रेप केस मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे शाहनवाज हुसैन, दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया था FIR का आदेश
शाहनवाज हुसैन की ओर से दलील दी गई है कि पुलिस ने प्राथमिक जांच में महिला की तरफ से लगाए गए आरोप को झूठा और निराधार पाया था। उन्होंने कहा है कि वह कई दशक से सार्वजनिक जीवन में हैं, अलग-अलग पदों पर रहकर सम्मान अर्जित किया है। जो मामला प्राथमिक जांच में ही झूठा पाया गया, उसमें अगर एफ आई आर दर्ज होती है तो उनकी छवि को नुकसान पहुंचेगी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री शाहनवाज हुसैन के लिए मुश्किलें आने वाले दिनों में बढ़ सकती है. दरअसल, आज दिल्ली हाईकोर्ट में 2018 के एक मामले में दिल्ली पुलिस को एफ आई आर दर्ज करने का आदेश दिया है और साथ ही साथ यह भी कहा है कि पूरे मामले की जांच 3 महीने में पूरी की जानी चाहिए। अब राहत के लिए शाहनवाज हुसैन सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुके हैं। शाहनवाज हुसैन की ओर से हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में अगले हफ्ते इस मामले की सुनवाई हो सकती है। शाहनवाज हुसैन की ओर से दलील दी गई है कि पुलिस ने प्राथमिक जांच में महिला की तरफ से लगाए गए आरोप को झूठा और निराधार पाया था। उन्होंने कहा है कि वह कई दशक से सार्वजनिक जीवन में हैं, अलग-अलग पदों पर रहकर सम्मान अर्जित किया है। जो मामला प्राथमिक जांच में ही झूठा पाया गया, उसमें अगर एफ आई आर दर्ज होती है तो उनकी छवि को नुकसान पहुंचेगी।
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दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता शाहनवाज हुसैन की निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका खारिज कर दी थी। निचली अदालत ने पुलिस को दुष्कर्म का आरोप लगाने वाली एक महिला की शिकायत पर हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति आशा मेनन ने बताया कि 2018 के निचली अदालत के प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने में कोई गड़बड़ी नहीं है और अंतरिम आदेश रद्द किया जाता है। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘ मौजूदा याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। याचिका खारिज की जाती है। अंतरिम आदेश रद्द किया जाता है। तुरंत प्राथमिकी दर्ज की जाए। जांच पूरी की जाए और सीआरपीसी (दण्ड प्रक्रिया संहिता) की धारा 173 के तहत विस्तृत रिपोर्ट तीन महीने के भीतर एमएम (मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट) के समक्ष प्रस्तुत की जाए।’’
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उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस की स्थिति रिपोर्ट में चार बार आरोप लगाने वाली महिला के बयान का संदर्भ दिया गया है, लेकिन प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गई इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। अदालत ने कहा, ‘‘प्राथमिकी तंत्र को सक्रिय बनाए रखती है। यह शिकायत में उल्लेखित अपराध की जांच के लिए एक आधार है। जांच के बाद ही पुलिस इस नतीजे पर पहुंच सकती है कि अपराध हुआ या नहीं और अगर किया गया तो किसने इसे अंजाम दिया। मौजूदा मामले में, पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने को लेकर पूरी तरह से अनिच्छुक नजर आ रही है।’’ दिल्ली की एक महिला ने 2018 में बलात्कार का आरोप लगाते हुए हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर निचली अदालत का रुख किया था। एक मजिस्ट्रेट अदालत ने सात जुलाई 2018 को हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा था कि मामला एक संज्ञेय अपराध से जुड़ा है।
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