Khudiram Bose Birth Anniversary: महज 18 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए थे क्रांतिकारी खुदीराम बोस

Khudiram Bose
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मुजफ्फरपुर बम कांड 1857 की क्रांति के अगले चरण की शुरूआत के लिए याद किया जाता है। आज ही के दिन यानी की 03 दिसंबर को फांसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी खुदीराम बोस का जन्म हुआ था।

आजादी की लड़ाई में फांसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी खुदीराम बोस का 03 दिसंबर को जन्म हुआ था। देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले खुदीराम बोस हाथ में गीता लिए बेखौफ फंदे पर झूल गए थे। खुदीराम बोस का पालन-पोषण उनकी बहन ने किया था। बता दें कि अंग्रेजों को हिंदुस्तान से भगाना उनका मकसद बन गया था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर क्रांतिकारी खुदीराम बोस के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

बंगाल के मिदनापुर के हबीबपुर गांव में 03 दिसंबर 1889 को खुदीराम बोस का जन्म हुआ था। बताया जाता है कि उनके जन्म से पहले दो भाइयों की बीमारी के कारण मौत हो गई थी। ऐसे में उनकी जान बचाने के लिए टोटका अपनाया। इस टोटके में बड़ी बहन ने चावल के बदले उनको खरीद लिया। बंगाल में चावल को खुदी कहा जाता था, यही वजह रही कि उस बच्चे का नाम खुदीराम बोस पड़ गया। माता-पिता की मृत्यु के बाद उनकी बहन ने पालन-पोषण किया। वहीं खुदीराम ने 9वीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल छोड़ दिया।

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देश की आजादी में योगदान

पढ़ाई छोड़ने के बाद वह रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन गए। इसके साख ही वंदे मातरम् के पर्चे बांटने में खुदीराम बोस बड़ी भूमिका निभाई थी। साल 1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद बोस ने सत्‍येंद्रनाथ बोस के नेतृत्व में अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत की थी। यह कहना गलत नहीं होगा कि धोती पहनने वाले खुदीराम कम उम्र में ही देश में अपनी छाप छोड़ गए और जब उनकी शहादत हुई, तो बड़े स्तर पर लोगों द्वारा धोती पहनने का चलन शुरू हो गया। बंगाल के कई बुनकर आज भी खुदीराम लिखी धोतियां बनाकर तैयार करते हैं।

बता दें कि 18 अप्रैल 1908 को खुदीराम और उनका एक साथी मुजफ्फरपुर के जज किंग्सफोर्ड को मारने के लिए निकले। दोनों ने मिलकर तय किया कि जब किंग्सफोर्ड बग्घी से वापस आएगा, तब वह बम फेंककर उसको मार देंगे। योजना के अनुसार दोनों ने काम किया, लेकिन जज की जान बच गई। दरअसल, जिस बग्घी पर उन्होंने बम फेंका था उस पर दो महिलाएं सवार थीं। जिनमें से एक महिला की मौत हो गई।

इस घटना के कारण 01 मई 1908 को खुदीराम को गिरफ्तार कर लिया गया और हत्या का मुकदमा चलाया गया। बिना किसी भय के खुदीराम ने यह कुबूला कि उन्होंने बम फेंका था। जिसके बाद 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी की सजा दी गई।

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