एक साल में अर्श से फर्श पर पहुंची कांग्रेस, निकाय चुनाव में किया था सूपड़ा साफ और अब 20 सीटें जीतने के भी पड़े लाले
कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पार्टी के भीतर चल रहे अंतर्कलह की वजह से हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह नहीं चाहते थे कि नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाए। लेकिन पार्टी आलाकमान ने उनकी बातों को दरकिनार कर सिद्धू का कद बढ़ाया और मनमर्जी करने की छूट दे दी।
जालंधर। पंजाब में विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आ रहे हैं लेकिन निकाय चुनाव के परिणाम शायद ही कोई भूल पाया है। एक साल पहले निकाय चुनाव हुए थे और उसमें कांग्रेस ने सभी सातों नगर निगम में अपना परचम लहराया था लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी काफी पीछे रह गई और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अपनी-अपनी सीटों से पिछड़ रहे हैं।
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क्यों हार रही है कांग्रेस ?
कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पार्टी के भीतर चल रहे अंतर्कलह की वजह से हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह नहीं चाहते थे कि नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाए। लेकिन पार्टी आलाकमान ने उनकी बातों को दरकिनार कर सिद्धू का कद बढ़ाया और मनमर्जी करने की छूट दे दी। जिसकी वजह से अपमानित होकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और फिर पार्टी को भी अलविदा कहा।
निकाय चुनाव के वक्त प्रदेश की कमान कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास थी लेकिन विधानसभा चुनाव होते-होते चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बन गए और उनके साथ भी सिद्धू की तू-तू मैं-मैं होती रही। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री दांवेदार किसी बनाया जाए। इसको लेकर भी पार्टी असमंजस में से थी मगर दलित कार्ड खेलते हुए चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया।
नाखुश थे प्रदेश नेता
विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब में कांग्रेस अपनी पकड़ को लगातार गंवाती गई। कई मोर्चों पर तो उन्हें अपनी ही पार्टी नेताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ा। कभी सुनील जाखड़ का मुख्यमंत्री न बन पाने पर दर्द झलका तो कभी प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक मामले में नेता आमने-सामने हो गए।
इसके अलावा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब जालंधर में पहली रैली को संबोधित किया तो उस वक्त पार्टी के 5 कद्दावर नेताओं ने दूरियां बनाई हुई थी। हालांकि बाद में यह बात निकलकर आई कि पार्टी नेताओं ने उन्हें आमंत्रित ही नहीं किया था। इन नेताओं मनीष तिवारी और नवनीत बिट्टू इत्यादि शामिल थे।
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बड़बोले बयानों के चलते हुए हुआ नुकसान
पंजाब में हिंदू और सिख का मुद्दा उठाने की भी कोशिश की गई लेकिन मनीष तिवारी ने स्पष्ट कर दिया कि यहां पर ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। अगर होता तो मैं आनंदपुर साहिब से सांसद नहीं होता। इसके अतिरिक्त कांग्रेस को सही नसीहत देने वाले नेताओं से पार्टी ने धीरे-धीरे दूरियां बनाने की कोशिश की। मुख्यमंत्री चन्नी के भैया वाले बयान पर भी काफी बवाल हुआ। इस दौरान मुख्यमंत्री चन्नी के साथ पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद थीं।
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