विपक्ष ने सरकार पर RTI को कमजोर करने का लगाया आरोप, भाजपा ने कहा, विपक्ष पैदा कर रहा भ्रम
भाजपा सदस्य ने यह भी कहा कि मोदी सरकार के पिछले पांच साल के कार्यकाल में आरटीआई के माध्यम से कोई घोटाला उजागर नहीं हुआ जबकि संप्रग सरकार में राष्ट्रमंडल खेल घोटाला और 2जी स्पेक्ट्रम जैसे घोटाले आरटीआई के माध्यम से ही उजागर हुए थे। द्रमुक के ए राजा ने आरोप लगाया कि सरकार यह जताना चाहती है कि वह संख्याबल का इस्तेमाल लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए कर सकती है। उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन की तुलना मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन से किये जाने पर कहा कि चुनाव आयोग के बिना लोकतंत्र कुछ समय चल सकता है लेकिन आरटीआई हमें संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की आजादी के मूलभूत अधिकार के तहत मिला है।
नयी दिल्ली। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने सरकार पर सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक लाकर इस महत्वपूर्ण कानून को कमजोर करने का आरोप लगाया वहीं भाजपा ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि विपक्ष जनता के बीच अनावश्यक भ्रम पैदा करना चाहता है और सरकार द्वारा लाये गये तकनीकी संशोधन से सूचना आयोग और मजबूत होगा। लोकसभा में सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के शशि थरूर ने विधेयक को वापस लिये जाने और संसदीय स्थाई समिति को भेजने की मांग की। थरूर ने कहा कि सरकार इस विधेयक के माध्यम से एकपक्षीय तरीके से सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और कार्यावधि का फैसला कर सकेगी।
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सरकार इसे छोटा संशोधन बता रही है लेकिन यह सूचना के अधिकार (आरटीआई) की रूपरेखा को कमजोर करने के लिए लाया गया है।उन्होंने कहा कि यह सरकार आरटीआई को ‘बिना पंजे वाला शेर’ बनाने के सतत प्रयासों के तहत इस संशोधन को लेकर आई है। थरूर ने कहा कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से राज्यों में भी सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों की नियम, शर्तें तय करेगी। थरूर ने आरोप लगाया, ‘‘यह न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन नहीं बल्कि इसके विपरीत सर्वोच्च स्तर का राजनीतिक निराशावाद है।’’इससे पहले विधेयक को चर्चा और पारित करने के लिए पेश करते हुए कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि आरटीआई और उसकी स्वायत्तता को कमजोर करने की बातें निराधार हैं। उन्होंने कहा कि इस संशोधन के माध्यम से हम सूचना आयोगों के कामकाज को संस्थागत बनाएंगे और विसंगतियों को दूर करेंगे। चर्चा में भाग लेते हुए थरूर ने कहा कि विधेयक बिना किसी सार्वजनिक विमर्श के लिए लाया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार मानती है कि संसद रबर स्टांप की तरह काम करेगी। जो विधेयक लाएंगे, पारित हो जाएगा।’’ थरूर ने कहा कि सरकार को इस संशोधन विधेयक को वापस लेना चाहिए और समझ के लिए संसद की स्थाई समिति को भेजना चाहिए। सरकार को स्थाई समिति का भी तत्काल गठन करना चाहिए।उन्होंने कहा कि कांग्रेस इतने खतरनाक विधेयक को स्वीकार नहीं करेगी।चर्चा में शामिल होते हुए भाजपा के जगदंबिका पाल ने कहा कि इस संशोधन के माध्यम से सरकार 2005 के मूल आरटीआई कानून की भावना में कोई बदलाव नहीं कर रही।उन्होंने कहा कि विपक्षी सदस्य ऐसा भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारी सरकार आरटीआई को कमजोर करना चाहती है जबकि सरकार को इस तकनीकी संशोधन से केवल नियम बनाने का अधिकार मिलेगा। पाल ने कहा कि आज का संशोधन केवल ढांचागत मजबूती के लिए किया गया प्रशासनिक संशोधन है। बाकी सूचना के अधिकार कानून के तहत सारे प्रावधान पूरी तरह निहित हैं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने आरटीआई विधेयक को और मजबूत किया है। अगर सरकार कानून को कमजोर करना चाहती तो पिछली लोकसभा में सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति समिति में शामिल नहीं करती जबकि उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल सका था।
भाजपा सदस्य ने यह भी कहा कि मोदी सरकार के पिछले पांच साल के कार्यकाल में आरटीआई के माध्यम से कोई घोटाला उजागर नहीं हुआ जबकि संप्रग सरकार में राष्ट्रमंडल खेल घोटाला और 2जी स्पेक्ट्रम जैसे घोटाले आरटीआई के माध्यम से ही उजागर हुए थे। द्रमुक के ए राजा ने आरोप लगाया कि सरकार यह जताना चाहती है कि वह संख्याबल का इस्तेमाल लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए कर सकती है। उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन की तुलना मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन से किये जाने पर कहा कि चुनाव आयोग के बिना लोकतंत्र कुछ समय चल सकता है लेकिन आरटीआई हमें संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की आजादी के मूलभूत अधिकार के तहत मिला है। इसलिए तुलना नहीं की जा सकती।राजा ने आरोप लगाया कि सरकार सूचना आयुक्तों को अपना ‘सेवक’ बनाना चाहती है। उन्होंने कहा कि अगर आज यह विधेयक पारित हो जाता है तो लोकतंत्र के लिए ‘काला दिन’ होगा और जनता कभी इसके लिए माफ नहीं करेगी।इससे पहले शुक्रवार को विपक्ष के कड़े विरोध तथा कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस के वाक आउट के बीच सरकार ने लोकसभा में सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 पेश किया था। विधेयक में यह उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे । मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है।
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— Lok Sabha TV (@loksabhatv) July 22, 2019
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