Aurobindo Ghosh Death Anniversary: आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी थे अरबिंदो घोष, जेल में हुई थी दिव्य अनुभूति

Sri Aurobindo Ghosh
ANI

बंगाल के महान क्रांतिकारी श्री अरबिंदो घोष देश की आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी थे। स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान देने के साथ ही उनका योग और दर्शन पर बेहद जोर रहा। 05 दिसंबर को अरबिंदो घोष का निधन हुआ था।

आध्यात्मकि गुरु, विद्वान्, दार्शनिक, महान कवि, योगी और स्वतंत्रता सेनानी अरबिंदो घोष की 05 दिसंबर को निधन हो गया था। अरबिंदो घोष ने देश को आजाद कराने में अहम योगदान दिया था। वह युवावस्था से ही देश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए थे। स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान देने के साथ ही उन्होंने योग और दर्शन पर जोर दिया। पूरी दुनिया में अरबिंदो घोष के अनुयायी हैं, जो दर्शन के लिए उनकी किताबें पढ़ते हैं। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर श्री अरबिंदो घोष के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार में 15 अगस्त 1872 को अरबिंदो घोष का जन्म हुआ था। इनके पिता अपने समय के एक सफल डॉक्टर थे। उनके पिता ने अरबिंदो घोष को महज 7 साल की उम्र में ही उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन भेज दिया था। जहां पर अरबिंदो ने देश-विदेश का साहित्य पढ़ा और बड़े होते-होते आईसीएस की परीक्षा पास कर ली। इसके अलावा उनकी हिंदी और संस्कृत के साथ अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक और इटैलियन भाषा पर समान पकड़ थी। वह 12 साल तक बतौर शिक्षक के रूप में कार्य करते रहे।

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स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

भारत में कई सालों तक रहने के बाद अरबिंदो घोष को यह एहसास हुआ कि अंग्रेज भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। जिसके बाद वह धीरे-धीरे राजनीति में रुचि लेने लगे। शुरूआत से ही उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग पर जोर दिया था। वहीं 1906 में जब बंग-भंग का आंदोलन चल रहा था, तो अरबिंदो ने बड़ौदा से कलकत्ता की ओर प्रस्थान किया। इस दौरान उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देकर 'वंदे मातरम्' साप्ताहिक के सहसंपादन के रूप में कार्य करना शुरू किया और ब्रिटिश सरकार के अन्याय के खिलाफ आचोलना शुरु की।

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखने के कारण श्री अरबिंदो के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, लेकिन वह छूट गए। उन्होंने बंगाल के बाहर क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए विदेशी सामानों के बहिष्कार के तरीके 'वंदे मातरम्' में उल्लिखित किए। साथ ही जनता को जागृत करने के लिए अरबिंदो ने उत्तेजक भाषण दिए और ब्रिटिश सरकार की दमन नीति की कड़ी निंदा की।

साल 1908-09 में अरबिंदो घोष पर अलीपुर बमकांड मामले में राजद्रोह का मुकदमा चला और उनको जेल में डाल दिया गया। अलीपुर जेल में रहने के दौरान अरबिंदो घोष का जीवन पूरी तरह से बदल गया। जेल में रहते हुए उन्होंने अपना अधिकतर समय साधना और तप में लगाया। बताया जाता है कि जेल में साधना के दौरान अरबिंदो घोष को भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हुए। इस दिव्य अनुभूति के बाद वह क्रांतिकारी आंदोलन छोड़कर योग और आध्यात्म में रम गए।

जेल से छूटने के बाद अरबिंदो घोष पूरी तरह से आध्यात्म की ओर मुड़ गए और वह पुदुच्चेरी में योग और दर्शन पढ़ा करते थे और इन्हीं विषयों पर बात भी किया करते थे। बताया जाता है कि इसी दौरान उनका ईश्वर से साक्षात्कार हुआ।

मृत्यु

वहीं 05 दिसंबर 1950 को पुदुच्चेरी में श्री अरबिंदो घोष की मृत्यु हो गई।

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