92 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के हाथों से छूट गए हथियार, विंग कमांडर एमबी ओझा से जुड़ी ये बात जानते हैं आप
आईएएफ अधिकारी ने 1965 और 1971 के युद्धों में भाग लिया और भारतीय शांति मिशनों में भी शामिल थे। उन्हें 1956 में वायु सेना में नियुक्त किया गया था और उन्होंने उस उल्लेखनीय क्षण को प्रत्यक्ष रूप से देखा था, जब 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने हथियार छोड़ दिये थे। 1971 की जीत की ऐतिहासिक तस्वीर में ओझा एयर मार्शल हरि चंद दीवान और लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के कंधों की ओर देखते हुए दिखाई दे रहे।
16 दिसंबर 1971 पाकिस्तान ने 92 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था। सरेंडर की वो तस्वीरें इतिहास के पन्नों में एक अहम अध्याय की तरह दर्ज हैं। 1971 की वो जीत भारतीय सेना की सबसे खास जीत थी। उस लड़ाई में भारतीय सेना के तीनों अंगों- नेवी, आर्मी और एयरफोर्स ने पाकिस्तानी हमले का मुंह तोड़ जवाब दिया था। एक ऐसा जवाब जिसमें 14 दिनों के अंदर ही पाकिस्तान को सरेंडर करना पड़ा था। 1971 के वॉर से जुड़ी एक आंखें नम कर देने वाली खबर सामने आई। 1971 के युद्ध के अनुभवी और बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण की प्रतिष्ठित तस्वीर में अधिकारियों में से एक विंग कमांडर एमबी ओझा (सेवानिवृत्त) का रायपुर में बीते दिनों निधन हो गया। वो 89 वर्ष के थे।
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आईएएफ अधिकारी ने 1965 और 1971 के युद्धों में भाग लिया और भारतीय शांति मिशनों में भी शामिल थे। उन्हें 1956 में वायु सेना में नियुक्त किया गया था और उन्होंने उस उल्लेखनीय क्षण को प्रत्यक्ष रूप से देखा था, जब 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने हथियार छोड़ दिये थे। 1971 की जीत की ऐतिहासिक तस्वीर में ओझा एयर मार्शल हरि चंद दीवान और लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के कंधों की ओर देखते हुए दिखाई दे रहे हैं, जबकि लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान जनरल एएके नियाजी को आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए नजर आ रहे हैं।
स्वतंत्रता के बाद, भारत ने कई लड़ाईंयां लड़ीं लेकिन केवल एक ही निर्णायक था जो पाकिस्तान के खिलाफ 1971 का युद्ध था। अंजाम ये रहा कि 16 दिसंबर 1971 पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा और पाकिस्तान का नक्शा ही बदल गया।
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