Kittur Chennamma Birth Anniversary: देश की रक्षा के लिए रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों संग किया था महासंग्राम
आज ही के दिन यानी की 23 अक्तूबर को कित्तूर चेन्नम्मा का जन्म हुआ था। वह एक ऐसी वीरांगना थीं, जिन्होंने सीमित शक्ति होने के बाद भी साल 1857 के संग्राम से पहले अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लिया था।
आज ही के दिन यानी की 23 अक्तूबर को कित्तूर चेन्नम्मा का जन्म हुआ था। वह कित्तूर की रानी थीं, जोकि वर्तमान कर्नाटक में एक पूर्व रियासत थी। रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों को युद्ध में कड़ी टक्कर दी थी। बता दें कि जर्जर हो चुके कित्तूर के किले की बुलंद दीवारें आज भी बताती हैं कि यहां के वीर और वीरांगनाएं किसी के सामने नहीं झुके। रानी चेन्नम्मा की बहादुरी के किस्से आज भी लोगों को उस वीरांगना की याद दिलाते हैं। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर कित्तूर चेन्नम्मा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में..
वीरांगना रानी थीं चेन्नम्मा
1857 के युद्ध को अंग्रेजों के खिलाफ भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है। लेकिन इससे भी कई साल पहले कित्तूर ने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी। कित्तूर जैसे छोटे राज्य ने कभी पेशवाओं और मुगलों के अलावा अंग्रेजों के सामने भी घुटने नहीं टेके। यही कारण रहा कि राजा मल्लसर्ज की मौत के बाद रानी चेन्नम्मा ने कित्तूर की सत्ता संभाली। वह एक ऐसी वीरांगना थीं, जिन्होंने सीमित शक्ति होने के बाद भी साल 1857 के संग्राम से पहले अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लिया था।
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अंग्रेजों को था खजाना पाने का लालच
बता दें कि धारवाड़ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का ऑफिस हुआ करता था। वहां के कलेक्टर जॉन थैकरे खजाने के लालच में साल 1984 में अपनी सेना लेकर कित्तूर पर आक्रमण करने पहुंचे। इस दौरान रानी चेन्नम्मा युद्ध में बहादुरी से लड़ीं और थैकरे को मार गिराया। थैकरे की मौत अंग्रेजों के लिए बड़ा झटका था। इस युद्ध के बाद रानी चेन्नम्मा का प्रभाव स्थापित हो गया था। 19वीं सदी की शुरूआत में कित्तूर के खजाने में कई बेशकीमती हीरे-जवारात और 15 लाख रुपए नकद हुआ करते थे। इसी को हड़पने के लिए अंग्रेजों ने रानी के राज्य में हमला किया।
हालांकि कित्तूर पर हमला करने वाले अंग्रेज पहले नहीं थे। बताया जाता है कि पेशवाओं की नजर भी कित्तूर के खजाने पर थी। इस खजाने के पाने के लिए ही पेशवा बाजीराव ने कित्तूर के राजा मल्लसर्ज को बंदी बना लिया था। लेकिन उनकी हालत बिगड़ने के बाद उनको रिहाकर दिया गया था। लेकिन अपने राज्य कित्तूर वापसी के दौरान राजा मल्लसर्ज की मौत हो गई, जिसके बाद रानी चेन्नम्मा ने शासन संभाला था।
अंग्रेजों ने दोबारा किया हमला
पहली हार से तिलमिलाए अंग्रेजों ने दूसरी बार कित्तूर पर हमला कर दिया। इस दौरान उन्होंने यह बहाना बनाया कि जिस राज्य का शासक सशक्त नहीं है या जिस राजा की कोई संतान नहीं है, उस राज्य को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी चलाएगी। बाद में साल 1948 में यह लार्ड डलहौजी की हड़प नीति बनीं। इस नीति का इस्तेमाल सतारा, झांसी, नागपुर और अवध सहित कई अन्य राज्यों पर कब्जा करने के लिए किया गया।
अंग्रेजों द्वारा किए गए दोबारा हमले के दौरान कित्तूर के कुछ लोगों को अंग्रेजों ने राजा बनने का लालच दिया और उन लोगों के जरिए बारूद में गोबर मिलवा दिया। इसके कारण रानी चेन्नम्मा युद्ध हार गईं और अंग्रेजों ने उनको बंदी बनाकर बैलहोंगल के किले में एकांत कारावास में कैद कर दिया।
मृत्यु
बता दें कि 21 फरवरी 1829 को बीमारी के कारण रानी चेन्नम्मा का निधन हो गया था।
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