सीटें हुईं डबल फिर भी करारी हार, नई सपा के नारे से भी जनता रही खफा, कहां रह गई कमी
बेरोजगारी, मंहगाई और छुट्टा जानवरों की समस्याओं को उठाने और मुफ्त बिजली जैसे वादे के बाद भी अखिलेश आम जनता का भरोसा जीतने में कामयाब नहीं हो सके। लेकिन सपा अपनी सीटें जरूर दोगुनी करने में सफल हो गई है। ऐसे में आइए जानते हैं कि सीटें डबल करने के बावजूद क्यों समाजवादी पार्टी मुकाबले में पीछे रह गई?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजों की तस्वीर लगभग साफ हो गई है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी फिर से एक बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। वहीं तीन सीटों पर जीत के दावे करने वाली समाजवादी पार्टी को एक बार फिर से विपक्ष में बैठना पड़ेगा। बेरोजगारी, मंहगाई और छुट्टा जानवरों की समस्याओं को उठाने और मुफ्त बिजली जैसे लुभावने वादे करने के बाद भी अखिलेश यादव आम जनता का भरोसा जीतने में कामयाब नहीं हो सके। लेकिन सपा अपनी सीटें जरूर दोगुनी करने में सफल हो गई है। ऐसे में आइए जानते हैं कि सीटें डबल करने के बावजूद क्यों समाजवादी पार्टी मुकाबले में पीछे रह गई?
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2017 में समाजवादी पार्टी को 21.8 फीसदी वोट शेयर मिले थे। लेकिन इस बार पार्टी के वोट शेयर में 10 फीसदी का इजाफा किया है। सपा को करीब 32 फीसदी वोट शेयर मिला है। 2017 के मुकाबले सपा के जनाधार में बड़ा इजाफा देखने को मिला है। इसकी बड़ी वजह से बसपा के जनाधार का लगातार सिमटना है। वहीं समाजवादी पार्टी बसपा के वोट शेयर को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही है।
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अखिलेश यादव ने इस बार के चुनाव को लेकर नई सपा का नारा दिया था और बीजेपी व विरोधियों द्वारा गढ़ी गई अपनी पुरानी छवि को तोड़ने की कोशिश की। सपा को गुंडों की पार्टी मायावती के तरफ से दशकों से कहा जाता रहा है। इसी क्रम में बीजेपी भी लगातार हमलावर रही। ऐसे में सपा की ओर से जेल में बंद कुछ नेताओं और दागी-बाहुबली प्रत्याशियों को उतारना आत्मघाती साबित हुआ।
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साल 2008 में हुए अहमदाबाद सीरीयल धमाकों में एक सपा नेता के बेटे को दोषी पाए जाने के बाद भाजपा ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को चौतरफा घेरना शुरू कर दिया। भाजपा ने आतंकी के पिता के साथ अखिलेश की तस्वीर दिखाते हुए उन्हें आतंकियों का हमदर्द बताया। पीएम मोदी से लेकर सीएम योगी तक ने इस मुद्दे पर अखिलेश यादव को घेरना शुरू कर दिया।
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