Captain Vikram Batra Birth Anniversary: अच्छी नौकरी छोड़ कैप्टन विक्रम बत्रा ने चुनी देश सेवा, शेरशाह से खौफ खाते थे पाकिस्तानी

Captain Vikram Batra
Prabhasakshi

आज के दिन यानी की 9 सितंबर को कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्मदिन है। कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने साहस के साथ बेहतरीन कौशल का भी परिचय दिया था। मर्चेंट नेवी के लिए विक्रम बत्रा हॉन्गकॉन्ग की कंपनी में चयनित हो गए थे। लेकिन उन्होंने इस नौकरी को छोड़ देश सेवा को चुना।

भारतीय सेना में परमवीर चक्र हासिल करना हर सेना के जवान के लिए गौरव की बात होती है। बहुत कम ऐसे वीर हुए हैं, जिन्होंने युद्ध में दुश्मन को अपने अदम्य साहस का परिचय देकर इस सम्मान को प्राप्त किया है। ऐसे ही एक वीर जवान कैप्टन विक्रम बत्रा थे। जिन्होंने महज 24 साल की उम्र में मरणोपरान्त यह गौरव हासिल किया था। कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने साहस के साथ बेहतरीन कौशल का भी परिचय दिया था। बता दें कि आज के दिन यानी की 9 सितंबर को कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था। 

जन्म और शिक्षा

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम गिरधारी लाल बत्रा था जो कि एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे। वहीं उनकी मां भी एक स्कूल टीचर थीं। विक्रम बत्रा जुड़वा भाइयों में बड़े थे। वह बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी ज्यादा होशियार थे। साथ ही बत्रा एक बेहतरीन खिलाड़ी भी थे। स्कूल के दिनों में बत्रा ने दिल्ली में हुए यूथ पार्लियामेंट्री कॉम्प्टीशन में राष्ट्रीय स्तर पर पार्टिसिपेट किया था। विक्रम बत्रा ने अपने स्कूल-कॉलेज की तरफ से टेबल टेनिस, कराटे और अन्य खेलों में हिस्सा लिया करते थे। 

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बता दें कि बत्रा टेबल टेनिस के बेहतरीन खिलाड़ी थे। साल 1990 में बत्रा ने अपने भाई विशाल के साथ स्कूल की तरफ से टेबल टेनिस के लिए ऑल इंडिया केविएस नेशनल्स में प्रतिनिधित्व किया था। इसके अलावा उन्होंने कराटे में भी ग्रीन बेल्ट होकर नेशनल लेवल पर कैम्प में भाग लिया था। वहीं पालमपुर में स्कूल शिक्षा के बाद विक्रम ने चंडीगढ़ में स्नातक की पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने एनसीसी का सर्टिफिकेट भी हासिल किया। बत्रा ने दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस की परेड में भी हिस्सा लिया और यहीं से उन्होंने सेना में जाने का फैसला कर लिया।

छोड़ दी आकर्षक नौकरी

बता दें कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान मर्चेंट नेवी के लिए विक्रम बत्रा हॉन्गकॉन्ग की कंपनी में चयनित हो गए थे। लेकिन उन्होंने इस नौकरी को छोड़ देश सेवा को चुना। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी होने के बाद विक्रम बत्रा ने संयुक्त रक्षा सेवा की तैयारी शुरू कर दी। साल 1996 में बत्रा का सर्विसेस सिलेक्शन बोर्ड में चयन हो गया और यह इंडियन मिलिट्री एकेडमी से जुड़ने के साथ वे मानेकशॉ बटालियन का हिस्सा बने। फिर ट्रेनिंग पूरी होने के 2 साल बाद उनको जंग के मैदान में जाने का मौका मिला। 

कारगिल युद्ध

साल 1997 में विक्रम बत्रा को जम्मू में सोपोर में 13 जम्मू-कश्मीर राइफ्लस में लेफ्टिनेट पद पर नियुक्ति मिली। इसके बाद साल 1999 नें कारगिल युद्ध के दौरान वह कैप्टन के पद तक पहुंच गए। इस तरह से कैप्टन विक्रम बत्रा की टुकड़ी को श्रीनगर-लेह मार्ग के ऊपर अहम 5140 चोटी को दुश्मनों से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। कैप्टन बत्रा ने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए 20 जून 1999 को उस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद उन्होंने रेडियो पर अपनी जीत का संदेश देते हुए कहा 'ये दिल मांगे मोर', जो उस दौरान हर देशवासी की जुबान पर चढ़ गया। 

ऐसे हुई शहादत

इस सफलता के बाद कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को 4875 की चोटी को अपने कब्जे में लेने की जिम्मेदारी मिली। इसमें भी कैप्टन बत्रा सफल हुए, लेकिन गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। फिर 7 जुलाई 1999 को उन्होंने कई पाकिस्तान सैनिकों को धूल चटाते हुए उस चोटी पर अपना कब्जा कर लिया। लेकिन इस दौरान बुरी तरह जख्मी होने के कारण उनकी शहादत हो गई। कैप्टन बत्रा की बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। बता दें कि आज भी 4875 की चोटी को विक्रम बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है। 

शेरशाह

बता दें कि कैप्टन विक्रम बत्रा को सेना में 'शेरशाह' कह कर पुकारा जाता था। कैप्टन बत्रा की बहादुरी से ना सिर्फ देशवासी बल्कि बॉलीवुड भी प्रभावित रहा। बॉलीवुड अभिनेता अभिषेक बच्चन ने कारगिल युद्ध पर बनी एलओसी कारगिल में कैप्टन विक्रम बत्रा की भूमिका निभाई। वहीं साल 2021 में बनी फिल्म 'शेरशाह' में बॉलीवुड अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा ने विक्रम बत्रा की भूमिका निभाई है। फिल्म 'शेरशाह' पूरी तरह से कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित है।

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