कौन हैं भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद, जिन्हें यूपी की राजनीति में मायावती के विकल्प के तौर पर देखा जाता है

Chandrashekhar Azad
ANI
अंकित सिंह । Jun 29 2023 2:23PM

देश में हाल के दिनों में कई विरोध प्रदर्शन हुए। उन प्रदर्शनों में चंद्र शेखर आजाद ने बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया। दलितों के उत्थान के लिए काम करने के लिए 2014 में भीम आर्मी की स्थापना करने वाले आजाद ने हाल ही में यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की और आगामी चुनावों पर चर्चा की।

दलित नेता और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में बदमाशों ने गोली मारने की कोशिश की जिसमें वह बाल-बाल बच गए। फिलहाल उनका इलाज चल रहा है। जब उनपर हमला हुआ तो वह देवबंद में थे। आजाद खतरे से बाहर हैं। विपक्षी नेताओं- राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) प्रमुख जयंत सिंह, समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अखिलेश यादव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आजाद पर हमले को लेकर यूपी में भाजपा सरकार की आलोचना की। 

इसे भी पढ़ें: Uttar Pradesh में भीम आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद पर चलाई गई गोली, अस्पताल में भर्ती

कौन हैं आजाद

देश में हाल के दिनों में कई विरोध प्रदर्शन हुए। उन प्रदर्शनों में चंद्र शेखर आजाद ने बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया। दलितों के उत्थान के लिए काम करने के लिए 2014 में भीम आर्मी की स्थापना करने वाले आजाद ने हाल ही में यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की और आगामी चुनावों पर चर्चा की। उन्होंने चुनावों में बड़े दिग्गजों से मुकाबला किया लेकिन उन्हें मनमाफिक परिणाम नहीं मिले। आज़ाद ने 2022 में गोरखपुर (शहरी) सीट से यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन भारी अंतर से चुनावी लड़ाई हार गए। आजाद को सिर्फ 7,543 वोट मिले, जबकि योगी को उनके गढ़ में 1.64 लाख से ज्यादा वोट मिले।

इसे भी पढ़ें: MahaKhumbh से पहले योगी सरकार बड़ा फैसला, ₹175 करोड़ की लागत से प्रयागराज एयरपोर्ट का होगा पुनर्विकास

योगी के खिलाफ लड़ा चुनाव

बीजेपी के खिलाफ उनकी निर्भीकता दूसरे बड़े विपक्षी नेताओं को पसंद है। आगामी लोकसभा 2024 चुनावों में, उन्हें दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए संयुक्त विपक्षी मोर्चे के पोस्टर बॉय के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने असदुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन कर दिल्ली के एमसीडी चुनाव में अपने उम्मीदवार तो उतारे लेकिन कोई छाप छोड़ने में नाकाम रहे। कई लोग उन्हें यूपी की कद्दावर दलित नेता और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता मायावती की तरह देखते हैं। किसी अज्ञात कारण से, जब से भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है, तब से मायावती कथित तौर पर निष्क्रिय हो गई हैं। उन्होंने दलित समुदाय पर अपना प्रभाव खो दिया है। कम से कम पिछले कुछ चुनावों में उनकी पार्टी का प्रदर्शन तो यही बताता है। खाली जगह ने आज़ाद को एक राजनीतिक लॉन्चिंग पैड प्रदान किया।

खूब सुर्खियों में रहे

पिछले कुछ सालों में भीम आर्मी प्रमुख ने मायावती से ज्यादा सुर्खियां बटोरी। हालांकि उनकी आक्रामक और निडर राजनीति को कोई 1990 के दशक की मायावती से जोड़ सकता है। आजाद हर उस जगह पहुंचते हैं, जहां कहीं भी दलितों के शोषण या पिछड़ी जाति समुदायों के खिलाफ अपराध की सूचना मिलती है। जहां उनका साहसिक दृष्टिकोण उनके व्यक्तित्व में लोकप्रियता जोड़ता है, वहीं कुछ घटनाओं में वे कानूनी मुसीबत में भी फंस गए। आज़ाद को 2017 में सहारनपुर हिंसा की घटना में मुख्य आरोपी के रूप में नामित किया गया था और बाद में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। दिल्ली में CAA (नागरिकता (संशोधन) अधिनियम) विरोधी प्रदर्शन के दौरान, उन्होंने जामा मस्जिद से जंतर मंतर तक विरोध मार्च आयोजित करने की योजना बनाई, लेकिन पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। उन्हें प्रियंका गांधी भी काफी पसंद करती हैं। 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़