Prajatantra: चर्चा में क्यों हैं महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर, विधायकों की अयोग्यता पर क्या अब लेंगे फैसला?
राहुल नार्वेकर ने कहा कि वह शिवसेना के कुछ विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए दायर याचिकाओं पर फैसले करने में देरी नहीं करेंगे, लेकिन इनपर जल्दबाज़ी में भी निर्णय नहीं करेंगे। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि वह इस संबंध में कोई जल्दबाजी भी नहीं दिखाएंगे, क्योंकि ऐसा करने से ‘‘घोर अन्याय’’ हो सकता है।
शिवसेना विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिकाओं पर महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश ने इस मामले में देरी को सुर्खियों में ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को विधानसभा अध्यक्ष को उचित समय के भीतर अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। हालांकि, 4 महीने बाद भी अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। यही कारण है कि स्पीकर सवालों के घेरे में हैं। कोर्ट ने फिर से 18 सितंबर को निर्देश दिया कि महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके प्रति वफादार शिवसेना विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसले के लिए समय-सीमा के बारे में एक सप्ताह के भीतर बताएं।
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स्पीकर का पक्ष
राहुल नार्वेकर ने कहा कि वह शिवसेना के कुछ विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए दायर याचिकाओं पर फैसले करने में देरी नहीं करेंगे, लेकिन इनपर जल्दबाज़ी में भी निर्णय नहीं करेंगे। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि वह इस संबंध में कोई जल्दबाजी भी नहीं दिखाएंगे, क्योंकि ऐसा करने से ‘‘घोर अन्याय’’ हो सकता है। उन्होंने कहा कि मुझे उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों के बारे में जानकारी नहीं है। मुझे इस मामले में देरी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है और न ही मैं जल्दबाजी करने जा रहा हूं, क्योंकि इसका नतीजा घोर अन्याय के रूप में सामने आ सकता है।’’ विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि नियमों और संवैधानिक प्रावधानों का पालन करने के बाद जल्द से जल्द निर्णय लिया जाएगा।
क्या है मामला
पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना बंट गई थी। शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने जून, 2022 में महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हाथ मिला लिया था। शिंदे भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट ने दलबदल विरोधी कानूनों के तहत शिंदे सहित कई विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए याचिका दायर की। विभाजन के बाद, दोनों गुटों - एक का नेतृत्व शिंदे ने किया, और दूसरे का नेतृत्व उद्धव ठाकरे ने किया - ने एक-दूसरे पर अध्यक्ष के चुनाव और 4 जुलाई, 2022 को विश्वास मत दोनों पर पार्टी के व्हिप की अवहेलना करने का आरोप लगाया था। अविभाजित शिवसेना के मुख्य सचेतक विधायक सुनील प्रभु ने शिंदे सेना के 16 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर की। शिंदे सेना गुट ने तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक जवाबी याचिका दायर की, जिसमें 14 उद्धव सेना विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की गई।
उद्धव गुट का दावा
उद्धव ठाकरे गुट ने जुलाई में उच्चतम न्यायालय का रुख किया था और राज्य विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता याचिकाओं पर समयबद्ध तरीके से शीघ्र फैसला करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। अविभाजित शिवसेना के मुख्य सचेतक के रूप में 2022 में शिंदे और अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर करने वाले शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के विधायक सुनील प्रभु की याचिका में आरोप लगाया गया है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बावजूद अध्यक्ष राहुल नार्वेकर जानबूझकर फैसले में देरी कर रहे हैं। मौजूदा हालात में, दोनों गुटों के सभी 54 विधायकों को अयोग्यता याचिकाओं का सामना करना पड़ रहा है, सिवाय दो सेना (यूबीटी) विधायकों, आदित्य ठाकरे (जिनके खिलाफ शिंदे सेना ने याचिका दायर नहीं की) और रुतुजा लाटके, जो पिछले साल अक्टूबर में ही एक उपचुनाव में विधायक चुने गए थे।
सवालों में स्पीकर
स्पीकर के कार्यालय ने इस साल 7 जून को चुनाव आयोग से केवल अविभाजित शिव सेना के संविधान की मूल प्रति - अयोग्यता पर निर्णय के लिए आवश्यक - की मांग की थी, इस पर भी उद्धव सेना और विपक्ष में उसके सहयोगियों ने सवाल उठाए हैं। एक सूत्र के अनुसार, शिवसेना के संविधान की प्रति मिलने के बाद भी स्पीकर ने एक गुट के विधायकों को नोटिस जारी करने के लिए एक महीने तक इंतजार किया और फिर दूसरे गुट के विधायकों को नोटिस जारी करने के लिए 20 दिन और ले लिए। उन्हें सात दिन के अंदर लिखित रूप से अपना पक्ष रखने को कहा गया है। जैसे-जैसे अदालत की समय सीमा नजदीक आ रही है, नार्वेकर को अब 56 विधायकों द्वारा दायर जवाबों की जांच करनी होगी जो कुल मिलाकर हजारों पृष्ठों में हैं। जबकि शिवसेना (यूबीटी) विधायकों ने जुलाई में ही अपने जवाब दाखिल कर दिए, दूसरे गुट ने अगस्त के अंत में कई पत्र भेजकर ऐसा किया, जिसकी विपक्ष ने देरी करने की एक और रणनीति के रूप में आलोचना की। शिक्षा मंत्री और शिंदे सेना नेता दीपक केसरकर ने उस समय संवाददाताओं से कहा कि "लंबे जवाब का मतलब यह नहीं है कि हम समय बर्बाद कर रहे हैं"। बताया जा रहा है कि नार्वेकर गुरुवार को वरिष्ठ वकीलों से चर्चा करने के लिए दिल्ली पहुंचे हैं। इसके बाद वह कोई फैसला ले सकते हैं।
इनसाइड स्टोरी
हालांकि, चौतरफा सवालों के घेरे में महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर ही हैं। दावा किया जा रहा है कि स्पीकर जितना देर करेंगे, उतना ही महाराष्ट्र सरकार के स्थिरता बनी रहेगी। इससे वर्तमान की महाराष्ट्र सरकार और खास करके भाजपा को फायदा मिलता दिख रहा है। जब अजित पवार गुट को महाराष्ट्र के सरकार में शामिल कराया गया था, तब इस बात की संभावनाएं आने लगी थी कि अयोग्यता को लेकर स्पीकर कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। इसे भाजपा का बैकअप प्लान भी माना गया था। हालांकि, स्पीकर लगातार अपने फैसलों में देर करते रहे। यही कारण है कि स्पीकर की भूमिका को लेकर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं।
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लोकतंत्र में स्पीकर की भूमिका काफी महत्व रखता है। स्पीकर से बिना भेदभाव के फैसले लेने की उम्मीद भी की जाती है। भले ही अदालतों के निर्देश को देर तक टालने की कोशिश हो सकती है लेकिन जब नेता जनता की अदालत में जाएंगे तो उन्हें वहीं से इसका जवाब मिलेगा। यही तो प्रजातंत्र है।
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