Karnataka Assembly Elections 2023: Shirahatti Seat पर जो जीता उसी दल की बनेगी कर्नाटक में सरकार
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के तहत आगामी 10 मई को होने वाले मतदान में इस बार भी लोगों की निगाहें इस सीट पर टिकी हैं कि क्या इस विधानसभा क्षेत्र के लोग एक बार फिर खुद को ‘मौसम विज्ञानी’ साबित कर सकेंगे।
कर्नाटक विधानसभा चुनावों से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्यों की बात करें तो आपको बता दें कि मध्य कर्नाटक के गडग जिले का शिरहट्टी, राज्य के 224 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है और इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस क्षेत्र के मतदाता ‘चुनावी मिजाज’ भांपने में निपुण हैं। यहां की जनता जिस दल की जीत सुनिश्चित करती है, राज्य की सत्ता की बागडोर भी वही संभालता है। कर्नाटक के पिछले 12 विधानसभा चुनावों के नतीजे तो यही बताते हैं। हालांकि, आजादी के बाद अब तक हुए कुल 14 चुनावों में से दो ही मौके ऐसे आए जब शिरहट्टी में जीत किसी एक दल के उम्मीदवार की हुई और सरकार किसी दूसरे दल की बनी। लेकिन यह दोनों चुनाव उस दौर में हुए जब कर्नाटक, मैसूर राज्य कहलाता था। हम आपको बता दें कि साल 1973 में पुनर्नामकरण करके इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया था।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के तहत आगामी 10 मई को होने वाले मतदान में इस बार भी लोगों की निगाहें इस सीट पर टिकी हैं कि क्या इस विधानसभा क्षेत्र के लोग एक बार फिर खुद को ‘मौसम विज्ञानी’ साबित कर सकेंगे। आगामी 13 मई को जब चुनाव परिणाम आएंगे तो यह स्पष्ट हो जाएगा। इस बार यहां के चुनावी मैदान में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चंद्रु लमानी, कांग्रेस की सुजाता निंगप्पा डोड्डामणनि और जनता दल (सेक्युलर) के हनुमंथप्पा नायक के बीच है। भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से जीत दर्ज करने वाले रमप्पा लमानी का टिकट काटकर एक सरकारी चिकित्सक चंद्रू लमानी को उम्मीदवार बनाया है।
साल 1957 में राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में शिरहट्टी से कांग्रेस की जीत हुई और राज्य में सरकार भी उसकी ही बनी। हालांकि अगले दो लगातार चुनावों में यह क्रम जारी नहीं रहा। वर्ष 1962 और 1967 के विधानसभा चुनावों में यहां से स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की लेकिन सरकार कांग्रेस की ही बनी। इसके बाद से अब तक हुए राज्य विधानसभा के चुनावों में हर बार यहां से जीत दर्ज करने वाली पार्टी की राज्य में सरकार बनी। वर्ष 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में शिरहट्टी से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रामप्पा लमानी ने कांग्रेस के उम्मीदवार डीआर शिडलिगप्पा को 29,993 मतों से पराजित किया था। इसके बाद राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा ने सरकार बनाई और कमान बीएस येदियुरप्पा के हाथों में गई। लेकिन आठ सीटें कम पड़ने की वजह से सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
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इसके बाद कांग्रेस की सहायता से जनता दल (सेक्युलर) के एचडी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन कांग्रेस के कुछ विधायकों के पाला बदलने के कारण 14 महीने के भीतर ही कुमारस्वामी की सरकार भी गिर गई। कई दिनों तक खिंचे नाटकीय घटनाक्रम के बाद येदियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। इससे पहले, 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार ने शिरहट्टी से जीत दर्ज की और राज्य में सिद्धरमैया के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। इसी प्रकार 2008 में भाजपा और 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकारें बनीं तो शिरहट्टी में भी सत्ताधारी दलों के विधायकों को सफलता मिली। वर्ष 1972 से लेकर 1999 तक हुए चुनावों में भी यही स्थिति बनी रही। शिरहट्टी से जीत दर्ज करने वाली पार्टी ही राज्य में सरकार बनाती रही। वर्ष 1999 में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की तो कांग्रेस के नेता एसएम कृष्णा राज्य के मुख्यमंत्री बने। इसके पहले, 1994 के चुनाव में जनता दल के एचडी देवेगौड़ा मुख्यमंत्री बने तो उनकी पार्टी के ही उम्मीदवार जीएम महंतशेट्टार ने यहां से जीत हासिल की। साल 1989 में कांग्रेस के शंकर गौड़ा पाटिल ने शिरहट्टी से विधानसभा चुनाव जीता और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार ने यहां से जीत दर्ज की तो राज्य में सरकार भी जनता पार्टी की ही बनी। तब रामकृष्ण हेगड़े इस सरकार के मुखिया बने।
इसके पहले हुए 1983 के विधानसभा चुनाव में पहली बार इस सीट से किसी निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। कांग्रेस के तत्कालीन विधायक यूजी फकीरप्पा को टिकट नहीं मिला तो वह बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में उतर गए। उन्होंने जीत भी दर्ज की। राज्य में विधानसभा त्रिशंकु बनी। कांग्रेस को 82 सीटों पर तो जनता पार्टी को 95 सीटों पर जीत मिली। फकीरप्पा ने जनता पार्टी का समर्थन कर दिया। सरकार भी जनता पार्टी की बनी और पहली बार रामकृष्ण हेगड़े राज्य के मुख्यमंत्री बने। वैसे शिरहट्टी के अलावा भी कर्नाटक में कुछ ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां से जीत दर्ज करने वाली पार्टी ने राज्य की सत्ता पर राज किया। इनमें कोप्पल जिले की येलबुर्गा, विजयनगर जिले की हरपनहल्ली, चिक्कमगलुरु जिले का तारिकेरे और दावणगेरे जिले की दावणगेरे सीट शामिल हैं। साल 1999 से लेकर अब तक हुए सभी चुनावों में इन सीटों पर जिस दल के उम्मीदवार को जीत मिली, सत्ता भी उसी दल को नसीब हुई।
चुनाव पूर्व समर्थन
जहां तक इस विधानसभा चुनावों में चुनाव पूर्व एक दूसरे को समर्थन देने की बात है तो आपको बता दें कि तेलंगाना में सत्तारुढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जनता दल (सेक्युलर) को समर्थन देने की घोषणा करते हुए आगामी 10 मई को होने वाले चुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। बीआरएस ने जद (एस) को ‘मित्र पार्टी’ बताया है। हम आपको बता दें कि पहले बीआरएस का नाम टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्र समिति) था। राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने के मकसद से पिछले साल दिसंबर में इस दल ने अपना नाम बदल लिया था। पार्टी का विचार था कि वह कर्नाटक में भी विधानसभा का चुनाव लड़े। बीआरएस सूत्रों ने बताया कि हालांकि उसने विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया क्योंकि जद (एस) उसकी मित्र है और चुनाव में उम्मीदवार उतारने की योजना बनाने के लिए उसके पास पर्याप्त समय नहीं है।
भाजपा की योजना
दूसरी ओर, भाजपा की बात करें तो संकेत मिले हैं कि पार्टी के लिंगायत नेताओं ने सत्तारुढ़ पार्टी को ‘लिंगायत विरोधी’ करार देने के कांग्रेस के दावे का जवाब देने के लिए कर्नाटक में ‘लिंगायत मुख्यमंत्री’ अभियान शुरू करने की वकालत की है। हम आपको बता दें कि राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लिंगायत समुदाय राज्य की आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है। इस समुदाय के ज्यादातर लोग राज्य के उत्तरी हिस्सों में हैं। भाजपा इन्हें अपने मजबूत समर्थक वर्ग के रूप में देखती है। लेकिन वरिष्ठ लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी ने 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर भाजपा छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस तभी से भाजपा पर लिंगायतों के साथ ‘अन्याय’ करने और उसके ‘लिंगायत विरोधी’ होने के आरोप लगा रही है। इसके मद्देनजर, सत्तारुढ़ पार्टी नुकसान से भरपाई की कोशिशों में जुट गई है।
भाजपा के लिंगायत नेताओं ने कर्नाटक भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के आवास पर एक बैठक की। इस बैठक में कांग्रेस के विमर्श का मुकाबला करने के लिए यह सुझाव सामने आया कि भाजपा को लिंगायत समुदाय के नेता को अगले मुख्यमंत्री के रूप में पेश करना चाहिए और मजबूती से यह अभियान चलाना चाहिए कि उसके सत्ता में आने की स्थिति में अगला मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय का ही होगा। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए पुष्टि की कि बैठक में ‘कुछ मुद्दों’ पर कांग्रेस द्वारा फैलाई जा रही ‘भ्रामक सूचनाओं’ का दृढ़ता से मुकाबला करने का निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा, ‘‘कुछ सुझाव भी आए हैं (लिंगायत मुख्यमंत्री को लेकर)। धर्मेंद्र प्रधान (केंद्रीय मंत्री जो भाजपा के कर्नाटक चुनाव प्रभारी हैं) भी वहां थे। उन्होंने (प्रधान ने) कहा कि वह (लिंगायत-मुख्यमंत्री की जरूरत पर) हमारी भावनाओं से आलाकमान को अवगत कराएंगे।’’ जब एक संवाददाता ने फिर से पूछा कि कांग्रेस भाजपा को ‘लिंगायत विरोधी’ बता रही है, तो मुख्यमंत्री ने उल्टा उसी से पूछ डाला कि ‘आप इस मुद्दे को जीवित रखना चाहते हैं?’’ बोम्मई ने कहा, ‘‘1967 के बाद से पिछले 50 वर्षों में कांग्रेस ने वीरेंद्र पाटिल के नौ महीने के कार्यकाल को छोड़कर किसी लिंगायत को मुख्यमंत्री नहीं बनाया है।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने वरिष्ठ लिंगायत नेताओं के साथ कैसा व्यवहार किया, इसके कई उदाहरण हैं और लोग यह नहीं भूलेंगे कि कैसे कांग्रेस ने पांच साल पहले ‘वोट बैंक’ बनाने के लिए समुदाय को तोड़ने (समुदाय के लिए एक अलग धार्मिक दर्जे की मांग) की कोशिश की थी। बोम्मई ने कहा, ‘‘भाजपा में सभी के लिए सम्मान और अवसर है।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने दलितों, लिंगायतों और पिछड़े वर्गों को ‘धोखा’ दिया।
हम आपको यह भी बता दें कि कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करीब 20 स्थानों पर चुनाव प्रचार करेंगे। इनमें से अधिकतर स्थानों पर वह रैली को संबोधित करेंगे और कुछ में रोड शो होंगे। मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्रियों की एक मजबूत टीम चुनाव के लिए पार्टी के 40 स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल है।
सबसे उम्रदराज उम्मीदवार
इसके अलावा कर्नाटक में एक बार फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे 91 वर्षीय शमनूर शिवशंकरप्पा के लिए आयु मात्र एक संख्या प्रतीत होती है। वह चुनावी मैदान में स्वयं को ‘सरपट दौड़ने वाला घोड़ा’’ कहते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पांच बार के विधायक और पूर्व लोकसभा सदस्य शिवशंकरप्पा को दावणगेरे दक्षिण से चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिला है। शिवशंकरप्पा ने कहा, “मेरे पास जन समर्थन और भगवान का आशीर्वाद है। और क्या चाहिए?” देखा जाये तो कांग्रेस विधायक शिवशंकरप्पा वास्तव में मध्य कर्नाटक में दावणगेरे के “पर्याय” बन गए हैं। मुस्कुराहट के साथ वह फिर से जीत हासिल करने का विश्वास व्यक्त करते हैं। शिवशंकरप्पा ने बढ़ती उम्र के बावजूद कांग्रेस की ओर से टिकट मिलने पर मजाकिया अंदाज में जवाब दिया, "घुड़दौड़ के लिए केवल सरपट दौड़ने वाले घोड़े को ही चुना जाता है। मैं ऐसा ही एक घोड़ा हूं। मैं सबसे बड़े अंतर से चुनाव जीतूंगा।”
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