल को ‘‘बर्बर’’ भाषा बताते थे। पेरियार यहां तक कहते थे कि यह भाषा भिखारियों को भीख पाने में भी मदद नहीं कर सकती। देखा जाये तो द्रमुक के लोग ऐसे व्यक्ति को अपना आदर्श मानते हैं, जिसने तमिल भाषा के खिलाफ "अपमानजनक" बातें कही हैं। जो व्यक्ति तमिल को एक बर्बर भाषा बताता था, वे उसकी तस्वीर हर कमरे में रखते हैं, उसे माला पहनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं और कहते हैं कि वह द्रविड़ आंदोलन का प्रतीक है। वाकई इन लोगों का पाखंड कमाल का है। वैसे अब स्टालिन को बताना चाहिए कि रुपए का प्रतीक बदलने से तमिल भाषा कितनी मजबूत हो गयी? स्टालिन को यह भी बताना चाहिए कि क्या रुपए का प्रतीक बदल कर ही वह सच्चे तमिल समर्थक माने जाएंगे? स्टालिन को यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने हिंदी के लिए अपमानजक बातें क्यों कहीं? क्यों उन्होंने कहा कि वह ब्रिटिश उपनिवेशवाद की जगह 'हिंदी उपनिवेशवाद' को स्वीकार नहीं करेंगे? अपनी भाषा पर गर्व करना अच्छा है लेकिन किसी भी भारतीय भाषा या देश की राजभाषा का अपमान नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न-2. कर्नाटक सरकार द्वारा मुस्लिम ठेकेदारों के लिए 4% आरक्षण का प्रावधान करना क्या दर्शाता है?

ऐसा लगता है कि कर्नाटक में राज्य सरकार तुष्टिकरण का कोई नया रिकॉर्ड बनाने की दिशा में काम कर रही है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने हालिया बजट में भी तुष्टिकरण की छाप छोड़ी थी और अब राज्य मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पास कर मुस्लिम समुदाय के ठेकेदारों के लिए 4% आरक्षण देने की घोषणा की है। नौकरी में तो समझ आता था लेकिन अब सरकारी ठेकों में भी आरक्षण हो रहा है। देखा जाये तो कम्युनल राजनीति और वोट बैंक की राजनीति को एक नया आयाम दिया जा रहा है। जो लोग बार-बार संविधान की प्रति दिखाते हैं और बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान का मान रखने का आह्वान करते हैं वही लोग बार-बार धर्म के नाम पर आरक्षण देकर बार-बार संविधान विरोधी कार्य कर रहे हैं जोकि दोहरा चरित्र ही नहीं बल्कि सबसे बड़ा राजनीतिक पाखंड भी है। कर्नाटक सरकार ने पिछले सप्ताह विधानसभा में जो बजट पेश किया था उसमें भी ऐलान किया गया था कि मुस्लिम लड़कियों के लिए 15 महिला कॉलेज खोले जाएंगे। सरकार ने कहा था कि इन कॉलेजों का निर्माण वक्फ बोर्ड की जमीन पर किया जाएगा, लेकिन इस पर सरकार पैसा खर्च करेगी। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जोकि राज्य के वित्त मंत्री भी हैं उन्होंने मुस्लिमों पर पैसे बरसाते हुए ऐलान किया था कि अल्पसंख्यकों की शादियों के लिए 50 हजार रुपये की सहायता दी जायेगी, वक्फ संपत्तियों और कब्रिस्तानों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 150 करोड़ रुपये दिये जाएंगे, मुस्लिम सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए 50 लाख रुपये का प्रावधान किया गया, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में नए आईटीआई कॉलेज की स्थापना और केईए के तहत मुस्लिम छात्रों के लिए 50 प्रतिशत शुल्क रियायत का ऐलान किया गया। इसके अलावा मुस्लिम लड़कियों के लिए आवासीय पीयू कॉलेज, मुस्लिम छात्रों के लिए राष्ट्रीय और विदेशी छात्रवृत्ति में वृद्धि, अतिरिक्त इमारतों के साथ बेंगलुरु के हज भवन का विस्तार और मुस्लिम छात्राओं को आत्मरक्षा को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। यही नहीं, मुख्यमंत्री ने यह भी ऐलान कर दिया कि इमामों की सैलरी बढ़ाकर 6000 रुपए मासिक कर दी जायेगी। भाजपा ने आरोप लगाया था कि बजट पर मुस्लिम लीग की छाप दिख रही है। इस आरोप पर आप निष्पक्ष रूप से गौर फरमाएंगे तो पाएंगे कि इसमें दम है क्योंकि तुष्टिकरण लगातार बढ़ता जा रहा है। देखा जाये तो तुष्टिकरण की नीति से किसी दल या वर्ग विशेष को अल्पकाल में भले फायदा हो सकता है लेकिन दीर्घकाल के हिसाब से देखें तो यह नीति किसी के हित में नहीं है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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