Ramadan के दौरान कश्मीर में Sahar Khan की भूमिका हो जाती है अहम, सहरी के लिए लोगों को ढोल बजाकर जगाते हैं
दरअसल कश्मीर की सदियों पुरानी संस्कृति है कि यहां एक वर्ग पारम्परिक रूप से सुबह ढोल या ड्रम लेकर गलियों में निकलता है और अपने वाद्य यंत्र के माध्यम से लोगों को नींद से जगाता है ताकि लोग समय पर सहरी का सेवन कर सकें।
रमजान के पाक महीने में सूरज निकलने के बाद से सूरज छिपने तक कुछ नहीं खाया जाता। ऐसे में रोजेदारों के लिए यह जरूरी होता है कि वह सुबह होने से पहले कुछ भोजन कर लें ताकि दिन भर का कामकाज चल सके। इसलिए लोग अल सुबह उठने के लिए अलार्म लगाते हैं या सुबह उठने के लिए मस्जिद के लाउडस्पीकर की आवाज पर निर्भर होते हैं लेकिन कश्मीर में इन सबके अलावा यह भूमिका सहर खान भी निभाते हैं। दरअसल कश्मीर की सदियों पुरानी संस्कृति है कि यहां एक वर्ग पारम्परिक रूप से सुबह ढोल या ड्रम लेकर गलियों में निकलता है और अपने वाद्य यंत्र के माध्यम से लोगों को नींद से जगाता है ताकि लोग समय पर सहरी का सेवन कर सकें। यह काम करने वालों को सहर खान कहा जाता है।
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प्रभासाक्षी संवाददाता ने श्रीनगर में 55 वर्षीय इरफान गनी से बात की जोकि सुबह श्रीनगर की गलियों में अपने ढोल को जोर से बजाते हुए निकलते हैं। उन्होंने कहा कि मैं रमजान में यह भूमिका निभाने के लिए इस समय का साल भर इंतजार करता हूँ वहीं स्थानीय लोगों ने कहा कि यह ढोल वादक कश्मीरी संस्कृति का अहम हिस्सा हैं और रमजान ढोलक के बिना, रमजान अधूरा है।
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