आध्यात्मिक राष्ट्रीयता के जनक हैं महर्षि अरविन्द घोष

Shri Arvind Ghosh
Prabhasakshi

15 अगस्त 1872 को कोलकाता में श्री कृष्णघन घोष एवं मृणालिनी देवी के यहां अवतरित इस महान योगी के पिता बालक को अंग्रेजियत व साहिबी के रंग में रंगना चाहते थे। 5 वर्ष की उम्र में दार्जिलिंग केलारेंटो कन्वेंट स्कूल में तथा इसके 2 वर्ष बाद 1879 में भाई के साथ इंग्लैंड पढने भेज दिया गया।

महर्षि अरविंद घोष एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के साथ-साथ योगी, दार्शनिक, कवि और प्रकांड विद्वान भी थे। उनके क्रांतिकारी विचार और भाषणों में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों की कड़ीआलोचना शामिल रहती थी और समाचार पत्र "वंदे मातरम" तो अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आग उगलता था। अलीपुर बम कांड में गिरफ्तार किए गए 40 लोगों में श्री अरविंद घोष भी शामिल थे उन्होंने जेल जाने के अच्छे परिणाम को बताते हुए कहा था कि "ब्रिटिश सरकार का कोप भाजन बनकर मैं ईश्वर का अनुग्रह पात्र बन गया जिसके फलस्वरूप मैंने अंतस्थ ईश्वर को प्राप्त कर लिया है।" मातृभूमि के प्रति प्रेम की भावना का उच्च स्तर उनके हृदय में इस प्रकार समाया हुआ था कि उसे वे ईश्वर प्रदत्त प्रेरणा का रूप मानते थे।उनका मानना था कि राष्ट्रवाद उदान्त तथा दैवी शक्ति का प्रतीक है। राष्ट्रीयता एक परमात्मा से उद्भूत धर्म है। राष्ट्रीयता ईश्वर की शक्ति में अमर होकर रहती है और उसका किसी भी शस्त्र से संहार नहीं किया जा सकता है। उनके चिंतन में अतिमानुषी चेतना, वसुधैव कुटुंबकम, सर्वभूत हिताय, राष्ट्रीय एकता और मानव एकता के आदर्श को परस्पर पूरक होने तथा परम सत्ता केआरोहण और अवरोहण से प्रकृति और जगत की उत्पत्ति के विचार और राष्ट्रआत्मा की अवधारणा प्रमुखता से शामिल हैं। श्रीअरविंद "आध्यात्मिक राष्ट्रवाद" अथवा राष्ट्रवादी आध्यात्मिक दर्शन के जनक थे।

इसे भी पढ़ें: आजादी के लिए अपने प्राण देने से भी पीछे नहीं हटे थे खुदीराम बोस

15 अगस्त 1872 को कोलकाता में श्री कृष्णघन घोष एवं मृणालिनी देवी के यहां अवतरित इस महान योगी के पिता बालक को अंग्रेजियत व साहिबी के रंग में रंगना चाहते थे। 5 वर्ष की उम्र में दार्जिलिंग केलारेंटो कन्वेंट स्कूल में तथा इसके 2 वर्ष बाद 1879 में भाई के साथ इंग्लैंड पढने भेज दिया गया, जहां सेंट पॉल स्कूल में पढ़ाई की 1890 में 18 वर्ष की उम्र में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र पढ़ने के लिए में प्रवेश लिया। इस दौरान भारतीय विद्यार्थी मंडल की इंडियन मजलिस से जुड़े, देश प्रेम से ओतप्रोत हुए। संस्था के सचिव भी रहे। गुप्त संस्था कमल और कटार की सदस्यता ली। संदिग्ध लोगों की सूची में उनका नाम शामिल हो गया। पिता की इच्छा के अनुरूप आई सी एस की परीक्षा में शामिल हुए। परीक्षा उत्तीर्ण कर ली परंतु घुड़सवारी के आवश्यक इम्तहान में उत्तीर्ण नहीं हो सके। इंग्लैंड में रहकर उन्होंने अंग्रेजी फ्रेंड्स लैट्रिन इटालियन भाषाओं के साहित्य का अध्ययन किया तब उन्हें लगता था यही दुनिया का सर्वोच्च ज्ञान है। स्वदेश लौटे, बड़ौदा के राजकीय विद्यालय में ₹750 वेतन पर उप प्रधानाचार्य नियुक्त हुए बड़ौदा महाराज के निज सचिव भी रहे। 1893 से 1906 तक उन्होंने संस्कृत, बंगाली साहित्य, दर्शन शास्त्र और राजनीति विज्ञान का विशद अध्ययन किया। इसके पश्चात गौरव पूर्ण भारतीय अतीत से परिचित हुए। बड़ौदा से अपनी पत्नी को पत्र लिखते थे, उनमें भी राष्ट्रवाद के दर्शन होते थे जैसे-" मैं एक पागल हूं और मेरी पागलपन की तरंगों में से जो तीन तरंग मुख्य हैं उनमें एक यह कि संसार की सारी संपत्ति उस परमात्मा की है, दूसरी यह कि मैं परमात्मा का साक्षात्कार करने के लिए व्यग्र हूं और पूर्व आशान्वित हूं कि मैं उनके दर्शन पाकर रहूंगा, तीसरी है कि मैं अपने देश की भूमि, उसके पहाड़, नदियों तथा वनों को मात्र भौगोलिक सत्ता नहीं मानता बल्कि समस्त जड़ चेतन प्रकृति को माता मानता हूं और उसी के अनुसार उसकी पूजा उपासना करता हूँ। बंगाल विभाजन के बाद देश में उठी आंदोलन की आंधी ने उनके जीवन की दिशा बदली और वे वापस कोलकाता आ कर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। गरम दल की विचारधारा के पक्षधर श्री अरविंद घोष को अंग्रेजी सरकार ने कारागार भेज दिया। यहां रहकर उन्होंने गहन चिंतन, घनघोर साधना करते हुए दिव्य अनुभूतियां की, परम तत्व को पहचाना। 1911 में पांडिचेरी चले गए आजीवन योग साधना में बिताते हुए न केवल भारत के लिए अपितु विश्व कल्याण के लिए प्रेरक साहित्य का सृजन किया। उनके विचारोंऔर लेखन की अमूल्य धरोहर उनकी कृतियों- 

कारा कहिन, लाइफडिवाइन, सावित्री, ऐसेजऑन गीता, द फ्यूचर पोएट्री, सिंथेसिस ऑफ योगा, द ह्यूमन साइकिल, द आइडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी, कलेक्टेड पोयम्स एंड प्लेज, द मदर, फाउंडेशन ऑफ इंडियन कल्चर, ए डिफेंस ऑफ इंडियन कल्चर आदि में दृष्टव्य है। 5 दिसम्बर1950 को काया त्याग कर अनन्त यात्रा पर निकल गया। महान क्रांतिकारी,तत्व चिंतक,योगी का पुण्य स्मरण करते हुए कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धावनत हैं।

- शिवकुमार शर्मा

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़