Prabhasakshi Exclusive: क्या सचमुच अमेरिका से मिली गुप्त सूचना के चलते ही Tawang में China को पछाड़ पाया था भारत?
व्हाइट हाउस ने हालांकि उस खबर की पुष्टि करने से इंकार कर दिया है जिसमें दावा किया गया है कि अमेरिका ने पिछले साल भारतीय सेना को महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी मुहैया कराई थी जिससे उसे चीनी घुसपैठ से सफलतापूर्वक निपटने में मदद मिली।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी से जानना चाहा कि सेना ने चीन से लगती सीमा के पास हरित हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना क्यों बनाई है? इसके अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर और एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर ने कहा है कि लद्दाख में एलएसी पर चीन के साथ यथास्थिति बरकरार है लेकिन स्थिति तनावपूर्ण है। आने वाले समय में आप दोनों देशों के संबंधों को कैसे देखते हैं? इसके अलावा एक खबर में दावा किया गया है कि अमेरिका ने पिछले साल भारतीय सेना को महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी मुहैया कराई थी जिससे उसे चीनी घुसपैठ से सफलतापूर्वक निपटने में मदद मिली। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि सेना ने उत्तरी सीमाओं से लगे अग्रिम क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन आधारित माइक्रो ग्रिड ऊर्जा संयंत्र परियोजना की स्थापना के लिए एक प्रक्रिया शुरू की है। यह कदम चीन के साथ पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद के बीच आया है। यह परियोजना उन अग्रिम क्षेत्रों में क्रियान्वित की जा रही है, जो राष्ट्रीय या राज्य पावर ग्रिड से नहीं जुड़े हैं। सेना ने कहा है कि उसने पहल के लिए ‘नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड’ (एनटीपीसी आरईएल) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। दरअसल भारत ने चार जनवरी को राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को 2030 तक प्रतिवर्ष 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता विकसित करने के लिए 19,744 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ मंजूरी दी थी।
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उन्होंने कहा कि सेना का इस बारे में कहना है कि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत, भारतीय सेना ने उत्तरी सीमाओं के साथ लगे उन अग्रिम क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन आधारित माइक्रो ग्रिड ऊर्जा संयंत्र परियोजना की स्थापना की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो राष्ट्रीय/राज्य ग्रिड से जुड़े नहीं हैं। बयान में कहा गया है कि अपेक्षित भूमि बिजली खरीद समझौते के जरिये उत्पादित बिजली खरीदने की प्रतिबद्धता के साथ 25 साल के लिए पट्टे पर प्रदान की जा रही है। सेना ने कहा है कि प्रस्तावित परियोजनाएं एनटीपीसी द्वारा पूर्वी लद्दाख में संयुक्त रूप से चिह्नित स्थान पर ‘बनाओ, चलाओ और सौंप दो (बीओओ)’ मॉडल पर स्थापित की जाएंगी।
ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि दूसरी ओर, व्हाइट हाउस ने उस खबर की पुष्टि करने से इंकार कर दिया है जिसमें दावा किया गया है कि अमेरिका ने पिछले साल भारतीय सेना को महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी मुहैया कराई थी जिससे उसे चीनी घुसपैठ से सफलतापूर्वक निपटने में मदद मिली। व्हाइट हाउस में रणनीतिक संचार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के समन्वयक जॉन किर्बी ने खबर के बारे में पूछे जाने पर एक दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि नहीं, मैं इसकी पुष्टि नहीं कर सकता। दरअसल यूएस न्यूज ने एक विशेष खबर में दावा किया था कि भारत, अमेरिकी सेना के अभूतपूर्व खुफिया सूचना साझा करने के कारण पिछले साल के अंत में हिमालय के ऊंचाई वाले सीमा क्षेत्र में चीन की सैन्य घुसपैठ का जवाब दे पाया। उल्लेखनीय है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास नौ दिसंबर को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच संघर्ष और टकराव में दोनों पक्षों के कुछ सैनिक मामूली रूप से घायल हो गए थे।
उन्होंने कहा कि वहीं भारत और चीन के संबंधों की बात करें तो विदेश मंत्री जयशंकर के बाद अब उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ यथास्थिति बरकरार है और विभिन्न स्तरों पर बातचीत की जा रही है। देखा जाये तो एलएसी पर चीन के साथ यथास्थिति बरकरार है। विभिन्न स्तरों पर बातचीत की जा रही है और हमारी सभी टुकड़ियां उच्च स्तर पर तैयार हैं।
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