जन्मदिन विशेष : आज देश याद कर रहा अपने वीर योद्धा Guru Gobind Singh जी को, इस साल दो बार मनायी जायेगी जयन्ती

Guru Gobind Singh
प्रतिरूप फोटो
ANI
Anoop Prajapati । Jan 6 2025 12:07PM

सबसे वीर योद्धाओं में से एक गुरु गोबिंद सिंह जी की जयन्ती आज पूरे देश में मनायी जा रही है। हिन्दु कलैंडर के अनुसार, इस साल उनका दो बार मनाया जाएगा क्योंकि पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि इस साल दो दिन पड़ रही है। आज गुरु गोबिंद सिंह जी की 358वीं जन्म वर्षगांठ है।

देश की धरती पर जन्म लेने वाले सबसे वीर योद्धाओं में से एक गुरु गोबिंद सिंह जी की जयन्ती आज पूरे देश में मनायी जा रही है। हिन्दु कलैंडर के अनुसार, इस साल उनका दो बार मनाया जाएगा क्योंकि पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि इस साल दो दिन पड़ रही है। आज गुरु गोबिंद सिंह जी की 358वीं जन्म वर्षगांठ है तो वहीं 27 दिसंबर को उनकी 359वीं जन्म वर्षगांठ मनाई जाएगी। जूलियन कैलेण्डर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर, 1666 को बिहार के पटना में हुआ था। पंचांग अनुसार उनके जन्म के समय पौष शुक्ल सप्तमी थी। इसलिए ही इस तिथि पर हर साल उनकी जयंती मनाई जाती है।

गुरु गोबिंद सिंह का जन्म और जन्मस्थल

गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म विक्रम सम्वत 1723 में पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के यहां पटना साहिब में हुआ था हुआ था। वे सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे जो श्री गुरू तेग बहादुर जी के बलिदान के बाद वे 11 नवम्बर सन् 1675 को 10 वें गुरू बने थे। गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान योद्धा, चिन्तक, कवि और आध्यात्मिक नेता थे। ऐतिहासिक स्त्रोतों के मुताबिक, 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उनका मूल नाम गोविंद राय था। मात्र 10 वर्ष की आयु से ही उन्हें सिखों के दसवें गुरु के रूप में जाना जाने लगा था। गुरु गोबिंद सिंह जी को कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नामों से जाना जाता है।

निजी जिंदगी

खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोबिंद जी की तीन शादियां हुई थी, उनका पहला विवाह आनंदपुर के पास स्थित बसंतगढ़ में जीतो नाम की कन्या के साथ हुआ था। इस विवाह के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी को जोरावर सिंह, फतेह सिंह और जुझार सिंह नाम की तीन संतान पैदा हुई थी। इसके बाद माता सुंदरी से उनका दूसरा विवाह हुआ था। इस शादी के बाद उन्हें अजित सिंह नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी। फिर गुरु गोविंद जी का विवाह माता साहिब से हुआ था लेकिन इस शादी से उनकी कोई संतान नहीं थी।

गुरु ग्रंथ साहिब को दिया गुरु का दर्जा

सिखों के पवित्र ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' को गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ही पूरा किया और उन्हें गुरु का दर्जा दिया। उन्होंने अन्याय को खत्म करने और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े थे। धर्म की रक्षा करते-करते उन्होंने अपने समस्त परिवार का बलिदान दे दिया था। यही कारण है कि उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है। गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए गुजारा था। बचपन में ही उन्होंने संस्कृत, उर्दू, हिंदी, ब्रज, गुरुमुखी और फारसी जैसी कई भाषाएं सीख ली थीं। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही ‘खालसा पंथ’ में जीवन के पांच सिद्धांत दिए थे, जिन्हें ‘पंच ककार’ के नाम से जाना जाता है। ये पंच ककार हैं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा। इनका अनुसरण करना हर खालसा सिख के लिए अनिवार्य है।

मुगलों ने धोखे से की हत्या

सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह एक ऐसे संत, लीडर और योद्धा थे, जिनकी तीन पीढ़ियों ने मुगलों से जंग की। मुगल शासक औरंगजेब कश्मीर में बड़े पैमाने पर हिंदुओं को मुस्लिम बनाने का काम कर रहा था। वहीं जो लोग मुस्लिम धर्म नहीं अपना रहे थे, उनकी हत्या कर दी जा रही थी। ऐसे में यह जानकारी मिलने पर गुरु गोबिंद सिंह का मन विचलित हो उठा और उन्होंने अपने पिता यानी की 9वें गुरु से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा। जिसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के पिता की हत्या कर दी गई।

वहीं समय आने पर उन्होंने अपने बेटों को मुगलों से युद्ध करने के लिए भी भेजा। लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने उनके दो बेटों को दीवार में जिंदा चुनवा दिया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने बहादुर शाह जफर को बादशाह बनने में मदद की। यह बाद अन्य मुगल शासकों को बहुत खटकी। ऐसे में नवाब वजीत खां ने अपने दो सिपाहियों से गुरु गोबिंद सिंह पर धोखे से हमला करवा दिया। वहीं 07 अक्तूबर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह का निधन हो गया।

हिंदुओं के धर्मरक्षक

गुरु गोबिंद सिंह पूरा जीवन सिखों के मार्गदर्शक बने रहे। इसके साथ ही वह हिंदुओं के भी धर्मरक्षक बनें। उनके द्वारा तय किए गए खालसा पंथ के नियमों को आज भी जवान फॉलो करते हैं। वैसे तो सिख पंथ की स्थापना करने वाले गुरु नानक देव जी से लेकर सभी 10 सिख गुरुओं की अपनी भूमिकाएं रही हैं। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी उनमें सबसे अलग थे। उन्होंने खालसा महिमा, बचित्र नाटक, जफरनामा, चंडी द वार और जाप साहि जैसे अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा।

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