History of Maharashtra Politics Part 3 | पल-पल बदलते स्टैंड ने राज ठाकरे को किया अप्रभावी| Teh Tak
2005 में नारायण राणे ने भी शिवसेना छोड़ दिया और एनसीपी में शामिल हो गए। बाला साहब ठाकरे के असली उत्तराधिकारी माने जा रहे उनके भतीजे राज ठाकरे के बढ़ते कद के चलते उद्धव का संघर्ष भी खासा चर्चित रहा। यह संघर्ष 2004 में तब चरम पर पहुंच गया, जब उद्धव को शिवसेना की कमान सौंप दी गई।
शिवसैनिक और आम लोग राज ठाकरे में बाल ठाकरे का अक्स, उनकी भाषण शैली और तेवर देखते थे और उन्हें ही बाल ठाकरे का स्वाभाविक दावेदार मानते थे, जबकि उद्धव ठाकरे राजनीति में बहुत दिलचस्पी नहीं लेते थे। राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे की तरह अपनी बेबाक बयानबाजी को लेकर हमेशा चर्चाओं में रहे। स्वभाव से दबंग, फायर ब्रांड नेता राज ठाकरे की शिवसैनिकों के बीच लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। बाल ठाकरे को बेटे और भतीजे में से किसी एक को चुनना था। बालासाहब ठाकरे के दबाव के चलते उद्धव ठाकरे 2002 में बीएमसी चुनावों के जरिए राजनीति से जुड़े और इसमें बेहतरीन प्रदर्शन के बाद पार्टी में बाला साहब ठाकरे के बाद दूसरे नंबर पर प्रभावी होते चले गए। पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी करते हुए जब कमान उद्धव ठाकरे को सौंपने के संकेत मिले तो पार्टी से संजय निरूपम जैसे वरिष्ठ नेता ने किनारा कर लिया और कांग्रेस में चले गए।
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मैं आज से शिवसेना के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे रहा हूं...
2005 में नारायण राणे ने भी शिवसेना छोड़ दिया और एनसीपी में शामिल हो गए। बाला साहब ठाकरे के असली उत्तराधिकारी माने जा रहे उनके भतीजे राज ठाकरे के बढ़ते कद के चलते उद्धव का संघर्ष भी खासा चर्चित रहा। यह संघर्ष 2004 में तब चरम पर पहुंच गया, जब उद्धव को शिवसेना की कमान सौंप दी गई। जिसके बाद शिवसेना को सबसे बड़ा झटका लगा जब उनके भतीजे राज ठाकरे ने भी पार्टी छोड़कर अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली। राज ठाकरे उसी चाल पर चलना चाहते थे जिस धार पर चलकर बाल ठाकरे ने अपनी उम्र गुजार दी। 27 नवम्बर 2005 को राज ठाकरे ने अपने घर के बाहर अपने समर्थकों के सामने घोषणा की। मैं आज से शिवसेना के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे रहा हूं। पार्टी क्लर्क चला रहे हैं, मैं नहीं रह सकता। हालांकि राज ठाकरे का पार्टी छोड़कर जाने का दुख बाल ठाकरे को हमेशा से रहा। लेकिन 16 साल की राजनीति में राज ठाकरे के हाथ अब तक कुछ खास नहीं लग सका है।
राज ठाकरे के प्रति समर्थन लगातार घटता रहा
शुरुआती दौर के अलावा राज ठाकरे के प्रति समर्थन भी लगातार घटता गया है। साल 2020 में दिवंगत शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे की जयंती पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने अपनी पार्टी के झंडे में बदलाव कर बड़ा सियासी संकेत देने की कोशिश की। इस झंडे का रंग केसरिया और इसके केंद्र में राजमुद्रा अंकित है। राज ठाकरे के इस कदम को उनकी पुरानी कट्टर हिंदुत्वादी विचारधारा एवं छवि की तरफ लौटने से जोड़कर देखा गया। राज ठाकरे ने नए झंडे का रंग केसरिया और इस पर अंकित राजमुद्रा शिवाजी से जुड़ी है। लेकिन उसके बाद भी राज ठाकरे ज्यादा सक्रिय नहीं नजर आए। लेकिन अब एक बार फिर से महाराष्ट्र में शिवसेना के कांग्रेस और राकांपा के साथ जाने के बाद राज्य की राजनीति में राज ठाकरे को अपने लिए बड़ी भूमिका दिखने लगी है। राज ठाकरे बीजेपी के बताए रास्ते जा रहे हैं या फिर कहे कि बीजेपी के करीब जा रहे हैं।
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राज ठाकरे का पल-पल बदलता स्टैंड
मनसे के गठन के बाद से ही राज ठाकरे का कभी बीजेपी से नजदीकी और दूरी का पल पल बदलता रिश्ता रहा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने खुले तौर पर बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को सपोर्ट करने का ऐलान कर दिया और कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद उनकी पार्टी एमएनएस नरेंद्र मोदी को समर्थन देगी। इस दौरान तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा भी था कि राज शिवसेना-बीजेपी-आरपीआई गठबंधन में शामिल हुए बिना मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं। लेकिन तब जवाब देते हुए राज ठाकरे ने कहा था कि मैंने प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी को अपना समर्थन दिया है, राजनाथ को नहीं...मोदी इस मुद्दे पर चुप हैं तो फिर आप इसके बारे में क्यों बोल रहे हैं? वक्त बदलता है और मोदी सरकार सत्ता में आती है। पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करती है। फिर आता है 2019 का लोकसभा चुनाव। लेकिन इस दौरान एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी को बिन मांगे समर्थन देने वाले राज ठाकरे 2019 आते-आते विरोध में खड़े नजर आते हैं। . 2019 के आम चुनाव से पहले राज ठाकरे महाराष्ट्र में घूम घूम कर मोदी विरोधी मुहिम चलाते हैं। राज ठाकरे के मंच से स्क्रीन पर मोदी के पुराने भाषण दिखाये जाते और लोगों को ये समझाने की कोशिश होती कि मोदी कितना झूठ बोलते हैं। 2024 आते आते स्थिति पूरी तरह से बदल सी गई। राज ठाकरे बीजेपी का विरोध करके और साथ रह कर भी देख चुके हैं। अब तक कुछ भी नहीं मिल सका है और ले देकर महाराष्ट्र विधानसभा में कहने भर को एक विधायक है।
शिंदे के रूप में मिला बाल ठाकरे की विरासत दावेदार
पहले उद्धव ठाकरे के मुकाबले वाली समानांतर राजनीति में राज ठाकरे की एक खास अहमियत बनती थी क्योंकि राज ठाकरे को शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे वाले राजनीतिक मिजाज का नेता माना जाता था। और ये कोई हवा हवाई बातें नहीं थीं। राज ठाकरे ने महाराष्ट्र की राजनीति में अपना एक खास कद भी अख्तियार किया था। राज ठाकरे को असली टैलैंट और उद्धव ठाकरे को पिता की विरासत के कारण राजनीति में आये नेता ही माना जाता था। बीजेपी ने भी राज ठाकरे का इस्तेमाल ही किया है, और जब उद्धव ठाकरे को वो कोई खास डैमेज नहीं कर पा रहे थे, तो बीजेपी किसी नये किरदार की तलाश में जुट गई और एकनाथ शिंदे के मिलते ही वो काम भी पूरा हो गया।
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