Supreme Court on Electoral Bond: आखिर क्या है चुनावी बांड? सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 5 प्वाइंट में समझें
ईसीआई को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी ऐसे विवरण प्रकाशित करने के लिए कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बारिक नजर डालने से पहले आइए आपको आसान भाषा में बताते हैं कि इल्कटोरल बॉन्ड है क्या?
चुनाव किसी भी लोकतंत्र के लिए त्योहार सरीखे होते हैं। इसमें बेहतर कल के लिए आम आदमी की आकांक्षाएं और उम्मीदें जुड़ी होती हैं। लेकिन इसी चुनावी प्रक्रिया में कुछ ऐसी चिताएं भी जुड़ी हैं जो बीते सात दशकों से लोकतंत्र के इस पर्व का स्वाद कड़वा कर देती है। पालिटिकल फंडिग और खर्च का सवाल भी चिताओं की फेहरिस्त का हिस्सा है। यूं तो चुनाव में चंदा देना आम बात है। लेकिन ये चंदा कौन दे रहा है? कितना दे रहा है, किसे दे रहा है और क्यों दे रहा है? ये सवाल हर चुनाव में उठते रहे हैं। लेकिन इस बार देश की संसद में इलेक्टोरल बांड पर सियासत और बयानबाजी जोरो पर रही है। अब इसको लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपना फैसला सुनाया है। इसे असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया, जिसमें राजनीतिक दलों को गुमनाम दान की अनुमति दी गई थी। पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए बहुप्रतीक्षित फैसले में कहा गया कि चुनावी बांड योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने वित्त अधिनियम, 2017 के माध्यम से पेश की गई योजना को रद्द करते हुए कहा कि मतदान के विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), जो चुनावी बांड जारी करने वाला बैंक है, को 2019 से चुनावी बांड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण तीन सप्ताह में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है। ईसीआई को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी ऐसे विवरण प्रकाशित करने के लिए कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बारिक नजर डालने से पहले आइए आपको आसान भाषा में बताते हैं कि इल्कटोरल बॉन्ड है क्या?
चुनावों में राजनीतिक दलों के चंदा जुटाने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से चुनावी बांड लाए गए।
5 कानूनों में बदलाव कर चुनावी बांड की योजना लाई गई।
2 जनवरी 2018 को चुनावी बांड की योजना को अधिसूचित किया गया।
कोई भी भारतीय नागरिक, संस्था या फिर कंपनी चुनावी बांड खरीद सकती है।
बांड खरीदने के लिए KYC फार्म भरना जरूरी है।
बांड नकद नहीं केवल बैंक अकाउंट से ही खरीद सकते हैं।
बांड बेचने के लिए केवल SBI को ही अधिकृत किया गया है।
देश में ऐसे 29 ब्रांच हैं जहां से इसे खरीदा जा सकता है।
बांड खरीदने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा, लेकिन बैंक खाते की जानकारी होगी।
बांड के जरिए दिया गया चंदा टैक्स मुक्त होगा।
इल्केटोरल बांड साल भर में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं और 10 दिन तक बेचे जाते हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान एक महीने तक इसकी बिक्री होती है और फिर सरकार के विवेक पर है कि वो कब उन्हें बिक्री के लिए खोलता है।
चुनावी बांड 15 दिन के लिए वैध होंगे और तय समय सीमा में न भुनाए जाने पर पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में चला जाएगा।
केवल पंजीकृत राजनीतिक पार्टियां जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा चुनावों में डाले गए मतों के कम से कम 1 फीसदी का मत प्राप्त किए हो वो चुनावी बांड ले सकती है।
हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग को बताना होगा कि बांड के जरिए उसे कितनी राशि मिली है।
अब तक राजनीतिक दलों को नगद चंदा देने की सीमा 2 हजार रुपए तक निर्धारित थी।
इन इलेक्टोरल बांड की कीमत 10 हजार से शुरु होती है और 1 करोड़ तक जाती है।
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सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड पर क्या कहा
1. चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह योजना नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर असर पड़ता है।
2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता पूर्ण छूट देकर हासिल नहीं की जा सकती।
3. शीर्ष अदालत ने जारीकर्ता बैंक (एसबीआई) को चुनावी बांड जारी करने पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया। भारतीय स्टेट बैंक को 6 मार्च, 2024 तक चुनावी बांड के माध्यम से दान का विवरण और चुनाव आयोग को योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। क्रेता को वापस कर दिया जाए।
4. सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया, जिन्होंने दान को गुमनाम बना दिया था।
5. एक प्रमुख टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी योजना उस राजनीतिक दल की सहायता करेगी जो सत्ता में थी। यह भी माना गया कि इस योजना को यह दावा करके उचित नहीं ठहराया जा सकता है कि यह राजनीति में काले धन के प्रवाह को रोकने में मदद करेगी। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, "आर्थिक असमानता राजनीतिक व्यस्तताओं के विभिन्न स्तरों को जन्म देती है। जानकारी तक पहुंच नीति निर्माण को प्रभावित करती है और बदले में बदले की व्यवस्था करने से भी सत्ता में रहने वाली पार्टी को मदद मिल सकती है।
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