सिर्फ इन महिलाओं को ही क्यों मिले मैटरनिटी लीव का फायदा? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
वर्तमान कानून गोद लेने वाली माताओं को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश तभी देता है, जब गोद लिया गया बच्चा तीन महीने से छोटा हो। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने इस प्रतिबंध के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया और केंद्र को मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वो गोद लेने वाली माताओं के लिए मातृत्व लाभ पर अपनी नीति स्पष्ट करे, खासकर उन मामलों में जहां गोद लिया गया बच्चा तीन साल से कम उम्र का है। शीर्ष अदालत का फैसला मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 की धारा 5(4) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद आया। वर्तमान कानून गोद लेने वाली माताओं को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश तभी देता है, जब गोद लिया गया बच्चा तीन महीने से छोटा हो। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने इस प्रतिबंध के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया और केंद्र को मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।
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यह निर्धारित करने का उद्देश्य क्या है कि बच्चे की आयु तीन महीने से कम होनी चाहिए? न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, मातृत्व अवकाश का उद्देश्य एक मां को अपने बच्चे की देखभाल करने की अनुमति देना है, भले ही वह जैविक या दत्तक मां हो। मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के मौजूदा प्रावधानों के तहत, गोद लेने वाली माताएं 12 सप्ताह के मातृत्व अवकाश के लिए तभी पात्र होती हैं, जब उनका गोद लिया हुआ बच्चा तीन महीने से कम उम्र का हो। इसका मतलब यह है कि तीन महीने से अधिक उम्र के बच्चों को गोद लेने वाली माताएं इन लाभों के लिए पात्र नहीं हैं।
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केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के नियम भी गोद लेने की प्रक्रिया में एक भूमिका निभाते हैं। CARA के तहत, परित्यक्त या अनाथ बच्चों को बच्चे की उम्र के आधार पर, दो से चार महीने के भीतर बाल कल्याण समिति (CWC) द्वारा गोद लेने के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध घोषित किया जाना चाहिए।
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