रानी दुर्गावती ने मुगलों के खिलाफ लिया था लोहा, अपने सीने में उतारी थी कटार
रानी दुर्गावती ऐसी रानी थी जिन्होंने अपने ही सीने में कटार मारकर अपनी जान ले ली थी। मगर उन्हें अकबर के सामने झुकना पसंद नहीं था। अपनी शान को बचाने के लिए प्राणों को न्यौछावर करने वाली थी रानी दुर्गावती।
देशभर में आज दशहरा की धूम है, जिसे हम बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मना रहे है। आज ही के दिन वर्ष 1524 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल के घर रानी दुर्गावती का जन्म हुआ था। दुर्गा अष्टमी पर जन्म होने के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया था। रानी दुर्गावती एक ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने मध्य प्रदेश में शासन किया। रानी दुर्गावती के सम्मान में भारत सरकार ने वर्ष 1988 में एक पोस्टल स्टाम्प भी जारी किया था। रानी दुर्गावती की वीरता और कहानियां आज भी देश की करोड़ों महिलाओं को प्रेरित करती है।
पति की मृत्यु के बाद संभाला शासन
बता दें कि रानी दुर्गावती अपने नाम के साथ न्याय करती थी। उन्हें तेज, साहस, शौर्य था। इनकी इन सभी खूबियों के कारण ही उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक काफी जल्दी ही फैल गई थी। जानकारी के मुताबिक महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल की इकलौती संतान थी। उनका विवाह राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह के साथ हुआ था। हालांकि दुर्भाग्यवश विवाह के मात्र चार वर्ष बीतते ही उनके पति राजा दलपत शाह का निधन हो गया था। इसके बाद रानी दुर्गावती ने अपने तीन वर्ष के पुत्र की जिम्मेदारी के साथ अपने राज्य का शासन भी संभाला। उन्होंने खुद ही गढ़ मंडला की बागडोर अपने हाथ में ली थी। बता दें कि वर्तमान समय का जबलपुर में उस समय उनका शासन था।
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साहस से किया दुश्मनों को परास्त
रानी दुर्गावती को शासन के साथ साथ अपनी व अपने राज्य की भी अच्छे से देखभाल करनी पड़ी थी। उनपर सूबेदार बाजबहादुर ने भी बुरी नजर डाली थी मगर अपनी हिम्मत से रानी दुर्गावती ने उसको उलटे पांव लौटाया था। उसके साथ रानी दुर्गावती ने दूसरी बार भी जमकर युद्ध किया मगर उसे मुंह की खानी पड़ी। हालांकि इसके बाद वो फिर कभी लौटकर नहीं आया। जानकारों का मानना है कि रानी दुर्गावती इतनी साहसी थी कि उन्होंने अपने चातुर्य और साहस से मुस्लिम राज्यों को कई बार युद्ध में परास्त किया था। युद्ध में बुरी तरह हारने के बाद इन राज्यों रानी दुर्गावती के राज्य की तरफ कभी पलटकर नहीं देखा। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि रानी दुर्गावती वीरांगना थी। कहा जाता है कि अगर उन्हें अपने राज्य में शेर के होने की जानकारी मिल जाया करती थी तो वो शस्त्र उठाकर शेर का शिकार करने चल देती थी।
अंत समय में भी दिखाया शौर्य
जानकारी के मुताबिक गोंडवाना का राज महारानी दुर्गावती ने कुल 16 वर्षों तक संभाला। इस दौरान उन्होंने मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी और धर्मशालाएं भी बनवाई थी। उनके राज के दौरान हर तरफ विकास हुआ था। रानी दुर्गावती इतनी प्रभावशाली थी कि उन्होंने अकबर के सामने भी झुकने से इंकार कर दिया था। रानी दुर्गावती ने अपनी अस्मिता को बचाने और अंत समय को नजदीक जानकर अपनी जान दे दी थी। उन्होंने वर्ष 1564 में अपनी ही कटार से सीने में वार कर बलिदान कर दिया था। आज भी उनका नाम भारत की महान वीरांगनाओं में शामिल किया जाता है।
- रितिका कमठान
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