Ram Krishna Paramhans Death Anniversary: देश के महान संत और आध्यात्मिक गुरु थे रामकृष्ण परमहंस

Ramakrishna Paramhans
Prabhasakshi

हुगली के समीपवर्ती कामारपूकर नामक गांव में 18 फरवरी 1836 को रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। बचपन में लोग इन्हें गदाधर के नाम से जानते थे। राम कृष्ण परमहंस ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। इन्होंने अपने बचपन में आर्थिक तंगी का सामना किया था।

भारत के बहुत प्रसिद्ध संतों में शुमार रामकृष्ण परमहंस ने आज ही के दिन यानी की 16 अगस्त को अपनी देह का त्याग किया था। स्वामी विवेकानंद जी परमहंस के विचारों से बहुत प्रेरित थे। इसीलिए उन्होंने परमहंस को अपना गुरु मान लिया था और उनके विचारों को गति प्रदान करने के लिए रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। बता दें कि राम कृष्ण परमहंस एक महान विचारक थे। उन्होंने सभी धर्मों को एक बताया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर राम कृष्ण परमहंस के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म

हुगली के समीपवर्ती कामारपूकर नामक गांव में 18 फरवरी 1836 को रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। बचपन में लोग इन्हें गदाधर के नाम से जानते थे। राम कृष्ण परमहंस ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। इन्होंने अपने बचपन में आर्थिक तंगी का सामना किया था। लेकिन राम कृष्ण परमहंस में आस्था, सद्भावना और धर्म के प्रति अपार श्रद्धा थी। बता दें कि वह बचपन से मां काली के अनन्य भक्त थे। राम कृष्ण परमहंस ने अपना पूरा जीवन मां काली को समर्पित कर दिया था। 

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विवाह

राम कृष्ण परमहंस का बाल विवाह हो गया था। उनकी पत्नी का नाम शारदामणि था। लेकिन परमहंस के मन में स्त्री को लेकर सिर्फ मातृ भक्ति का भाव था। उनके मन में सांसारिक जीवन को लेकर कोई उत्साह नहीं था। वहीं महज 17 साल की उम्र में परमहंस ने अपने घर का त्याग कर दिया और स्वयं को मां काली के चरणों में समर्पित कर दिया। वह दिनभर राम मां काली की साधना में लीन रहते थे। 

मां काली की साधना

राम कृष्ण परमहंस मां काली के परम भक्तों में से एक थे। कुछ लोगों का तो यहां तक मानना था कि मां काली उनसे मिलने के लिए आती हैं। वह मां काली को अपने हाथों से भोजन कराते थे। वहीं जब मां काली उनके पास से जाती तो वह छोटे बच्चे की तरह तड़पन और रोने लगते थे। वह अपनी भक्ति के कारण पूरे गांव में फेमस थे। इसीलिए लोग दूर-दराज से राम कृष्ण परमहंस के दर्शन पाने के लिए आते थे। 

ऐसे मिली परमहंस की उपाधि

बता दें कि राम कृष्ण जी एक संत थे और उन्होंने परमहंस की उपाधि अर्जित की थी। दरअसल, यह उपाधि सिर्फ उन्हें मिलती है, जो अपनी इंद्रियों को अपने वश में करने की शक्ति रखते हों। ऐसे लोग जिनके पास ज्ञान का अथाह सागर हो। इसी कारण रामकृष्ण को भी परमहंस की उपाधि मिली और वह राम कृष्ण परमहंस कहलाए। उन्होंने अपनी योग साधना से कई सिद्धियां प्राप्त की थीं। अपनी इंद्रियों को वश में कर वह एक महान विचारक और उपदेशक के रूप में जाने गए। रामकृष्ण परमहंस ने निराकार भक्ति पर जोर दिया। 

नरेंद्र ऐसे बनें स्वामी विवेकानंद

राम कृष्ण परमहंस के ज्ञान का प्रकाश ऐसा था कि जो इस प्रकाश में आता उसका पूरा अस्तित्व ही बदल जाता था। इन्होंने अपने ज्ञान के प्रकाश से नरेंद्र जैसे साधारण बालक को स्वामी विवेकानंद बना दिया। नरेंद्र जो आध्यात्म से दूर रहने के साथ तर्क करने में विश्वास रखता था। उसको राम कृष्ण परमहंस ने आध्यात्म का ज्ञान कराया और ईश्वर की शक्ति से परिचित करवाया। उस बालक को नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनाया। परमहंस ने राष्ट्र को एक ऐसा पुत्र दिया जिसने राष्ट्र की सीमा पार भारत को सम्मान दिलाने का काम किया। युवा वर्ग को जगाकर राम कृष्ण मिशन की स्थापना की और देश को जागरुक बनाने का अभियान चलाया।

निधन

राम कृष्ण परमहंस को आखिरी समय में गले का रोग हो गया था। वहीं 16 अगस्त 1886 को उन्होंने कोसीपोर उड्डियानबती में अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया।

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