अखिलेश का पहला दाँव फेल हो गया तो अब खैरात बाँटने के वादे कर सत्ता पाना चाहते हैं
पहले बात बिजली की कि जाए तो बिजली यूपी की सियासत में हमेशा से सुर्खियां बटोरता रहा है। कभी राजनैतिक पार्टियां चुनाव आते ही अपने घोषणापत्र में गांवों में 6 से 8 घंटे और शहरी क्षेत्रों में 12 से 16 घंटे बिजली देने का वादा करती थीं।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने आप को बहुत बड़ा तकनीकविद् मानते हैं, इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है तो ऐसा होना स्वभाविक भी है। अखिलेश युवा नेता तो हैं ही। विकास की बड़ी-बड़ी बातें और दावे करते हुए बहुत शान से बताते हैं कि उनकी सरकार में यूपी का कितना विकास हुआ था। वह यह तक कहने से गुरेज नहीं करते हैं कि योगी सरकार जितने भी विकास कार्यों को गिना रही है, दरसअल वह उनके शासनकाल में ही शुरू किए गए थे। चुनाव प्रचार जब शुरू हुआ था, तब अखिलेश यादव प्रदेश की योगी सरकार को विकास के मुद्दे पर घेर रहे थे। योगी सरकार को नाकारा साबित कर रहे थे, अखिलेश के विकास वाले दांव से बीजेपी बैकफुट पर नजर आने लगी थी। लेकिन बीजेपी ने अपना ‘स्टैंड’ नहीं बदला, बीजेपी नेता विकास की बात करते रहे तो साथ में हिन्दुत्व का अलख भी जलाते और अखिलेश को कभी परिवार की आड़ में तो कभी तुष्टिकरण के बहाने घेरते रहते थे। अखिलेश को उनके राज में प्रदेश में फैली अराजकता, गंडागर्दी, साम्प्रदायिक हिंसा और पश्चिमी यूपी में हिन्दुओं के पलायन की याद दिलाई जाती। यह बताया जाता कि समाजवादी सरकार में बहू-बेटियों का घर से निकलना मुश्किल हो गया था। गुंडे-माफिया तांडव कर रहे थे। सपा राज में सरकारी भ्रष्टाचार के लिए भी उन पर तंज कसा जाता। जनता को यह बताया जाता कि जब सपा राज में यूपी में कहीं नौकरी निकलती थी तो पूरा समाजवादी कुनबा चाचा-भतीजे सब वसूली करने के लिए निकल पड़ते थे।
इसे भी पढ़ें: केजरीवाल ने भगवंत मान को आगे नहीं किया है बल्कि हालात देख अपने पैर पीछे खींचे हैं
सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर सबसे ज्यादा हमला बीजेपी की तरह से हो रहा था और हो रहा है, कांग्रेस और बसपा कभी-कभी ही अखिलेश के खिलाफ मुंह खोलते हैं। वहीं अखिलेश भी बीजेपी और योगी सरकार के खिलाफ हमलावर हैं। वह तो कांग्रेस और बसपा को लड़ाई में मानते ही नहीं हैं। एक तरह बीजेपी हिन्दुत्व का कार्ड खेल रही है तो दूसरी ओर अखिलेश यादव न खुलकर हिन्दुओं के पक्ष में बोल रहे हैं, न ही मुसलमानों के पक्ष में। एक तरह से अखिलेश दुधारी तलवार पर चल रहे थे, लेकिन अखिलेश यादव ने जैसे ही प्रथम चरण के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की सबको इस बात का विश्वास हो गया कि अखिलेश का मिजाज बदला नहीं है।
सपा प्रमुख को लग रहा था कि वह जनता की नाराजगी को भुनाकर और मुसलमानों को लुभा कर सत्ता हासिल कर लेंगे। लेकिन यह दांव सही नहीं पड़ने पर अखिलेश अब वोटरों को फ्री के झांसे में फंसाकर चुनाव जीतने की राह पर चल दिए हैं। पहले तीन सौ यूनिट फ्री बिजली देने की बात की। अब वह कह रहे हैं कि उनकी सरकार बनी तो यूपी के सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन की बहाली होगी। फिलहाल 2005 के बाद से नियुक्त हुए सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन व्यवस्था का फायदा नहीं मिल रहा है। मगर सवाल यह है कि अब क्यों अखिलेश पेंशन बहाली की बात कह रहे हैं। पेंशन बहाली की मांग तो कर्मचारी तब से कर रहे हैं जब 2012 से 2017 तक प्रदेश में अखिलेश की सरकार रही थी। सरकारी कर्मचारी कई बार पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू कराने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री से मिले भी थे। परंतु तब उन्होंने हाथ खड़े कर दिए थे। इसके साथ ही अखिलेश दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार बनी तो सरकारी कर्मचारियों के लिए कैशलैस इलाज की भी व्यवस्था शुरू कर दी जाएगी, जिसका आदेश अखिलेश की पूर्ववर्ती सरकार ने दिया था, लेकिन वह आरोप लगा रहे हैं कि योगी सरकार ने इस व्यवस्था को लागू नहीं किया।
पहले बात बिजली की कि जाए तो बिजली यूपी की सियासत में हमेशा से सुर्खियां बटोरता रहा है। कभी राजनैतिक पार्टियां चुनाव आते ही अपने घोषणापत्र में गांवों में 6 से 8 घंटे और शहरी क्षेत्रों में 12 से 16 घंटे बिजली देने का वादा करती थीं। कुछ बड़े नेताओं के जिलों को वीआईपी घोषित कर 24 घंटे बिजली दी जाती थी, इसीलिए रायबरेली, अमेठी, रामपुर, मैनपुरी जैसे तमाम वीआईपी जिलों में 24 घंटे बिजली आती थी, जबकि पूरा प्रदेश त्राहिमाम करता रहता था।
इसे भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश चुनावों में इस बार कमंडल की जगह मंडल हावी हो गया है
फ्री की बिजली के बहाने किसानों पर डोरे डालते हुए अखिलेश ने उनकी भी नलकूप की बिजली फ्री करने की बात कही थी। इससे पूर्व 28 दिसंबर 2021 को उन्नाव में अखिलेश यादव ने कहा कि अगर 2022 में उनकी सरकार बनती है तो साइकिल से चलने वालों की अगर एक्सीडेंट में मौत हो जाती है तो सपा सरकार उनके परिवार को पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद देगी। इससे पूर्व 18 दिसंबर को रायबरेली में जनसभाओं के दौरान उन्होंने घोषणा की थी कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी तो सभी गरीबों को हमेशा मुफ्त राशन दिया जाएगा। बहनों और महिलाओं को 500 की जगह 1500 रुपये समाजवादी पेंशन दी जाएगी। 07 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी कांड पर सियासत तेज करते हुए अखिलेश ने कहा था कि सपा सरकार बनने पर पीड़ित परिवारों को दो-दो करोड़ की आर्थिक मदद और नौकरी दी जाएगी। अखिलेश ने पीड़ित परिवारों से कहा था कि यूपी सरकार मदद नहीं करती हे तो सपा सरकार बनने पर पूरी मदद की जाएगी।
वैसे समाजवादी पार्टी अकेले नहीं हैं जो खैरात की सियासत कर रही है, करीब-करीब सभी दल खैरात बांटने के बड़े-बड़े दावे करने में लगे हैं। कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका वाड्रा भी इसी तरह की कभी नहीं पूरी हो सकने वाली कई घोषणाएं कर चुकी हैं। आम आदमी पार्टी ने तो सपा से पहले ही तीन सौ यूनिट फ्री बिजली की बात कह दी थी। अर्थशास्त्रियों का कहना हैं कि खैरात की सियासत देश के लिए किसी नासूर से कम नहीं है। वहीं राजनीति के जानकार कहते हैं कि जो दल या नेता सत्ता की दौड़ में काफी पीछे होता है या फिर सत्तारुढ़ पार्टी के सामने पिछड़ने लगता है, वह इस तरह की घोषणाएं ज्यादा करता है। राजनीति के जानकारों की इस बात में दम भी है जो सत्ता की लड़ाई से दूर होता है, उसे पता होता है कि सत्ता तो उसकी आ नहीं रही है, इसलिए उनके ऊपर चुनावी वायदे पूरा करने की भी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। बात समाजवादी पार्टी की कि जाए तो उसने भी तबसे खैरात की राजनीति को ज्यादा परवान देना शुरू किया है, जबसे उसे लगने लगा है कि वह थोड़े अंतर से सत्ता से दूर रह सकती है। इसी अंतर को दूर करने के लिए खैरात बांटने का खेल खेला जा रहा है।
-अजय कुमार
अन्य न्यूज़