Supreme Court समय बढ़ाने संबंधी SBI की अर्जी पर 11 मार्च को करेगा सुनवाई
इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि एसबीआई ने चुनावी बॉण्ड के जरिये राजनीतिक दलों को मिले चंदे का विवरण निर्वाचन आयोग को छह मार्च तक सौंपे जाने संबंधी शीर्ष अदालत के निर्देश की ‘‘जानबूझकर’’ अवज्ञा की। सोमवार के लिए निर्धारित शीर्ष न्यायालय की मामला सूची के अनुसार, पीठ इन दो याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए पूर्वाह्न साढ़े 10 बजे बैठेगी।
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की उस अर्जी पर 11 मार्च को सुनवाई करेगी, जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा नकदी में परिवर्तित किये गए प्रत्येक चुनावी बॉण्ड के विवरण का खुलासा करने के लिए समयसीमा 30 जून तक बढ़ाने का अनुरोध किया गया है। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ एक अलग याचिका पर भी सुनवाई करेगी, जिसमें एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है।
इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि एसबीआई ने चुनावी बॉण्ड के जरिये राजनीतिक दलों को मिले चंदे का विवरण निर्वाचन आयोग को छह मार्च तक सौंपे जाने संबंधी शीर्ष अदालत के निर्देश की ‘‘जानबूझकर’’ अवज्ञा की। सोमवार के लिए निर्धारित शीर्ष न्यायालय की मामला सूची के अनुसार, पीठ इन दो याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए पूर्वाह्न साढ़े 10 बजे बैठेगी। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं।
उच्चतम न्यायालय ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में, चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द कर दिया था और इसे ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए निर्वाचन आयोग को चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई राशि और प्राप्तकर्ताओं का 13 मार्च तक खुलासा करने का आदेश दिया था। योजना को तुरंत बंद करने का आदेश देते हुए, शीर्ष अदालत ने योजना के तहत अधिकृत बैंक एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से खरीदे गए चुनावी बॉण्ड का विवरण छह मार्च तक निर्वाचन आयोग को सौंपने का निर्देश दिया था। साथ ही, आयोग को अपनी वेबसाइट पर 13 मार्च तक यह जानकारी प्रकाशित करने को कहा था।
एसबीआई ने चार मार्च को, राजनीतिक दलों द्वारा भुनाये गए चुनावी बॉण्ड के विवरण का खुलासा करने के लिए 30 जून तक समय बढ़ाने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। अपनी अर्जी में, एसबीआई ने दलील दी है कि प्रक्रिया को पूरा करने में समय लगेगा। अर्जी में कहा गया है कि चुनावी बॉण्ड को ‘डीकोड’ (कूट रहित) करना और चंदे का मिलान इसे देने वालों से करना एक जटिल प्रक्रिया होगी।
अर्जी में दलील दी गयी है, ‘‘बॉण्ड जारी करने से जुड़े आंकड़े और बॉण्ड को नकदी में परिवर्तित करने से संबद्ध आंकड़े दो अलग-अलग स्थानों पर हैं। यह चंदा देने वालों की गोपनीयता को सुरक्षित रखने के लिए किया गया था।’’ अर्जी में कहा गया है, ‘‘चंदा देने वालों का विवरण (बैंक की) निर्दिष्ट शाखाओं में सीलबंद लिफाफों में रखा गया है और ये सीलबंद लिफाफे अर्जी दायर करने वाले बैंक की मुख्य शाखा में जमा किये गए हैं, जो मुंबई में है।’’
शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर कर अनुरोध किया गया है कि, न्यायालय के निर्देशों की कथित अवज्ञा को लेकर एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए। गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स तथा कॉमन काउज द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि समय दिए जाने के अनुरोध वाली एसबीआई की अर्जी अंतिम क्षणों में जानबूझ कर दायर की गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चंदा देने वालों और चंदे की रकम का खुलासा लोकसभा चुनावों से पहले नहीं हो।
याचिका में कहा गया है, ‘‘यह इस न्यायालय के प्राधिकार को कमतर करने की एक स्पष्ट कोशिश है।’’ अवमानना याचिका में कहा गया है कि चुनावी बॉण्ड योजना की धारा सात के अनुसार, क्रेता (बॉण्ड खरीदने वालों) द्वारा दी गई सूचना का खुलासा सक्षम अदालत द्वारा मांगे जाने पर किया जा सकता है। याचिका में कहा गया है कि चुनावी बॉण्ड का पूरी तरह से पता लगाया जा सकता है जो इस तथ्य से जाहिर है कि एसबीआई, बॉण्ड खरीदने वालों और चंदा प्राप्त करने वाले दलों का ‘संख्या आधारित रिकॉर्ड’ रखता है। अवमानना याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के वित्त पोषण को किसी भी तरह से गोपनीय रखना सहभागिता वाले लोकतंत्र की भावना और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के खिलाफ है।
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