एक धर्मनिष्ठ उद्योगपति और भामाशाह दानदाता के रूप में रतन टाटा को श्रद्धांजलि: मगनभाई पटेल
मगनभाई पटेलने इस अवसर पर अपने भाषण में कहा कि जरथुस्त्र दुनिया का एक बहुत छोटा लेकिन बहुत समृद्ध समुदाय है जिसे पारसी समुदाय के नाम से जाना जाता है। पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। इस समुदाय के लोग पर्शियन लोगों के वंशज हैं।
ल ही में जतिन इंडस्ट्रीज ग्रुप द्वारा अहमदाबाद के वटवा में स्वर्गीय रतन नवल टाटा को श्रद्धांजलिदेने हेतुएक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें जतिन इंडस्ट्रीज,शाम इंडस्ट्रीज और फ्लोस्टर इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड के चेरमेन और ऑल इंडिया एमएसएमई फेडरेशन के अध्यक्ष श्री मगनभाई पटेल एव वर्ष १९९५ से अमेरिका की नागरिकता प्राप्त तथा अहमदाबाद में रहकर अपने पिता श्री मगनभाई पटेल के साथ अनेक सेवाकिय कार्यो में जुड़े हुए जतिन इंडस्ट्रीज ग्रुप के मेनेजिंग डिरेक्टर श्री जतिनभाई पटेलने भी स्वर्गीय रतन टाटा को श्रद्धांजली देकर श्रद्धा सुमन अर्पण किये।श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जतिन इंडस्ट्रीज ग्रुप के स्टाफ समेत करीब १५० कर्मचारि भी शामिल हुए थे।
श्री मगनभाई पटेलने इस अवसर पर अपने भाषण में कहा कि जरथुस्त्र दुनिया का एक बहुत छोटा लेकिन बहुत समृद्ध समुदाय है जिसे पारसी समुदाय के नाम से जाना जाता है। पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। इस समुदाय के लोग पर्शियन लोगों के वंशज हैं।लगभग १,००० वर्ष पहले ये लोग पर्शिया मे हो रहे अत्याचारों से बचने के लिए भारत आये थे। पारसी समुदाय बाद में भारत में सबसे अधिक शिक्षित और धनी लोगों में से एक बन गया। विश्व में पारसियों की जनसंख्या १.५ से २ लाख के बीच है जबकि भारत में आज २०११ की जनगणना के अनुसार ५७,२६४ पारसी हैं।
पारसी समुदाय को ईरान में अन्यजातियों के उत्पीड़न के खिलाफ अपने धर्म की रक्षा करना असंभव लगा तब वे करीब १३५० वर्ष पहले वर्ष १७११ में भारत में व्यापारीकरण के लिए भारत आये थे। वे सबसे पहले वर्ष १७६६ के आसपास दीव बंदरगाह पर उतरे। जहां उन्होंने १९ वर्ष बिताए। पुर्तगालियों के हमलों से तंग आकर वे वर्ष १७८५ में समुद्र के रास्ते संजान बंदरगाह पर उतरे। इस समय गुजरात में जादी राणा का शासन था। पारसियों के मुखियाने शरण के लिए राणा के पास एक प्रतिनिधिमंडल भेजा। राणा ने दूध से भरा एक मग भेजकर जवाब दिया और कहा कि हम अत्यधिक आबादीवाले हैं और आपको समायोजित नहीं कर सकते। प्रतिनिधिमंडल वह कप लेकर अपने नेता के पास गया,वह बुद्धिमान था, उसने कप में चीनी मिला दी और वह धीरे-धीरे पिघल गई। उसने वही प्याला लिया और फिर से प्रतिनिधिमंडल को राणा के पास भेजा। राणा को उत्तर दिया गया कि "हम यहाँ दूध में चीनी की तरह मिल जायेंगे" यह सुनकर राणाने उन्हें रहने की अनुमति दे दी। पारसी समुदाय के चमकते सितारों में उद्योगपति टाटा समूह से लेकर रॉक स्टार फ्रेडी मर्करी तक शामिल हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय प्रतिभागियों में दादाभाई नवरोजी, भीखाजी कामा, आदि बुर्जोरजी गोदरेज और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी शामिल हैं।
जमशेदजी टाटा :-
देश के कई पारसी उद्यमियों में से एक जमशेदजी टाटा भारत के सबसे बड़े समूह टाटा समूह के संस्थापक थे।उनका जन्म ३ मार्च,१८३९ को गुजरात के नवसारीमें एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता नुसेरवानजी टाटा और माता जीवनबाई टाटा थीं। वह नुसेरवानजी टाटा के इकलौते बेटे थे। नुसेरवानजी व्यवसाय में हाथ आजमानेवाले परिवार के पहले सदस्य थे। जमशेदजी का पालन-पोषण नवसारी में हुआ और जब वे 14 वर्ष के थे,तब पिता के साथ मुंबई चले गये।उन्होंने मुंबई की एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया और १८५८ में 'ग्रीन स्कॉलर' के रूप में उत्तीर्ण हुए,जो आज स्नातक की डिग्री के बराबर है। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, वह अपने पिता की फर्म में शामिल हो गए और जापान, चीन, यूरोप और अमेरिका में मजबूत शाखाएँ स्थापित करने में मदद की। उन्होंने १८७० के दशक में मध्य भारत में एक कपड़ा मिल शुरू की।वह एक प्रमुख उद्योगपति थे जिनकी दूरदर्शिता और महत्वाकांक्षी प्रयासों ने भारत को औद्योगिक देशों की श्रेणी में लाने में मदद की।उन्हें भारतीय उद्योगजगत के पिता माना जाता है। वह एक अग्रणी उद्योगपति के साथ मानवतावादी विचारधारावाले एक महान व्यक्ति थे।जमशेदजी टाटा की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक-विकास पहल में राष्ट्र को समर्पित ट्रस्टों के पास था। जब श्रमिकों के संबंध में कोई कानून नहीं था, तब भी श्रमिकों के प्रति पहले से ही अपार स्नेह और अच्छी भावना रखने वाले जमशेदजी टाटा ने हमारे देश के औद्योगिक क्षेत्र के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है।जिन्होंने ३ मार्च १८३९ को रोज टाटा ग्रुप की स्थापना की, जो भारत की सबसे बड़ी समूह कंपनी थी।
रतन नवल टाटा :-
रतन टाटा का जन्म २८ दिसंबर,१९३७ को ब्रिटिश राज के दौरान मुंबई में एक पारसी पारसी परिवार में हुआ था। वह नवल टाटा के बेटे थे और बाद में उन्हें टाटा परिवारने गोद लिया था। टाटाने ८ वीं कक्षा तक की पढ़ाई कैंपियन स्कूल,मुंबई से की थी।जिसके बाद उन्होंने मुंबई में कैथेड्रल और जॉन कॉनन, शिमला में बिशप कॉटन स्कूल और न्यूयॉर्क शहर में रिवरडेल कंट्री स्कूल में पढ़ाई की, जहां से उन्होंने १९५५ में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, उन्होंने कॉर्नेल विश्व विद्यालय में दाखिला लिया जहां उन्होंने १९५९ में बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल की। वर्ष २००८ में टाटाने कॉर्नेल को ५० मिलियन अमेरिकी डॉलर का उपहार दिया, जो विश्व विद्यालय के इतिहास में सबसे बड़ा आंतरराष्ट्रिय दान था।रतन टाटा को वर्ष २००० में पद्म भूषण और २००८ में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत सरकार द्वारा दिए जानेवाला तीसरा और दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
स्वर्गीय रतन टाटाने गांधीनगर में एक टेलीविजन निर्माण कंपनी "नेल्को" शुरू की और उसमे वे पहले डिरेक्टर बने और उनके साथ अहमदाबाद के एक बड़े पुस्तक विक्रेता श्री व्रजलालभाई पारिख भी जुड़े।श्री व्रजलालभाई के वहा रतन टाटा कई बार रात गुजारते थे। श्री व्रजलालभाई पारिख गांधीवादी थे और इसीलिए रविशंकर महाराज जैसे कई धर्मनिष्ठ लोग उन्हें उनके घर ठहरते थे।
टाटा समूह एक विनिर्माण क्षेत्र है जहां मूल्यवर्धित उत्पाद बनाये जाते हैं। इसे लाखों इंजीनियरों, तकनीशियनों, वैज्ञानिकों और श्रमिकों को रोजगार देने वाला एक अंतरराष्ट्रीय ट्रस्ट माना जा सकता है, जिसने अपने प्रबंधन से प्राप्त आय का अधिकांश हिस्सा शिक्षा, स्वास्थ्य, राष्ट्रीय सेवा सामाजिक संगठनों को दान करके राष्ट्रीय सेवा का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रदान किया है। टाटा समूह भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक समूह है जो १५० से अधिक देशों में उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करता है,जिसमें लगभग १०,२८,००० कर्मचारी कार्यरत हैं।टाटा समूह ने भारत में कई अनुसंधान, शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना और वित्तपोषण में मदद की है। वर्ष २०२० में टाटा ग्रुप ने भारत में COVID-१९ महामारी से लड़ने के लिए पीएम केयर्स फंड में १५ बिलियन रुपये यानी लगभग १ लाख २६ हजार करोड़ रुपये का दान दिया है, इस प्रकार भारत एक ऐसा देश है जहां बाहर से आए लोगों ने देश की संस्कृति और सरकार के साथ मिलकर काम किया है जो भारत की भूमि का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, उसी प्रकार आदि गोदरेज, अदार पुनावाला जैसे देश के अन्य पारसी व्यापारियों की सेवा को समझेंगे तब ही हम अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में सफल होंगे।गोदरेज, टाटा जैसी पारसी विनिर्माण कंपनियों के दौरे में हमने देखा है कि इन कंपनियों में काम करनेवाले श्रमिकों एव अधिकारियों को उनके पद के अनुसार अच्छे आवास,बच्चों के लिए स्कूल एव परिवहन की सुरक्षित व्यवस्था भी की जाती है साथ ही साथ इन कंपनियोंमें सुबह में नाश्ता,दोपहर में भोजन और शाम को हल्का नाश्ता दिया आता है जो हम इन कंपनियों के प्रत्यक्ष अवलोकन के आधार पर कह सकते हैं, ये कंपनियां अपने कर्मचारियों को अपने परिवार के रूप में मानती हैं जो बहुत ही प्रशंसनीय बात है।इस प्रकार उस समय के उद्योगपति जिन्हें महाजन कहा जाता था, जो अपने मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा अपने श्रमिकों, राज्य या देश की शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करते थे और जब कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आती थी, तो उन्हें बड़ी वित्तीय सहायता मिलती थी।
फ़िरोज़ गांधी :-
फ़िरोज़ गांधी का जन्म १२ सितंबर,१९१२ को गुजरात के एक पारसी परिवार में हुआ था। वह एक स्वच्छ भारतीय राजनीतिज्ञ और पत्रकार थे। स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के बाद, वह महात्मा गांधी से प्रभावित हुए और उन्होंने पूर्ण गांधीवादी विचारधारा को अपनाते हुए उन्होंने वर्ष १९३३ में इंदिराजी से शादी का प्रस्ताव रखा लेकिन इंदिराजी की माँ ने इंदिराजी की कम उम्र (१६ वर्ष) का कारण देते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू भी इस शादी के खिलाफ थे, उन्होंने इस जोड़े को शादी न करने के लिए महात्मा गांधी की मदद भी मांगी, लेकिन नतीजा नहीं बदला और वर्ष १९४२ में उन्होंने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधीजी से शादी की। उनकी शादी के छह महीने के भीतर इस जोड़े को "भारत छोड़ो" आंदोलन में भाग लेने के लिए अगस्त १९४२ में जेल में डाल दिया गया। उन्हें एक वर्ष तक इलाहाबाद की नैनी मध्यवर्ती कारागृह में रखा गया था। वर्ष १९५०-५२ में वे प्रोविंशियल पार्लामेंट के सदस्य थे। उसके बाद वर्ष १९५२ में वे उत्तर प्रदेश के रायबरेली से भारत की पहली संसद के लिए चुने गये। अपनी मृत्यु से पहले फिरोज गाँधी एक शक्तिशाली व्यक्ति बन गये थे। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले उनके दोस्तों एव उनकी पत्नी इंदिराजी को उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार करने को कहा था क्योंकी उन्हें दाह-संस्कार की पारसी पद्धति पसंद नहीं थी।फ़िरोज़ गांधी की मृत्यु ८ सितंबर,१९६० को हुई और उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के निगमबोध घाट पर हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया।उस वक्त १६ साल के राजीव गांधीने फिरोज गाँधी को अग्निदाह दिया था। हालाँकि उनके शरीर को दाह संस्कार के लिए ले जाने से पहले कुछ पारसी रीति-रिवाजों का भी पालन किया गया था। जब फ़िरोज़ के शव के सामने पारसी परंपरा अनुसार 'गेह-सरनु' का पाठ किया गया तो इंदिराजी और उनके दोनों बेटों को छोड़कर सभी को कमरे से बाहर भेज दिया गया था और इंदिराजी लगातार दो दिन तक भूखी रहीं थी। स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद फिरोज गांधी के परिवार ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ४० वर्षों तक देश की सत्ता संभाली। स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू की विचारधारा के साथ जिस तरह काम हुआ उसी तरह यदि गांधीवादी विचारधारा रखनेवाले फिरोज गांधी की विचारधारा के साथ काम किया गया होता तो उस दौरान आर्थिक और सामाजिक रूप से गरीब किसानों और विकर सेक्शन के लोगों के आंसू पोंछे जा सकते थे।एक गुजराती पारसी परिवार के रूप में शासन किया जो हमारा इतिहास है। गुजरात के एक कार्यक्रम में इंदिरा गांधी ने सिर पर साड़ी लपेटकर खुद को गुजरात की बहू बताकर गुजरात पर गर्व महसूस किया था। उनके पति फिरोज गांधी का जन्म भी गुजरात में हुआ था।
आदि बुर्जोरजी गोदरेज :
आदि बुर्जोरजी गोदरेज का जन्म ३ अप्रैल,१९४२ को एक भारतीय अरबपति और व्यवसायी अग्रिम गोदरेज पारसी परिवार में हुआ था,८२ वर्षीय आदि बुर्जोरजी गोदरेजजीने कम उम्र से ही शैक्षणिक उत्कृष्टता दिखाई और मुंबई की सेंट जेवियर्स हाई स्कूल एव कॉलेज में अपनी शिक्षा पूर्ण की। बाद में उन्होंने अहमदाबाद की एच.एल कॉलेज से स्नातक की डिग्री और प्रतिष्ठित एम.आई.टी स्लोअन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से एम.बी.ए की डिग्री हासिल की और व्यावसायिक कौशल को मजबूत किया।अक्टूबर २०२४ तक फोर्ब्स की भारत के १०० सबसे अमीर व्यवसायियों की सूची में आदि गोदरेज ११.२ बिलियन डॉलर की कुल संपत्ति के साथ २१ वें स्थान पर हैं। आदि बुर्जोरजी गोदरेज को व्यापार जगत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए वर्ष २००२ में प्रतिष्ठित राजीव गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।राजीव गांधी पुरस्कार के अलावा आदि बुर्जोरजी गोदरेज को कई अन्य कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों एव सम्मानों से सम्मानित किया गया है, जिसमें २०१३ में भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म भूषण और २००१ में अर्न्स्ट एंड यंग एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर अवार्ड शामिल है। व्यापारिक समुदाय में उनकी उपलब्धियों और योगदान को व्यापक सराहना और सम्मान मिला है।
पीरूज़ खंबाता :- "रसना"
पीरूज़ खंबाता भारतीय सॉफ्ट ड्रिंक "रसना" के चेरमेन एव मेनेजिंग डिरेक्टर है।आज "रसना" दुनिया की सबसे बड़ी कंसन्ट्रेट उत्पादक कंपनी है जो ५३ से अधिक देशों में अपने गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की आपूर्ति करती है। इस ब्रांडने इंटरनेशनल बेस्ट फूड्स, यूनिलीवर, कोका-कोला जैसे दिग्गजों के साथ सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा की है और लगातार बाजार में वृद्धि की है। "रसना" १००% भारत में निर्मित उत्पाद है और कई वर्षों से आत्म निर्भर भारत की मशाल है।
संत साहब :-
श्री मगनभाई पटेलने आगे कहा की मुझे ऐसे एक और पारसी का उदाहरण देते हुए खुशी हो रही है कि वर्ष १९६६-६७ अहमदाबाद के बापूनगर इलाके में म्यू.इंड इस्टेट के बगल में जहां हमारा इंजीनियरिंग यूनिट था,वहां SBI के प्रबंधक के रूप में संत साहब थे जो एक पारसी थे। उनके बाद भेसानिया साहब आए जो भी एक पारसी थे उनके साथ मेरे बहुत अच्छे संबंध थे, उन्होंने छोटे उद्योगकारो को छोटे-बड़े ऋण देकर बहुत मदद की,पारसी लोग कितने व्यावहारिक होते है इस बात का यह उदाहरण है। उस समय बापूनगर,सरसपुर क्षेत्र को मुख्य क्षेत्र माना जाता था जहां ६० कपड़ा मिलों के श्रमिक इस क्षेत्र में रहते थे। जब मिलें बंद होने लगीं तब श्रमिकों की ग्रेच्युटी का पैसा बैंकों में आने लगा, उस समय संत साहब और भेसानिया साहब SBI बैंक में मैनेजर थे, श्री मगनभाई पटेल व्यक्तिगत रूप से SBI बैंक में जाते थे और इन श्रमिकों के खाते खोलने में मदद करते थे। मिलें बंद होने के बाद इन लोगों ने एक व्यापक क्रांति की। ये मजदूर सौराष्ट्र और कुछ उत्तरी गुजरात यानी मेहसाणा की तरफ से थे। उन्होंने फरसाण, कपड़ा जैसे छोटे-बड़े कारोबार में हाथ आजमाया, साथ ही साथ उनके घर की महिलाओंने घर पर ही कई तरह के घरेलू कुटीर उद्योग शुरू किए जैसे अगरबत्ती, सिलाई का काम, उद्योगों से पैकिंग सामग्री लाकर पेकिंग करना इत्यादि। इसके लिए संत साहब और भेसानिया साहबने छोटे-बड़े ऋण देकर कुटीर उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुरुषो की डायमंड इंडस्ट्रीज़मे एन्ट्री होने लगी और पावरलूम, कपड़ा और अन्य विनिर्माण इकाइयां तेजी से बढ़ने लगीं, जिसकी सफलता में SBI के संत साहब और भेसानिया साहब का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आज इन लोगों ने विश्व रिकॉर्ड बनाकर सूरत और गुजरात को विश्व मंच पर प्रमुख स्थान दिलाया है। इस प्रकार केवल १० वीं कक्षा तक पढ़े कई लोगोंने किरण हॉस्पिटल से लेकर सरदार धाम जैसे कई सेवा प्रोजेक्ट किए हैं और जिन्होंने अपने व्यवसाय में ४ से ५ हजार करोड़ का वार्षिक कारोबार किया है,उन्होंने राजनीतिक,सामाजिक, धार्मिक,आध्यात्मिक जैसे क्षेत्र में उचित दान देकर विश्व रिकॉर्ड बनाया है।
नरीमन कामा :-
अहमदाबाद में सरखेज-धोलका रोड पर स्थित करीब ५० मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की संस्था "चिन्मय" जिसके संस्थापक मानसिक रूप से विकलांग विषय पर पीएच.डी श्री गर्ग शुक्ला चला रहे है , यह संस्था करीब १००० वार जगाह में फैली हुई है जिसे स्व.नरीमन कामा द्वारा इस संस्था को दान में दी गई है। रेलवे स्टेशन,बस स्टेशनो पर असहाय अवस्था में पाए जानेवाले मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को इस संस्था में लाया जाता है और उन्हें उचित शारीरिक और मानसिक उपचार दिया जाता है। इसके अलावा इस संस्था के पास की जमीन पर विकर सेक्शन के बच्चों के लिए एक स्कूल भी बनाया जा रहा है, जिसे स्वर्गीय नरीमन कामा साहबने गर्गभाई शुक्ला और मधुभाई शुक्ला के ट्रस्ट को दि हुई है। यह क्षेत्र एक स्लम एरिया है जहां सेवाकीय यज्ञ शुरू हुआ है जिसमें श्री मगनभाई पटेल आर्थिक रूप एव प्रबंधन में बहुत सक्रिय हैं। नरीमन कामा साहबने स्पोर्ट्स क्लब और गुजरात राइफल क्लब की भी स्थापना की है और अहमदाबाद में पहला पांच सितारा होटल "कामा होटल" भी स्वर्गीय नरीमन कामा साहब द्वारा शुरू किया गया है। ऐसी कई अन्य संस्थाएं नरीमन कामा साहबने शुरू की हैं और समाज सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है।
श्री मगनभाई पटेलने अपने भाषण के अंत में कहा कि जब केन्या, तांझानिया,मध्य पूर्व जैसे देशों में निर्यात किया जाता था, तब एक स्विस कंपनी द्वारा थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन किया जाता था और लीलाववाला साहब,जो एक पारसी थे,वे एक निरीक्षक के रूप में आते थे। वे बहुत मिलनसार स्वभाव के थे और हमें निर्यात में जानकारी देकर प्रोत्साहित किया करते थे , इस तरह अगर आज पारसियों के बारे में बात करें तो एक किताब लिखी जा सकती है।
श्री मगनभाई पटेलने आगे कहा कि जिस तरह से महात्मा गांधीजी,सरदार वल्लभभाई पटेल और हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी की टीमने परिणामलक्षी कार्यो कर के जो सिद्धि हासिल कि हैं, उससे गुजरात की जनता गर्व महसूस कर रही हैं। देश आजाद होने से लेकर आज तक देश को विकास के पथ पर लाने में हमारे माननीय पूर्व राष्ट्रपतियों,प्रधानमंत्रियों एवं उनकी टीम का जो महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उसके लिए जितनी भी बधाई दी जाय कम है।
इस तरह दूध में चीनी की तरह घुल-मिलनेवाले पारसी लोगों से यह सीखना चाहिए कि यदि बाहर से आनेवाले अल्पसंख्य लोग औद्योगिक एवं सामाजिक क्षेत्र में इतना बड़ा योगदान देकर देश में क्रांति ला सकते हैं तो अन्य सफल व्यवसायी इस पारसी समुदाय से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय सेवा के कार्यों में भाग लेंगे तो निश्चित ही परिणामलक्षी कार्य हो सकेगा जिसमे कोई संदेह नहीं है। इस पारसी समुदाय के सफल लोगों से प्रेरणा लेने की बात है कि देश सामाजिक,राजनीतिक और औद्योगिक क्षेत्र में बिना किसी से विरोध किये बगैर विकास कर सकता है।
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