निगेटिव रोल में भी हीरोइन से अधिक चर्चा में रहीं ललिता पवार
ललिता पवार का जन्म 18 अप्रैल 1916 को नासिक में हुआ था। उनका बचपन का नाम अंबिका था फिल्मों में उन्हें ललिता के नाम से जाना गया। इनके पिता का नाम लक्ष्मण राव सगुन और माता का नाम अनुसूया था। ललिता एक संपन्न घराने से थीं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई।
ललिता पवार हिन्दी सिनेमा की ऐसी अभिनेत्री रही हैं जिन्होंने अपनी अधिकतर फिल्मों में निगेटिव भूमिकाएं निभाई थीं। उनका अभिनय इतना सशक्त और सजीव था की फिल्में देखकर लगता ही नहीं था की वह अभिनय कर रही हैं या यह सब सत्य में घटित हो रहा है। अपने अभिनय से ललिता पवार दर्शको के मन-मस्तिष्क में इस कदर छा जाती थीं कि दर्शक उनकी फिल्म देखने के बाद सिनेमा हाॅल से निकलने के बाद भी उनकी चर्चा घंटों तक किया करते थे।
ललिता पवार का जन्म 18 अप्रैल 1916 को नासिक में हुआ था। उनका बचपन का नाम अंबिका था फिल्मों में उन्हें ललिता के नाम से जाना गया। इनके पिता का नाम लक्ष्मण राव सगुन और माता का नाम अनुसूया था। ललिता एक संपन्न घराने से थीं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई।
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11 वर्ष की उम्र में ललिता अपने पिता और और छोटे भाई शांताराम के साथ पुणे आई जहां उन्हें आर्यन फिल्म कंपनी के स्टूडियो में एक फिल्म की शूटिंग देखने का मौका मिला। फिल्मों में ललिता की रूचि को देखते हुए फिल्म निर्देशक नाना साहेब सरपोतदार ने उन्हें बाल भूमिकाएं करने का ऑफर दिया और यहां से ही ललिता के फिल्मी सफर की शुरूआत हुई। यह समय था जब मूक फिल्में बना करती थीं। ललिता पवार की पहली फिल्म 1927 में बनी ‘पतितोद्धार’ थी जो एक मूक फिल्म थी इसके बाद 1928 में उन्होंने फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ में काम किया और पश्चात कई और मूक फिल्मों ‘नेताजी पालेकर’ ‘संत दामाजी’ ‘अमृत’ ‘गोरा कुंभर’ इत्यादि में भी। 1930 में बनी फिल्म ‘चतुर संदरी’ में तो ललिता ने 17 रोल किए थे जोएक रिकार्ड है।
जब बोलती फिल्मों का जमाना आया तब 1932 में ललिता को फिल्म मिली ‘कैलाश’ जिसमें उन्होने तिहरी भूमिका निभाई थी, इस फिल्म में नायिका, मां और खलनायिका तीनो ही रोल में वह खुद थीं और इन तीनों रूप में उन्हें बहुत पसंद किया गया। गीत-संगीत में भी ललिता पवार की पकड़ काफी अच्छी थी। 1935 में बनी फिल्म ‘हिम्मते मर्दां’ में ललिता ने एक गाना भी गाया था ‘नील आभा में प्यारा गुलाब रहे, मेरे दिल में प्यारा गुलाब रहे।’ जो उस समय का काफी हिट गीत रहा। ललिता की शादी गणपतराव पवार से हूुई थी किन्तु कुछ कारणों के चलते उनका डिवोर्स हो गया, बाद में उन्होंने फिल्म प्रोडयूसर राजप्रकाश गुप्ता से शादी की।
ललिता पवार ने बॉलीवुड की कुछ थ्रिलर फिल्मों में भी काम किया। मस्तीखोर माशूक और भवानी तलवार, प्यारी कटार और जलता जिगर, कातिल कटार इत्यादि उनकी कुछ प्रारंभिक फिल्में थीं। फिर जब जमाना पौराणिक फिल्मों का आया तो ललिता पवार को इन फिल्मों में भी काफी काम मिला और उनके किरदारों को लोगों ने खूब सराहा। 1938 में बनी फिल्म ‘राजकुमारी’ में ललिता पवार का डबल रोल था।
1941 में मराठी फिल्मों के मशहूर उपन्यासकार विष्णु सखाराम खांडेकर की कहानी पर बनी फिल्म अमृत में ललिता पवार ने मोची का किरदार निभाया था, उनका यह अभिनय इतना सजीव था कि इस रोल के बाद अपनी असली जाति बताने के लिए ललिता को अपना जाति प्रमाण पत्र दिखाना पड़ा।
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ललिता पवार की जिन्दगी से एक कठिन मोड़ उस समय आया जब 1942 में फिल्म जंग-ए-आजादी में वे भगवान दादा के साथ काम कर रही थीं। इस फिल्म के एक सीन में भगवान दादा को ललिता को थप्पड़ मारना था। थप्पड़ ललिता पवार को इतनी जोर का लगा कि वह वहीं गिर गईं, उन्हें लकवा हो गया जिसकी वजह से उनकी एक आँख छोटी हो गई। इलाज के लगभग 2 साल के विराम के बाद 1944 में ललिता पवार ने फिल्मों में वापस एंट्री तो की पर हीरोइन के लिए नहीं बल्कि चरित्र रोल में, 1944 में फिल्म ‘रामशास्त्री’ और 1948 में एस.एफ.यूनिस की फिल्म ‘गृहस्थी’ में वे क्रूर सास बनकर आईं। 1950 में वी. शांताराम की फिल्म ‘दहेज’ में भी ललिता पवार कठोर सास बनी। एक के बाद एक कई फिल्मों में कठोर, दुःख पहुंचाने वाली सास के रूप में भूमिकाएं करते हुए ललिता पवार की पहचान बहू को दुःख देने वाली सास के रूप में स्थापित हो गई।
1955 में ललिता पवार ने राजकपूर की फिल्म श्री 420 में एक नरम दिल की औरत का रोल भी किया, इसमें वे केले वाली बनी थीं इस फिल्म में राजकपूर उन्हें दिलवाली कहते थे। अपने इस रोल में भी ललिता पवार काफी फेमस हुईं। 1959 में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘अनाड़ी’ में ललिता पवार को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला।
1980 में निर्देशक विजय सदानाह की फिल्म ‘सौ दिन सास के’ में ललिता पवार क्रूर सास के रोल में इतनी हिट हुईं कि इस फिल्म के बाद कई कठोर सासों को ललिता पवार ही कह दिया जाता।
ललिता पवार ने लगभग 700 फिल्मों में काम किया। सुजाता, हम दोनों, संपूर्ण रामायण, जंगली, प्रोफेसर, घराना, खानदान, आंखें, आनंद, जिस देश में गंगा बहती है, कोहरा, संगम, बांबे टू गोवा, तपस्या, आईना, काली घटा, फिर वही रात और नसीब फिल्मों में उनकी भूमिकायें यादगार रहीं।
ललिता पवार ने छोटे पर्दे पर भी बहुत ही संजीदा काम किया, रामानंद सागर के लोकप्रिय टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ में टेढ़ी चाल से चलती मंथरा का रोल उन्होंने इतना बखूबी निभाया कि मंथरा के पात्र को हर घर में बच्चा बच्चा भी जानने लगा।
ललिता पवार ने अभिनय भले ही कितने ही क्रूर किए हों किन्तु असल जिंदगी में वे बहुत ही नरम दिल की महिला थीं। उनकी जिन्दगी का अंतिम समय काफी कष्टप्रद बीता, ललिता पवार को जबड़े का कैंसर हो गया था और इसके बाद उनकी हालत लगातार गिरती गई। अपनी तबियत और अंतिम परिस्थितियों को देखकर कई बार ललिता पवार मजाक में कहती थीं कि शायद इतने खराब रोलों की सजा भुगत रही हूं।
कठिन बीमारी के चलते 24 फरवरी 1998 को 82 साल की उम्र में ललिता पवार का पुणे में अपने बंगले आरोही में निधन हो गया। आज ललिता पवार भले ही हमारे बीच नहीं हैं किन्तु फिल्मों में उनकी निभाई भूमिकाओं से वे हम सबके बीच सदैव मौजूद रहेंगी।
- अमृता गोस्वामी
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