राहुल गांधी निभाएंगे अपना वादा या एमपी में अरुण यादव बनेंगे अगले सिंधिया? राज्यसभा चुनाव पर टिकी नजरें
अरुण यादव के रास्ते केवल कमलनाथ ही नहीं बल्कि पार्टी के दूसरे नेता भी रोक सकते हैं। दूसरी तरफ यह खबरें भी हैं कि बीजेपी अरुण यादव को अपने पाले में लाने की कोशिशों में जुटी हुई है।
विधानसभा चुनावों के बाद अब पार्टियां अपनी राज्यसभा की स्थिति पर नजर गड़ाए हुए हैं। गुरुवार को 6 राज्यों के 13 राज्यसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हुए। अगले 5 महीनों में राज्यसभा के कुल 75 सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है, और उनकी जगह राज्यसभा में नए सदस्य लेंगे। इसमें मध्य प्रदेश की तीन राज्यसभा सीटें भी हैं जिन पर चुनाव होने हैं। मध्य प्रदेश की 3 राज्यसभा सीटों पर होने वाले चुनाव को लेकर कांग्रेस इस मर्तबा सक्रिय दिखाई दे रही है। 2 साल पहले एक राज्यसभा सीट के चलते मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से खिलाफत की वजह राज्यसभा की दावेदारी तो थी ही, राहुल गांधी के एक वादे पर भी खूब चर्चा की जा रही थी। माना जाता है कि राहुल ने 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन चुनाव के बाद वह ऐसा नहीं कर सके। जब सिंधिया को राज्यसभा में भेजने की बारी आई तो दिग्विजय ने उस में अड़ंगा लगा दिया। इसी बात से नाराज होकर सिंधिया ने कांग्रेस से मुंह फेर लिया और बीजेपी का दामन थाम लिया।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए इस बार भी हालात बहुत अलग नहीं है। सियासत के गलियारों में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और कमलनाथ की दूरियों की चर्चा आम है। अरुण यादव के साथ अजय सिंह राहुल और सुरेश पचौरी कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं में शामिल है। इतना ही नहीं अरुण यादव और राहुल ने तो दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से मुलाकात भी की है। दोनों ने मांग की है कि उन्हें पार्टी में जिम्मेदारी दी जाए, इसके साथ ही उन्होंने कमलनाथ की शिकायत भी की है। लेकिन यहां भी राहुल गांधी के एक कथित वादे की चर्चा की जा रही है।
जब अरुण यादव दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले तो उन्होंने राहुल गांधी के उसी वादे की याद दिलाई। दरअसल मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में अरुण यादव को राहुल गांधी ने शिवराज सिंह के खिलाफ बुधनी सीट से चुनाव लड़ने के लिए राजी किया था। अरुण यादव इस सीट से लड़ाई के लिए तैयार नहीं थे। राहुल गांधी ने उन्हें भरोसा दिया था कि अगर वह यहां से हार गए तो उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। इसके बाद वो शिवराज सिंह के खिलाफ बुधनी से चुनाव लड़ने को तैयार हो गए थे। अब वह चाहते हैं कि आलाकमान अपना वादा निभाए और उन्हें राज्यसभा भेजा जाए।
बता दें अरुण यादव मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री का पद भी संभाल चुके हैं। 2014 से 18 तक वह मध्य प्रदेश कांग्रेस के भी अध्यक्ष रह चुके हैं। लेकिन बीते वर्ष अक्टूबर में जो खंडवा लोकसभा सीट के लिए उप चुनाव हुए थे उसके बाद से ही वह पार्टी से नाराज चल रहे हैं। अरुण यादव चुनाव में टिकट पाने के दावेदार थे और कई महीनों से इसकी तैयारियां कर रहे थे। आखिरी समय में कांग्रेस में उनके स्थान पर दिग्विजय सिंह के समर्थक नेता को टिकट थमा दिया था। कांग्रेस उपचुनाव में हारी और अरुण यादव ने कमलनाथ के खिलाफ आक्रामक तेवर अपना लिए।
अरुण यादव और कमलनाथ की नाराजगी अभी दूर नहीं हुई है। ऐसे में यादव अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसका क्या नतीजा निकलता है यह तो वक्त ही बताएगा। अरुण यादव के रास्ते केवल कमलनाथ ही नहीं बल्कि पार्टी के दूसरे नेता भी रोक सकते हैं। दूसरी तरफ यह खबरें भी हैं कि बीजेपी अरुण यादव को अपने पाले में लाने की कोशिशों में जुटी हुई है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की उलझन गया है कि अगर वह राहुल गांधी का किया वादा पूरा करता है तो, कांग्रेस के दूसरे नेता असंतुष्ट खेमे में जा सकते हैं। ऐसे में पार्टी नेतृत्व भी फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है और जल्दबाजी में फैसला लेने के मूड में नहीं है। सोनिया गांधी असंतुष्ट नेताओं से मुलाकात कर रहीं हैं। अब मध्यप्रदेश में कांग्रेस के साथ इस बार क्या होता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद अब राज्यसभा के सांसद चुने जाने शुरू हो गए हैं। गुरुवार को राज्यों की 13 राज्यसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हो गए। इसी तरह आने वाले 5 महीने राज्यसभा चुनाव के लिहाज से बेहद अहम हैं। अगले 5 महीनों में राज्यसभा से 30 फ़ीसदी सदस्य रिटायर होंगे और उनकी राज्यसभा में नए सदस्य आएंगे। अगले 5 महीने में राज्यसभा की कुल 75 सीटें खाली होंगी। विधानसभा चुनाव क्यों नतीजों के बाद आप को राज्यसभा का करें ताकि बदलता हुआ नजर आएगा।
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