वनों के मसीहा के तौर पर आज भी याद किए जाते हैं Sunderlal Bahuguna, चिपको आंदोलन शुरू करके पूरी दुनिया से लूटी थी वाहवाही
पेड़ों को बचाने के लिए शुरु किये गए अपने चिपको चिपको अभियान से पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म आज ही दिन यानी 9 जनवरी 1927 को सिलयारा, उत्तराखंड में हुआ था। सुंदरलाल बहुगुणा एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् थे। जिसकी सुरक्षा के लिए उन्होंने चिपको आंदोलन से लेकर किसान आंदोलन तक का सफर तय किया
पेड़ों को बचाने के लिए शुरु किये गए अपने चिपको अभियान से पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म आज ही दिन यानी 9 जनवरी 1927 को सिलयारा, उत्तराखंड में हुआ था। सुंदरलाल बहुगुणा एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् थे। जिसकी सुरक्षा के लिए उन्होंने चिपको आंदोलन से लेकर किसान आंदोलन तक का सफर तय किया। सत्तर के दसक में सुन्दरलाल बहुगुणा ने गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की। इस आन्दोलन की शुरुआत तत्कालीन उत्तर प्रदेश से हुई थी। उस समय गढ़वाल हिमालय के क्षेत्रों में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ते जा रहे थे।
महज 13 वर्ष की उम्र में शुरू हुआ राजनीतिक सफर
महात्मा गांधी के अनुयायी बहुगुणा ने 13 वर्ष की उम्र में ही राजनीतिक सफर की शुरुआत कर ली थी। वर्ष 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा से बहुगुणा की मुलाकात हुई। यहीं से उनका आंदोलन का सफर शुरू हुआ। मंदिरों में दलितों को प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए प्रदर्शन करना शुरू किया। समाज के लोगों के लिए काम करने हेतु बहुगुणा ने 1956 में शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने का निर्णय लिया और अपनी पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से बहुगुणा ने पर्वतीय नवजीवन मण्डल की स्थापना की।
कैसे शुरू हुआ चिपको आंदोलन
उनका शुरू से ही नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। सुंदरलाल बहुगुणा की सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन को माना जाता है। 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया। 1970 में पर्यावरण सुरक्षा के लिए कई आन्दोलन शुरू हुए। पर्यावरण सुरक्षा के प्रति हुए आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगे जिसमें चिपको आंदोलन भी उसी का एक हिस्सा था। सुन्दरलाल बहुगुणा ने सत्तर के दशक में गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की। इस आन्दोलन की शुरुआत तत्कालीन उत्तर प्रदेश से हुई थी।
गढ़वाल हिमालय के क्षेत्रों में उस समय पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ते जा रहे थे। इस महान आन्दोलन की महत्वपूर्ण घटना 26 मार्च, 1974 को घटित हुई जब चमोली जिला की कुछ ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब कुछ आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए तथा लोग ऐसे ही कई तरह के शांतिपूर्ण तरीके से आन्दोलन में हिस्सा लेने लगे। 1980 की शुरुआत में सुन्दरलाल बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। 1981 to 1983 तक चले इस यात्रा के दौरान उन्होंने लोगों को इक्कठा किया, लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया, पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा दी तथा लोगों को इस आन्दोलन से जुड़ने के लिए आग्रह किया।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल चिपको आन्दोलन के कारण वृक्ष मित्र के नाम से पुरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गये तथा उनके कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका के फ्रेड ऑफ़ नेचर नामक संस्था ने उन्हें 1980 में सम्मानित किया था। 1980 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। परिणामस्वरूप इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दिया गया।
बहुगुणा को मिले पुरस्कार तथा सम्मान-
सुन्दरलाल बहुगुणा को उनके पर्यावरण सुरक्षा जैसे कई और सामाजिक कार्यों में नेतृत्व तथा योगदान के लिए कई राष्ट्रीय तथा अन्तर राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें प्रमुख हैं:
1980 में अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर इन्हें पुरस्कृत किया।
1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला तथा पर्यावरण को ‘स्थाई सम्पति’ मानने वाले सुन्दरलाल बहुगुणा को 'पर्यावरण गाँधी' कह कर संबोधित किया गया ।
1981 में सुन्दरलाल बहुगुणा को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया जिसे उन्होंने यह कह कर स्वीकार नहीं किया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ।
2000 में सांसदों के फोरम द्वारा सत्यपाल मित्तल एवार्ड।
2009 में सुन्दरलाल बहुगुणा को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
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