Guru Arjun Dev Death Anniversary: मानवता और धर्म के सच्चे सेवक थे गुरु अर्जुन देव, जानिए रोचक बातें

Guru Arjun Dev
Prabhasakshi

मुगल शासक जहांगीर के आदेश के अनुसार, गुरु अर्जुन देव को गिरफ्तार कर उन्हें पांच दिन तक अलग-अलग यातनाएं दी गईं। अंत में 30 मई 1606 को मुगल सैनिकों ने लाहौर की भीषण गर्मी में गुरु अर्जुन देव को गर्म तवे पर बिठाया और ऊपर से गर्म रेत और तेल डाला गया।

आज ही के दिन यानी की 30 मई को शहीदों के सरताज, शांति के पुंज और सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी की शहादत हुई ती। उनको मानवता के सच्चे सेवक और धर्म की रक्षा करने वाला माना जाता था। गुरु अर्जुन देव शांत और गंभीर स्वभाव के मालिक होने के साथ ही अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत की सेवा किया करते थे और उनके मन में सभी धर्मों के प्रति अथाह स्नेह था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु अर्जुन देव के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म

पंजाब के गोइंदवाल साहिब में 15 अप्रैल 1563 को गुरु अर्जुन देव का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम गुरु रामदास और माता का नाम भानी जी था। गुरु अर्जुन देव का पालन पोषण गुरु अमरदास जी जैसे गुरु और बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरुषों की देखरेख में हुआ। वह बचपन से ही शांत स्वभाव और हमेशा भक्ति में लीन रहते थे। गुरु अमरदान ने यह भविष्यवाणी की थी कि वह 'वाणी' की रचना करेंगे। गुरु अर्जुन देव ने करीब साढ़े 11 साल तक गोइंदवाल साहिब में रहे और बाद में उनके पिता परिवार सहित अमृतसर आ गए।

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फिर 1 सितम्बर 1581 को जब गुरु रामदास ने गुरु अर्जुन देव को गुरु की गद्दी सौंपी तो उनके अन्य पुत्र पृथ्वी चंद ने इसे फैसले पर नाराजगी जताई। उनकी नाराजगी इतनी अधिक बढ़ गई कि वह हर तरह से गुरु अर्जुन देव का विरोध करने लगे। गुरु रामदास ने पृथ्वी चंद का काफी समझाने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने अपने पिता की बात नहीं मानी। वहीं गुरु की गद्दी संभालने के बाद गुरु अर्जुन देव ने धर्म प्रचार और लोक भलाई के कार्यों में तेजी लाई।

हरिमंदिर साहिब का निर्माण

गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर में संतोखसर तथा अमृत सरोवरों का काम करवाया और अमृत सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब का निर्माण कराया। इसे 'स्वर्ण मंदिर' और 'गोल्डन टेंपल' के नाम से भी जाना जाता है। गुरु अर्जुन देव ने इस मंदिर का शिलान्यास मुसलमान फकीर साईं मियां मीर जी से करवाकर धर्म निरपेक्षता की भावना का सबूत दिया। स्वर्ण मंदिर के चार दरवाजे इस बात का प्रतीक है कि यह हर धर्म और जाति के लिए खुला है।

इसके साथ ही उन्होंने करतारपुर साहिब, छेहर्टा साहिब, तरनतारन साहिब और श्री हरगोबिंदपुरा आदि नए नगर बसाए। देखते ही देखते अमृतसर शहर विश्व भर की आस्था का केंद्र बन गया। जब वह गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया जा रहा था। तब उनके भाई ने मुगल शासक अकबर से गुरु अर्जुन देव की शिकायत करते हुए कहा कि वह एक ऐसा ग्रंथ तैयार कर रहे हैं, जिसमें इस्लाम धर्म की निंदा की गई। तब मुगल बादशाह अकबर ने यह ग्रंथ देखने की इच्छा जाहिर की। जब अकबर ने भाई गुरदास जी तथा बाबा बुड्ढा जी से 'वाणी' बनी तब उनकी सारी शंकाएं दूर हो गईं।

मुगल शासक अकबर की मृत्यु के बाद उसका बेटा जहांगीर ने बादशाह बना तो उसने गुरु अर्जुन देव के भाई पृथ्वी चंद से नजदीकियां बढ़ाई। दरअसल, जहांगीर को अर्जुन देव के बढ़ती लोकप्रियता पसंद नहीं आ रही थी। साथ ही वह इस बात से भी नाराज था कि उन्होंने जहांगीर के भाई खुसरो की मदद की थी। जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिया। जब गुरु अर्जुन देव को यह पता चला कि तो बाल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंपकर वह लाहौर चल दिए।

मृत्यु

मुगल शासक जहांगीर के आदेश के अनुसार, गुरु अर्जुन देव को गिरफ्तार कर उन्हें पांच दिन तक अलग-अलग यातनाएं दी गईं। अंत में 30 मई 1606 को मुगल सैनिकों ने लाहौर की भीषण गर्मी में गुरु अर्जुन देव को गर्म तवे पर बिठाया और ऊपर से गर्म रेत और तेल डाला गया। जब अत्यधिक यातना के कारण वह बेहोश हो गए, तो उनके शरीर को रावी नदी में बहा दिया गया।

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