JKLF chief Yasin Malik की व्यक्तिगत उपस्थिति से सुप्रीम कोर्ट नाराज, कहा- ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया
यासीन मलिक को तिहाड़ जेल के अधिकारियों द्वारा कड़ी सुरक्षा के बीच सुप्रीम कोर्ट लाया गया। हालांकि, सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि जस्टिस दत्ता इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते।
जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) प्रमुख यासीन मलिक की व्यक्तिगत उपस्थिति पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सवाल किया कि जब ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया गया तो उन्हें अदालत में क्यों लाया गया। अदालत जम्मू विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ सीबीआई की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने चार भारतीय वायुसेना कर्मियों की हत्या और 1989 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ़्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण से संबंधित मामलों में गवाहों से जिरह के लिए यासीन मलिक की शारीरिक उपस्थिति के लिए एक नया उत्पादन वारंट जारी किया था।
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यासीन मलिक को तिहाड़ जेल के अधिकारियों द्वारा कड़ी सुरक्षा के बीच सुप्रीम कोर्ट लाया गया। हालांकि, सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि जस्टिस दत्ता इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि मामले में यासीन मलिक को शीर्ष अदालत के समक्ष पेश करने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा कोई आदेश पारित नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि यह एक बड़ा सुरक्षा मुद्दा है, और वह एक उच्च जोखिम वाला कैदी है जिसे जेल से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है। इस आशय का एक आदेश पारित किया गया है। मेहता ने पीठ को आश्वासन दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक कदम उठाए जाएंगे कि मलिक को भविष्य में इस तरह जेल से बाहर नहीं लाया जाए।
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अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पीठ को सूचित किया कि शीर्ष अदालत के आदेश की गलत व्याख्या के कारण जेल अधिकारियों द्वारा मलिक को लापरवाही से जेल से बाहर लाया गया था। उन्होंने पीठ से यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया कि ऐसा कोई आदेश नहीं है।
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