Prabhasakshi NewsRoom: दशहरा रैली के दौरान शक्ति प्रदर्शन के मामले में उद्धव पर भारी पड़े एकनाथ शिंदे

Uddhav Shinde dussehra rally
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दशहरा रैली में उद्धव ठाकरे ने जहां करीब 43 मिनट लंबा भाषण दिया, वहीं बीकेसी में एकनाथ शिंदे का भाषण करीब डेढ़ घंटे चला। दोनों ही रैलियों में दिये गये भाषणों पर गौर करें तो इसमें ‘गद्दार’, ‘बागी’, ‘बगावत’ जैसे शब्दों की गूंज सुनायी दी।

महाराष्ट्र में जून महीने में उद्धव ठाकरे सरकार गिरने और एकनाथ शिंदे सरकार बनने के बाद दशहरा के दिन बड़ी राजनीतिक रैलियां हुईं। यह रैली दूसरे दलों ने नहीं आयोजित की थी बल्कि शिवसेना के दोनों गुटों ने ही एक दूसरे के खिलाफ आयोजित की थी। शिवाजी पार्क में शिवसेना की परम्परागत दशहरा रैली में उद्धव ठाकरे के धड़े वाले नेता और कार्यकर्ता मौजूद थे तो दूसरी ओर बीकेसी के एमएमआरडीए मैदान में आयोजित एकनाथ शिंदे के गुट वाली शिवसेना की दशहरा रैली में शिंदे गुट के नेता और कार्यकर्ता तो मौजूद थे ही साथ ही ठाकरे परिवार के भी सदस्य मौजूद थे। मुंबई पुलिस ने बताया है कि उद्धव ठाकरे की रैली में करीब एक लाख लोग और एकनाथ शिंदे की रैली में दो लाख से ज्यादा लोग मौजूद थे। यानि यदि शक्ति प्रदर्शन की बात करें तो शिंदे गुट आगे निकल गया है।

दशहरा रैली में उद्धव ठाकरे ने जहां करीब 43 मिनट लंबा भाषण दिया, वहीं बीकेसी में एकनाथ शिंदे का भाषण करीब डेढ़ घंटे चला। दोनों ही रैलियों में दिये गये भाषणों पर गौर करें तो इसमें ‘गद्दार’, ‘बागी’, ‘बगावत’ जैसे शब्दों की गूंज सुनायी दी। दशहरा रैली के दौरान शिवाजी पार्क में जहां उद्धव ठाकरे ने शिंदे और उनके समर्थकों को सत्ता के लिए भाजपा से हाथ मिलाने को लेकर ‘विश्वासघाती’ बताया, वहीं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि 2019 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन को जनादेश मिलने के बावजूद एनसीपी-कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाकर उद्धव ठाकरे ने जनता को ‘धोखा’ दिया है। 

जहां तक ठाकरे परिवार की बात है तो आपको बता दें कि शिंदे की रैली में उद्धव ठाकरे के भाई जयदेव ठाकरे और उनसे अलग हुईं उनकी पत्नी स्मिता ठाकरे ने भाग लिया। यही नहीं, दिवंगत बाल ठाकरे के पोते निहार ठाकरे तथा शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के लंबे समय तक निजी सहयोगी रहे चंपा सिंह थापा ने भी शिंदे की रैली में हिस्सा लिया। दिलचस्प बात यह थी कि ठाणे में अंतिम रैली के दौरान शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे द्वारा इस्तेमाल की गई कुर्सी को शिंदे की रैली के मंच पर बीच में खाली रखा गया था। अपने संक्षिप्त भाषण में जयदेव ठाकरे ने अलग राह चुनने के शिंदे के ‘साहसी कदम’ की प्रशंसा की और कार्यकर्ताओं से उनका साथ नहीं छोड़ने की अपील की।

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वहीं शिंदे ने शिवसेना से अलग होने को ‘गद्दारी’ नहीं, बल्कि ‘गदर’ करार दिया और उद्धव ठाकरे से कहा कि कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिलाकर बाल ठाकरे के मूल्यों से समझौता करने के लिए उन्हें अपने दिवंगत पिता के स्मारक के सामने घुटने टेक कर माफी मांगनी चाहिए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने दशहरे के अवसर पर बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स के एमएमआरडीए मैदान में महारैली को संबोधित करते हुए कहा कि हम गद्दार नहीं हैं, बल्कि बाला साहेब के सैनिक हैं। शिंदे ने उद्धव पर हमला बोलते हुए कहा कि आपने बाला साहेब के मूल्यों को बेच दिया। कौन असली गद्दार है जिसने सत्ता के लालच में हिन्दुत्व से गद्दारी की। मुख्यमंत्री ने अपनी बगावत का बचाव करते हुए कहा, ‘‘हमने यह कदम शिवसेना को बचाने, बाला साहेब के मूल्यों के संरक्षण, हिन्दुत्व और महाराष्ट्र की बेहतरी के लिए उठाया।'' शिंदे ने कहा, ''हमने सबके सामने ऐसा किया।’’ 

अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए शिंदे ने कहा, ‘‘क्या आपको बाल ठाकरे के मूल्यों से समझौता करने के लिए शिवसेना अध्यक्ष पद पर बने रहने का अधिकार है?’’ उन्होंने कहा कि उनकी दशहरा रैली में भारी भीड़ यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि बाल ठाकरे की विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी कौन हैं। शिंदे ने कहा कि मुख्यमंत्री होने के नाते वह अपने गुट की दशहरा रैली के लिए शिवाजी पार्क बुक करने में हस्तक्षेप कर सकते थे, लेकिन कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘‘आपको शिवाजी पार्क मैदान मिलने के बावजूद हमारे पास शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के सिद्धांत हैं।’’

शिवसेना पार्टी के बागी धड़े के मुखिया एकनाथ शिंदे ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की आलोचना करते हुए कहा कि शिवसेना कोई 'प्राइवेट लिमिटेड कंपनी' नहीं है और 56 साल पुराने संगठन को शिवसेना के आम कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत से बनाया गया है। उन्होंने कहा कि ठाकरे कभी ‘हम दो हमारे दो’ से आगे नहीं बढ़े। हम आपको बता दें कि शिंदे ऐसा कह कर उद्धव ठाकरे के पुत्रों आदित्य और तेजस ठाकरे का हवाला दे रहे थे।

दूसरी ओर शिवसेना अध्यक्ष पद पर दावा ठोक रहे उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों पर तीखा हमला करते हुए कहा कि शिंदे पर लगा ‘विश्वासघाती’ का कलंक कभी नहीं मिटेगा। पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे ने शिंदे पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘विश्वासघाती का कलंक कभी नहीं मिटेगा। जैसे-जैसे समय बदलता है, रावण का चेहरा भी बदल जाता है। आज, ये विश्वासघाती रावण के रूप में हैं।'' ठाकरे ने कहा कि मुख्यमंत्री रहते हुए जब मैं अस्वस्थ था और मेरी सर्जरी हुई थी, तो मैंने वरिष्ठ मंत्री होने के नाते शिंदे को जिम्मेदारी दी थी।’’ ठाकरे ने आरोप लगाया, ‘‘लेकिन उन्होंने यह सोचकर मेरे खिलाफ साजिश रची कि मैं शायद फिर कभी पैरों पर खड़ा नहीं हो पाऊंगा।’’ ठाकरे ने कहा कि आज का रावण ज्यादा सिर होने की वजह से नहीं बल्कि ‘खोखे’ की वजह से जाना जाता है। हम आपको बता दें कि ठाकरे ने खोखे शब्द का जो जिक्र किया है उसका अक्सर पैसे के लिए उपयोग होता है। ऐसा कहकर उन्होंने एमवीए सरकार को गिराने में कथित रूप से धन के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया।

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ठाकरे ने कहा, ‘‘अगर आपको लगता है कि मुझे शिवसेना अध्यक्ष नहीं रहना चाहिए, तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। लेकिन सत्ता लोलुप होने की एक सीमा होती है... विश्वासघात करने के बाद, शिंदे अब पार्टी का चुनाव चिह्न भी चाहते हैं और पार्टी अध्यक्ष भी कहलाना चाहते हैं।’’ उद्धव ठाकरे ने कहा कि शिंदे अब शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत को अपनाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें ‘‘अपने पिता के नाम पर’’ वोट नहीं मिलेंगे। ठाकरे ने कहा कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को वादा तोड़ने का सबक सिखाने के लिए पारंपरिक विरोधियों- कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव के बाद गठबंधन किया था। ठाकरे ने कहा, ‘‘मैं अपने माता-पिता की कसम खाकर कहता हूं कि यह तय किया गया था कि भाजपा और शिवसेना ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद साझा करेंगे।’’ उन्होंने कहा कि एमवीए सरकार में कांग्रेस और एनसीपी नेताओं के साथ मंत्री पद की शपथ लेने वाले सबसे पहले नेताओं में शिंदे शामिल थे और ‘‘उन्हें तब कोई दिक्कत नहीं थी।’’

ठाकरे ने यह भी कहा कि उन्हें भाजपा से हिंदुत्व पर सबक लेने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा नेताओं ने नवाज शरीफ के जन्मदिन पर बिना निमंत्रण के उनसे मुलाकात की और जिन्ना की कब्र के सामने नतमस्तक हुए।’’ ठाकरे ने अपनी पुराने गठबंधन सहयोगी भाजपा पर गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई से ध्यान हटाने के लिए हिंदुत्व का मुद्दा उठाने का भी आरोप लगाया। बढ़ती आय असमानता और बेरोजगारी की चुनौतियों के बारे में होसबाले के बयान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने भाजपा को आईना दिखाया है।’’ डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत के संदर्भ में ठाकरे ने भाजपा की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज का बयान दोहराया कि जब रुपये की कीमत गिरती है तो देश की कीमत भी कम होती है।

इसके अलावा, अपने दिवंगत पिता द्वारा स्थापित पार्टी पर नियंत्रण बनाए रखने का प्रयास कर रहे ठाकरे ने दशहरा रैली में मौजूद शिवसेना के कैडर से मदद मांगी। उन्होंने कहा, ‘‘आज मेरे पास कुछ नहीं है। लेकिन आपके समर्थन से शिवसेना फिर उठ खड़ी होगी।'' उन्होंने कहा कि मैं फिर से शिवसेना के एक कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री बनाउंगा। हमें हर चुनाव में विश्वासघातियों को हराना होगा। ठाकरे ने भाजपा नेता व केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर भी निशाना साधा और सवाल किया कि शाह देश के गृह मंत्री हैं या फिर भाजपा के ‘‘आंतरिक मंत्री’’ जो सिर्फ राज्यों में सरकारें गिराते रहते हैं। शिवसेना को जमीन दिखाने की भाजपा कार्यकर्ताओं से शाह की अपील पर पलटवार करते हुए ठाकरे ने कहा, ‘‘हम भी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की जमीन को अपने देश का हिस्सा बनते हुए देखना चाहते हैं।’’

महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार पर चुटकी लेते हुए ठाकरे ने कहा कि शिंदे नीत सरकार को सत्ता में आए करीब 100 दिन हो गए हैं लेकिन उनका ज्यादातर वक्त दिल्ली में गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि सभी राष्ट्रवादी भारतीयों को भाजपा से बचकर रहना चाहिए क्योंकि उसका लक्ष्य सभी राजनीतिक दलों को समाप्त करने का है। शिवसेना प्रमुख ने संघ पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत हाल ही में मस्जिद गए थे। क्या उन्होंने हिन्दुत्व का साथ छोड़ दिया है?’’ गौरतलब है कि भाजपा कटाक्ष करती रही है कि राकांपा और कांग्रेस से हाथ मिलाकर उद्धव ठाकरे ने हिन्दुत्व का साथ छोड़ दिया।

-नीरज कुमार दुबे

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