Aurobindo Ghosh Birth Anniversary: 'मानव सेवा' का ज्ञान दिलाने वाले महापुरुष थे अरबिंदो घोष, जेल में हुई थी दिव्य अनुभूति
आज के दिन यानी की 15 अगस्त को महान क्रांतिकारी महर्षि अरबिंदो घोष का जन्म हुआ था। अरबिंदो घोष उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। बाल गंगाधर से प्रभावित होकर वह स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हुए थे।
हमारे भारत देश में एक से बढ़कर एक क्रांतिकारी हुए हैं। जिन्होंने देश को आजाद करने में अहम भूमिका निभाई है। आज भले ही हम भारत की आजादी का 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। लेकिन बता दें कि आज ही के दिन यानी की 15 अगस्त को महर्षि अरबिंदो घोष का जन्म भी हुआ था। अरबिंदो घोष उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर महर्षि अरबिंदो घोष के जीवन से जु़ड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
कोलकाता में 15 अगस्त 1872 को महर्षि अरबिंदो घोष का जन्म हुआ था। अरविंद घोष के पिता का नाम के. डी. कृष्णघन घोष था। जोकि पेशे से डॉक्टर थे और उनकी माता का नाम स्वर्णलता था। वहीं अरविंद घोष की पत्नी का नाम मृणालिनी था। जब वह 5 साल के थे तो उन्हें पढ़ाई के लिए दार्जिलिंग के लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में भेजा गया। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अरबिंदो घोष ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की थी।
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इसके बाद अरबिंदो घोष ने अपने पिता की इच्छानुसार कैम्ब्रिज में रहते हुए आईसीएस के लिए आवेदन किया। फिर साल 1890 में उन्होंने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण भी कर ली। लेकिन इस दौरान वह घुड़सवारी के इम्तिहान में पास नहीं हो पाए। जिसके कारण उन्हें भारत सरकार की सिविल सेवा का मौका नहीं मिल सका। वहीं भारत आने के बाद गायकवाड़ नरेश अरबिंदो घोष की विचारधारा से प्रभावित हुए। अरबिंदो घोष से प्रभावित होकर गायकवाड़ नरेश ने उन्हें बड़ौदा में निजी सचिव के पद पर नियुक्त किया। यहीं से वह आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए।
क्रांतिकारियों का मिला साथ
इस दौरान महर्षि अरबिंदो घोष के भाई बारिन ने उनकी मुलाकात जतिन बनर्जी, सुरेंद्रनाथ टैगोर और बाघा जतिन जैसे क्रांतिकारियों से करावाया। वहीं साल 1902 में वह अहमदाबाद के कांग्रेस सत्र में शामिल हुए। यहां पर उनकी मुलाकात बाल गंगाधर से हुई और महर्षि अरबिंदो घोष बाल गंगाधर से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो गए। महर्षि ने साल 1906 में बंग-भग आंदोलन के दौरान बड़ौदा से कलकत्ता की ओर कदम बढ़ाए। यही वह दौर था जब उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
नौकरी छोड़ने के बाद महर्षि अरबिंदो ने 'वंदे मातरम्' साप्ताहिक के सहसंपादन के तौर पर अपना काम शुरू किया। इस दौरान वह ब्रिटिश सरकार के अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करते और लोगों को जागरुक करने का काम करते। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उनपर मुकदमा दर्ज कर लिया गया। लेकिन वह जल्द ही छूट गए। फिर साल 1905 में बंगाल विभाजन के बाद जो क्रांतिकारी आंदोलन हुआ। उससे महर्षि अरबिंदो घोष का नाम जोड़ा गया। वहीं साल 1908-09 में अरबिंदो घोष पर लीपुर बमकांड मामले में राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया।
जेल यात्रा से बदला जीवन
अरबिंदो घोष पर मुकदमा चलाए जाने के बाद उन्हें अलीपुर जेल भेज दिया गया। यहीं से अरबिंदो घोष का जीवन पूरी तरह से बदल गया और वह साधना व तप की ओर बढ़ने लगे। जेल में वह गीता पढ़ते और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने लगे। कहा तो यह भी जाता है कि जेल में महर्षि अरबिंदो घोष को भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हुए। जब वह जेल से छूटे तो उन्होंने आंदोलन से न जुड़कर साल 1910 में पुड्डचेरी चले गए। यहां पर उन्होंने कठिन तप और साधना तक योग सिद्धि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अरबिंदो आश्रम ऑरोविले की स्थापना की और काशवाहिनी की रचना की। बता दें कि महर्षि अरबिंदो घोष एक महान योगी और दार्शनिक थे। महर्षि ने योग साधना पर कई मौलिक ग्रंथ लिखे थे।
मौत
बता दें कि 5 दिसंबर 1950 को महर्षि अरबिंदो घोष का निधन हो गया था। लेकिन बताया जाता है कि महर्षि के निधन के 4 दिन बाद तक उनके पार्थिव शरीर में दिव्य आभा बने रहने के कारण उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया। जिसके बाद आश्रम में ही 9 दिसंबर 1950 को महर्षि अरबिंदो घोष को समाधि दी गई।
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