Dara Shikoh Birth Anniversary: मुगल सल्तनत के इस शहजादे को कहा जाता था 'पंडित जी', जानिए रोचक बातें

Dara Shikoh
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मुगल शासक शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह का 20 मार्च को जन्म हुआ था। दारा को मुगल सल्तनत के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। शाहजहां भी यही चाहते थे कि उनके बाद दारा सत्ता संभाले, लेकिन औरंगजेब ने युद्ध में दारा को हराकर सत्ता हड़प ली थी।

मुगल सल्तनत का एक ऐसा शहजादा जिसकी हिंदू भी तारीफ करते थे। वह मुगल शासक शाहजहां का बड़ा बेटा दारा शिकोह था। आज ही के दिन यानी की 20 मार्च 1615 में दारा शिकोह का जन्म हुआ था। वह शाहजहां के सबसे बड़े बेटे थे, इसलिए उनको मुगल सल्तनत के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। शाहजहां भी यही चाहते थे कि उनके बाद दारा सत्ता संभाले, लेकिन औरंगजेब ने युद्ध में दारा को हराकर सत्ता हड़प ली थी। लेकिन इतिहास में दारा शिकोह को हमेशा एक खास जगह दी गई और सम्मान से याद किया गया। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर दारा शिकोह के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की भूमि अजमेर में 20 मार्च 1615 को दारा शिकोह का जन्म हुआ था। शाहजहां ने ख्वाजा मोइनुद्दीन से एक बेटे के लिए प्रार्थना की थी। वह 6 पुत्रों में सबसे बड़े बेटे दारा को मुगल साम्राज्य के भावी शासक के रूप में तैयार कर रहे थे। जहां दारा के अन्य भाइयों को सुदूर प्रांतों में नियुक्त किया गया था, लेकिन वह हमेशा शाही दरबार में अपने पिता शाहजहां के साथ रहते थे। दारा को कम उम्र से सूफी रहस्यवाद और कुरान में गहरी रुचि थी और इसमें उन्होंने दक्षता भी विकसित कर ली थी।

मुगल शहजादों में सबसे अलग

मुगलिया सल्तनत में लोग दारा को पंडित जी कहा करते थे। क्योंकि उनके आचार-विचार अन्य मुगल शहजादों से हटकर थे। दारा को संस्कृत और हिंदू धर्म ग्रंथों से प्यार था और बड़े भाई की इस प्रवृत्ति से औरंगजेब उससे चिढ़ता था। साल 1642 में मुगल बादशाह शाहजहां ने दारा शिकोह को 'शहजादा-ए-बुलंद इकबाल' की उपाधि से नवाजा था। वहीं दारा इलाहाबाद, गुजरात, मुल्तान, काबुल और बिहार के गवर्नर भी रह चुके थे। औरंगजेब की नजर भी मुगलिया सल्तनत की गद्दी पर थी, जिसकी वजह से दारा और औरंगजेब के बीच युद्ध छिड़ गया।

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दारा का अंतिम समय खराब था

दरअसल, औरंगजेब अपने बड़े भाई दारा शिकोह को काफिर समझता था। औरंगजेब को लगता था कि अगर दारा गद्दी पर बैठा तो इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा। वहीं दारा शिकोह का अंतिम समय बहुत खराब था। साल 1658 में वह सामूगढ़ की लड़ाई हार गए। हारे हुए शहजादे ने अफगानिस्तान के दादर में शरण मांगी। लेकिन मेजबान ने दारा को धोखा देते हुए औरंगजेब को खबर कर दी। जिसके बाद दारा को चिथड़ों में दिल्ली लाया गया और उसको जंजीरों में बांधकर राजधानी की गलियों में हाथी पर बैठाकर घुमाया गया। जिन दिल्ली की गलियों में दारा की तूती बोलती थी, उन सड़कों पर उसको घुमाया गया।

मृत्यु

औरंगजेब ने साम दाम दंड भेद से पहले शाहजहां को बंदी बना लिया और फिर दारा शिकोह को नजरबंद कर 10 सितंबर 1659 को उसका सिर धड़ से अलग करवा दिया। दारा शिकोह की हत्या के बाद इस्लामिक परंपरा के बगैर ही गोपनीय ढंग से शव को हुंमायूं के मकबरे में दफना दिया गया था।

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