Prabhasakshi Exclusive: India-Bhutan के संबंधों में तनाव का असल कारण क्या है? क्या China अपने मकसद में हो रहा है कामयाब
प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भूटान के साथ भारत के संबंध बहुत प्रगाढ़ हुए हैं। देखा जाये तो भूटान और भारत के बीच 1949 से अति घनिष्ठ संबंध रहे हैं। सितंबर 1958 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में भूटान की पहली राजकीय यात्रा की थी।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने इस सप्ताह ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी से पूछा कि भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने क्यों कहा है कि डोकलाम विवाद के समाधान में चीन की भी भूमिका है? क्या हमारा यह करीबी देश हमसे दूर हो रहा है? इन सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि भूटान के साथ भारत की साझेदारी मजबूत और गहरी बनी हुई है। हालांकि भूटान और भारत के बीच अटूट संबंधों को आक्रामक चीन से हमेशा चुनौती मिल रही है। उन्होंने कहा कि भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने कहा है कि डोकलाम विवाद के समाधान में चीन की भी भूमिका है। उनके इस बयान को भारत विरोध या भारत से संबंध बिगड़ने के रूप में देखा जाना गलत है। उन्होंने कहा कि भूटान चीन की असलियत को पहचानता है और यह भी जानता है कि चीन विस्तारवादी देश है। भूटान यह भी जानता है कि चीन कैसे कर्ज के जाल में फँसाता है। भूटान ने पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव का हश्र देखा है इसलिए वह सावधान है और समझता है कि मुश्किल के समय बिना स्वार्थ के यदि कोई साथ देता है तो उस देश का नाम भारत है। उन्होंने कहा कि वैसे भी अभी जो कुछ कहा है भूटान के प्रधानमंत्री ने कहा है, अभी वहां के राजा का बयान इस पर नहीं आया है ना ही भारत ने आधिकारिक रूप से इस मुद्दे पर कुछ कहा है।
उन्होंने कहा कि भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक सोमवार को तीन दिवसीय भारत यात्रा पर नयी दिल्ली आएंगे और इस दौरान वह दोनों देशों के करीबी द्विपक्षीय संबंधों को विस्तार देने के लिए विभिन्न नेताओं से बातचीत करेंगे विशेष तौर पर आथिक एवं विकास सहयोग के बारे में। भूटान के राजा भारत यात्रा के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बातचीत करेंगे। वांगचुक के साथ भूटान के विदेश व विदेश व्यापार मंत्री टैंडी दोरजी और भूटान की शाही सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री भी आएंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देश अपने संबंधों को और प्रगाढ़ बनाएंगे। वैसे भी भारत और भूटान करीबी मित्रता और सहयोग को साझा करते हैं जो समझ और आपसी विश्वास पर आधारित है। वैसे भूटान के राजा की यात्रा दोनों देशों के बीच लंबे समय से उच्च स्तरीय आदान-प्रदान की पंरपरा के तहत हो रही है।
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ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भूटान के साथ भारत के संबंध बहुत प्रगाढ़ हुए हैं। देखा जाये तो भूटान और भारत के बीच 1949 से अति घनिष्ठ संबंध रहे हैं। सितंबर 1958 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में भूटान की पहली राजकीय यात्रा की थी। उस समय 69 वर्ष की आयु में नेहरू 10 दिनों तक 15,000 फीट की ऊंचाई को छूने वाले दुर्गम रास्तों पर पैदल चलकर लगभग 105 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए भूटान पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि भूटान और भारत के बीच बेहतरीन द्विपक्षीय संबंध रहे हैं जिससे दोनों देशों को लाभ पहुंचा है। भारत सरकार का प्रयास है कि भूटान के साथ लंबे समय से चली आ रही साझेदारी मजबूत और गहरी बनी रहे।
उन्होंने कहा कि वैसे हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत के खिलाफ अपने अभियान को पुख्ता बनाने में जुटा चीन सभी पड़ोसी देशों पर डोरे डालता रहता है ताकि भारत को घेरा जा सके। इस कड़ी में पहले उसने पाकिस्तान को साधा, फिर नेपाल को। बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव को भी अपने मायाजाल में फंसाने की कोशिश चीन करता ही रहता है। अब ड्रैगन की नजर भारत के सबसे विश्वस्त पड़ोसी भूटान पर है। उन्होंने कहा कि डोकलाम पर अपनी नजरें गड़ाए चीन ने हाल ही में भूटान से गुपचुप वार्ता भी की थी। जिसके बारे में रिपोर्ट आई थी कि चीन और भूटान समझौता ज्ञापन के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने को लेकर सकारात्मक रूप से सहमत हो गए हैं ताकि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को तीन चरण वाली रूपरेखा के माध्यम से सुलझाने के लिए वार्ता में तेजी लाई जा सके। इस साल दोनों देशों द्वारा जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया था कि चीन-भूटान सीमा मुद्दे पर 11वीं विशेषज्ञ समूह की बैठक (ईजीएम) चीन के कुनमिंग शहर में 10 से 13 जनवरी तक हुई थी।
उन्होंने बताया कि भूटान और चीन ने 2021 में चीन-भूटान सीमा वार्ता में तेजी लाने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किए थे, जिसमें सीमा वार्ता और राजनयिक संबंधों की स्थापना को गति देने के लिए तीन-चरण की रूपरेखा तैयार की गई थी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की भी रिपोर्टें आई थीं कि चीन ने हाल ही में भूटान की पूर्वी सीमा पर साकटेंग वन्यजीव अभ्यारण्य के कई इलाकों पर भी अपना दावा ठोका है। गौरतलब है कि इस अभ्यारण्य की सीमा भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश से मिलती है। चीन का विदेश मंत्रालय इन विवादों को पश्चिमी, मध्य और पूर्वी सेक्शन करार देता है। उन्होंने कहा कि चीन के इस नये पैंतरे को देखते हुए कई विश्लेषकों का कहना है कि यह सब इसलिए किया जा रहा है क्योंकि ड्रैगन भूटान पर दबाव बढ़ाकर डोकलाम हासिल करना चाहता है। दरअसल चीन का शुरू से मानना रहा है कि भारत से सटा डोकलाम उसके लिए रणनीतिक रूप से काफी अहम है। चीन ने भूटान को जो ऑफर दिया हुआ है उसके मुताबिक यदि भूटान उसे अपना डोकलाम क्षेत्र दे देता है तो चीन बदले में भूटान के उत्तरी इलाके में स्थित भूटानी जमीन पर अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार है।
उन्होंने कहा कि भूटान, चीन के साथ 477 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है और दोनों देशों ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 24 दौर की सीमा वार्ता की है। चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन दोनों देश अधिकारियों की समय-समय पर यात्राओं के माध्यम से आपस में संपर्क रखते हैं। उन्होंने कहा कि भारत और भूटान ऐसे दो देश हैं जिनके साथ चीन ने अभी तक सीमा समझौते को अंतिम रूप नहीं दिया है, जबकि चीन ने 12 अन्य पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद सुलझा लिया है।
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