फ्रिज का पानी छोड़ अब लोगों को भा रहा मटके का पानी! कोरोना वायरस है बड़ा कारण
बाजारों में एक मिट्टी का घड़ा 150 से 200 तक के बीच में बिक रहा है वहीं नल लगे हुए मटकों की कीमत ज्यादा दामों में बिक रहा है। मटका बनाने वाले कुम्हारों का मानना है कि दिल्ली में फ्रिज के आने से मटका का तो नामो निशान तक हट गया था।
गरीबों का फ्रीज कहा जाने वाले मिट्टी का घड़ा अब इस महामारी में लोगों को काफी भा रहा है। आपको बता दें कि इस वक्त मटके वालों की चांदी हो रही है क्योंकि इनकी मांग काफी तेजी से बढ़ रही है। मटके की बिक्री पिछले साल की तुलना में दो-तीन गुणा और बढ़ गया है। मटकों की बढ़ती मांग से कुम्हार को काफी फायदा हो रहा है। बाजारों में एक मिट्टी का घड़ा 150 से 200 तक के बीच में बिक रहा है वहीं नल लगे हुए मटकों की कीमत ज्यादा दामों में बिक रहा है। मटका बनाने वाले कुम्हारों का मानना है कि दिल्ली में फ्रिज के आने से मटका का तो नामो निशान तक हट गया था और 7-8 सालों में मटके की बिक्री बिल्कुल न के बराबर थी।
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कोरोना के कारण बढ़ी मटको की मांग!
आपको बता दें कि पिछले साल कोरोना महामारी के कहर ने इन मटको की बिक्री तेजी से बढ़ाई। अब लोग फ्रिज के पानी से ज्यादा मटके के पानी को पीना पंसद कर रहे है। इस साल भी फ्रिज का पानी पीने से लोग कतरा रहे है, लोगों को डर है कि कहीं फ्रिज का पानी पीने से खांसी , जुखाम और सर्दी न हो जाए। खुदरा व्यापारी धर्मवीर के अनुसार, उत्तन नगर कुम्हार कॉलोनी मटके का होलसेल मार्केट है। इसी मार्केट से हर जगह मटके की सप्लाई की जाती है। आपको बता दें कि लोग नल वाले मटके खरीदना ज्यादा पंसद कर रहे है वहीं हफ्ते में करीब 400-500 मटके की बिक्री हो रही है।
बिक्री बढ़ी तो माल में आ रही रूकावट!
कुम्हारों का मानना है कि कई सालों से ठप पड़ा मटके का व्यापार अब जब तेजी पकड़ रहा है तो माल में कटौती आ रही है। मिट्टी के बर्तन में इस्तेमाल होने वाली खास मिट्टी होती है जिस काली या चिकनी मि्टटी कहा जाता है और यह हरियाणा के झज्जर के पास मिलता ही। लेकिन मिट्टी की मात्रा कम होने से माल कुम्हारो तक नहीं पहुंच पा रहा है। लॉकडाउन के कारण यह समस्या बढ़ती जा रही है।
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