Matrubhoomi| मुस्लिम लीग का षड़यंत्र, महारानी की सूझबूझ, क्या है त्रिपुरा के भारत में विलय की कहानी
क्या है उस रानी की कहानी, जिसने सही वक्त पर सही फैसना न लिया होता तो आज भारत का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला जाता। भारत के एक राज्य को लेकर मुस्लिम लीग ने रचा कौन सा षड़यंत्र, आइए आपको बताते हैं त्रिपुरा के भारत में विलय की कहानी।
साल 1947 के बाद से ही देश में आजादी की लहर तो थी लेकिन पूरे देश को एक राष्ट्र बनाने की समस्या भी थी। इन्हीं में से कई रियासतें ऐसी भी थी जिन्हें भारत का हिस्सा बनाने में देश की पूरी सियासत को कई पापड़ बेलने पड़े। ऐसी ही एक रियासत त्रिपुरा की थी, जो कि पहले भारत का हिस्सा नहीं था। एक वक्त था जब भारत के नॉर्थ ईस्ट में बसे त्रिपुरा राज्य पर माणिक्य वंश का राज हुआ था। इसके राजा वीर विक्रम किशोर देव बर्मन थे। लेकिन आज हम जिस त्रिपुरा की बात कर रहे हैं उसे अंग्रेज हिल टपेरा के नाम से बुलाते थे। इसमें टिपेरा जिला भी आता था। पहले उदयपुर इसकी राजधानी हुआ करता था। फिर 18वीं सदी में ओल्ड अगरतला और 19वीं सदी में एक नए शहर अगरतला नाम देकर राजधानी बनाया गया। इस तरह से इस इलाके के नाम और काम दोनों समय-समय पर बदलते रहे हैं। तब त्रिपुरा के राजा आसपास के इलाके जैसे नोआखली और सिल्हट से भी जमींदारी वसूला करते थे। जिसका एक हिस्सा अंग्रजों के पास जाता था। लेकिन आजादी के वक्त देश का बंटवारा भी हुआ था और रियासतों की राजशाही भी खत्म हो गई। लेकिन यहीं पर एक खेल इस रियासत के साथ हुआ। रेड क्लिप जिसने भारत और पाकिस्तान बंटवारे की लकीर खींची थी उसने टिपेरा जिला यानी आज का त्रिपुरा और नोआखली समेत काफी हिस्सा पाकिस्तान को दिया। इसके अलावा चंटगांव का हिस्सा भी पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था। जबकि यहां 97 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध धर्म को मानने वालों की थी। ये लोग भारत में जुड़ना चाहते थे।
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भारत की सबसे पुरानी रियासतों में से एक त्रिपुरा
त्रिपुरा को प्राचीन भारत की सबसे पुरानी रियासतों में से एक होने का दावा किया जाता है। राजसी शासक त्रिपुरा के शासकों का दावा है कि वे चंद्र राजवंश के योयाति के वंशज हैं। राजा योयाति के उत्तराधिकारी राजा द्रुह्य, राजा बावरु, राजा प्रतर्दन, राजा दैत्य, राजा त्रिपुर और राजा त्रिलोचन. सबसे पुराने राज्य इतिहास के राजरत्नाकर राजा बावरू का समर्थन करते हैं। उड़ीसा में बैतारिनी नदी तक के देशों पर विजय प्राप्त की और बर्मा का एक भाग अपने राज्य में मिला लिया। समुद्र (बंगाल की खाड़ी) को भी अपने अधीन कर लिया। राजा बावरू भी अश्वमेध में शामिल हुए। अयोध्या के सम्राट दशरथ का यज्ञ (घोड़े की बलि)। राजा त्रिपुर राजा के समकालीन थे। महाभारत काल के युधिष्ठिर कहा जाता है कि राजा त्रिलोचन राजा के राजसूय यज्ञ में शामिल हुए थे। महाभारत काल के युधिष्ठिर. राजा त्रिलोचन एक धर्मात्मा राजा थे, जो भगवान शिव के भक्त थे। त्रिपुरा की शाही वंशावली का ऐतिहासिक अध्याय वास्तव में माणिक्य राजवंश के नाम से जाना जाता है।
35 महाराजाओं ने त्रिपुरा राज्य पर शासन किया
महाराजा महा माणिक्य का शासनकाल शुरू हुआ जो 1400 ई. में महाराजा महा का राज्याभिषेक हुआ।माणिक्य पहले शासक थे जिन्होंने माणिक्य की शाही उपाधि से राज्य पर शासन करना शुरू किया। बीच में प्रथम शासक महाराजा महा माणिक्य और अंतिम शासक महाराजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर माणिक्य की शाही उपाधि धारण करके रियासत पर शासन किया। कुल मिलाकर 35 महाराजाओं ने त्रिपुरा राज्य पर शासन किया। अंतिम राजा महाराजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर जिन्होंने 1923 से 1947 तक शासन किया। वह एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। दूरदर्शी राजा जिनकी मृत्यु 17 मई, 1947 को हुई।
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महाराजा की मौत और मुस्लिम लीग का षड़यंत्र
अप्रैल 1947 में राजा बीर बिक्रम किशोर को इस बात का भान हो गया था कि भारत पाकिस्तान बंटवारे की घोषणा होते वक्त हालात बद से बदतर हो जाएंगे। 28 अप्रैल 1947 के दिन राजा बीर बिक्रम ने ऐलान किया कि त्रिपुरा भारत का हिस्सा बनने जा रहा है। संविधान सभा के सचिव को भी इसकी सूचना टेलीग्राम के जरिए भिजवा दी गई। लेकिन 19 दिन बाद ही महाराज की अचानक मौत हो जाती है। उनके बेटे किरीट ब्रिकम की आयु राजपाट संभालने के लायक नहीं थी। इसलिए रानी कंचनप्रभा देवी को राजकाज का काम सौंपा गया। दिवंगत राजा के सौतेले भाई, दुर्जय किशोर इसके बाद हरकत में आए। उन्होंने अंजुमन इस्लामिया समूह के नेता मोहम्मद अब्दुल बारिक खान उर्फ गेदु मिया से हाथ मिला लिया। दोनों मिलकर त्रिपुरा को पूर्वी पाकिस्तान में विलय करने की कोशिश करने लगे। हालाँकि, यह साजिश लीक हो गई। महारानी ने बिना क्षण गंवाए परिषद में दुर्जय का समर्थन करने वाले मंत्रियों की छुट्टी कर दी और उन्हें रातों रात रियासत से बाहर कर दिया। यहां तक की उनके कदम रखने पर भी पाबंदी लगा दी गई।
तुरंत एक्शन में आए सरदार
रानी कंचनप्रभा इससे पहले अपने पिता और पन्ना के महाराजा के साथ सरदार पटेल से मुलाकात की हुई थी। उन्होंने भारत के पक्ष में अपने हितों को सुरक्षित रखने में मदद मांगी। पटेल ने असम के तत्कालीन राज्यपाल सर अकबर हैदरी को त्वरित कार्रवाई करने के लिए लिखा। कुछ ही दिनों बाद एयरफोर्स की एक टुकड़ी को त्रिपुरा के लिए रवाना कर दिया। रानी को शिलांग में सुरक्षा दी गई। सरदार पटेल और सर हैदरी के सक्रिय समर्थन से उन्होंने अंजुमन-ए-इस्लामिया के अब्दुल बारिक उर्फ गेदु मिया जैसे लोगों की साजिशों को विफल कर दिया, जो चाहते थे कि त्रिपुरा का पाकिस्तान में विलय हो जाए। महारानी ने भारत की सलाह पर 12 जनवरी 1948 को रीजेंसी काउंसिल भंग करते हुए सरकार से बातचीत के लिए स्वयं प्रतिनिधि बन गई।
15 अक्टूबर 1949 को त्रिपुरा का हुआ भारत में विलय
राज्य के भारत में विलय के बाद साम्राज्य, रियासती शासन समाप्त हो गया 15 अक्टूबर, 1949 को महारानी कंचन प्रभा महादेवी ने त्रिपुरा विलय पर हस्ताक्षर किए। 9 सितम्बर, 1949 को नई दिल्ली में उनके पुत्र किरीट बिक्रम किशोर माणिक्य की ओर से समझौता उनके दिवंगत पति महाराजा बीर बिक्रम की सहमति के अनुसार हो गया। इस प्रकार 15 अक्टूबर 1949 को त्रिपुरा का आधिकारिक तौर पर भारत में विलय हो गया। 1956 में त्रिपुरा को यूनियन टेरिटरी का दर्जा मिला। प्रादेशिक परिषद को समाप्त कर दिया गया और संविधान अधिनियम 1962 के प्रावधान के अनुसार विधानमंडल और मंत्रिपरिषद के निर्माण के लिए बनाया गया था। 1 जुलाई, 1963 को इसे त्रिपुरा विधान सभा में परिवर्तित किया गया और मंत्रिपरिषद का गठन किया गया। राज्य की पहली विधानमंडल शुरुआत 30 सदस्यों की संख्या के साथ हुई। यही लोकतंत्र प्रक्रिया 1971 तक चलती आ रही है।
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