Islamic Invasions and The Hindu Fightback 1 | यूरोप में कैसे हुई इस्लाम की एंट्री? | Teh Tak
बताया जाता है कि इसकी शुरुआत 80 के दशक से ही हो गई थी। तब ईरान के धार्मिक नेताओं ने इस्लामिक जागरण की बात शुरू की। वे अपील करने लगे कि यूरोप जाकर खुद को यूरोपियन रंग रूप में ढालने की बजाए मुसलमान खुद को मुस्लिम बनाए रखे। यहीं से सब बदलने लगा।
कुछ दिन पहले की ही बात है स्वीडन में इस्लामिक ग्रंथ कुरान को जलाने की घटना ने 57 मुस्लिम देशों को नाराज कर दिया था। फ्रांस में नाइजीरिया मूल के 17 साल के युवा को गोली मारे जाने की घटना के बाद से पूरा देश जल उठा था। दोनों ही घटनाओं को इस्लामिक कट्टरपंथ से जोड़ कर देखा गया। जिसके बाद फ्रांस में मुस्लिम प्रवासियों को यूरोप में आने से रोकने की मांग भी तेज हो गई। गौर करने वाली बात ये भी है कि इन दिनों यूरोप के कई देशों में मुस्लिम चरमपंथ को घटाने के नाम पर कई बदलाव भी हो रहे हैं। इसके पीछे की वजह ये मानी जा रही है कि यूरोपीय देशों को ये डर है कि कहीं यूरोप का अरबी करण न हो जाए। इसके लिए एक प्रचलित टर्न यूरेबिया का भी जिक्र किया जा रहा है।
यूरोप को ये डर क्यों लग रहा है, इसे समझने के लिए सबसे पहले ये जान लेते हैं कि यूरोप में इस्लाम की एंट्री कैसे हुई?
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बताया जाता है कि यूरोप में मुस्लिम आबादी सीरिया, इराक और युद्ध से जूझते दूसरे देशों से आते गए। शुरुआत में यहां शरणार्थियों को लेकर सरकारें काफी उदार थी। फ्रांस समेत यूरोप के कई देशों ने एक आदर्श के तहत आने वाले शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी। वहीं दूसरा पक्ष ये मानता है कि सस्ते मजदूरों की लालच में फ्रांस ने प्रवासियों को आने दिया। इसमें ऐसे प्रवासी भी थे जिन्हें खुद इस्लामिक देश अपनी जेलों में डालना चाहते थे। यूरोप के ज्यादातर देशों के धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक शासन में किसी के साथ भी उसकी धर्म या नस्ल के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। लेकिन अब रिपोर्ट बताते हैं कि यूरोप में करीब 2 करोड़ 60 लाख से ज्यादा मुसलमान रहते हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि इनमें से एक हिस्सा यूरोप में अक्सर विवादों में रहता है जो इस्लाम के नाम पर कट्टर विचारों को बढ़ावा देता है।
जागरण के नाम पर कट्टरपंथ की अपील
बताया जाता है कि इसकी शुरुआत 80 के दशक से ही हो गई थी। तब ईरान के धार्मिक नेताओं ने इस्लामिक जागरण की बात शुरू की। वे अपील करने लगे कि यूरोप जाकर खुद को यूरोपियन रंग रूप में ढालने की बजाए मुसलमान खुद को मुस्लिम बनाए रखे। यहीं से सब बदलने लगा। मुस्लिम अपनी मजहबी पहचान को लेकर कट्टर होने लगे। ये यूरोप के पुराने कल्चर को प्रभावित करने लगा। जिससे वहां के लोगों को परेशानी होने लगी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो दशक में इस्लाम के नाम पर यूरोप में की गई हिंसा में हजारों लोग मारे गए हैं। कही लोग दावा करते हैं कि इसकी बड़ी वजह ये है कि इस्लामिक देशों से बडी संख्या में प्रवासी यूरोप पहुंचे हैं। अब हालात ये है कि यूरोप का एक तबका यूरेबिया की थ्योरी पर यकीन करने लगा है।
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किन देशों में कितनी मुस्लिम आबादी
प्यू रिसर्च सेंटर के डेटा के मुताबिक अगर इसी वक्त यूरोप अपने बॉर्डर सीलबंद कर दे तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। मुस्लिम आबादी बढ़ती ही जाएगी। फ्रांस और जर्मनी मुस्लिम आबादी के मामले में काफी ऊपर हैं। साल 2016 में फ्रांसीसी मुस्लिमों की आबादी 57 लाख पार कर चुकी है। इसके बाद जर्मनी का नंबर आता है। यहां 49 लाख मुस्लिम बसे हुए हैं। यूनाइटेड किंगडम, इटली, नीदरलैंड, स्पेन, बेल्जियम, स्वीडन जैसे देश इनके बाद हैं। यूरोपियन यूनियन के कहत आने वाले साइप्रस में कुल आबादी का करीब 26 मुस्लिम ही हैं।
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