भोपाल गैस त्रासदी की 36 वीं बरसी पर मानव श्रृंखला बनाकर किया विरोध प्रदर्शन
संगठनों ने केंद्र और प्रदेश की सरकारों पर अपराधी कम्पनी से सही मुआवज़ा हासिल नहीं करने और पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया।
भोपाल। भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे की 36 वीं बरसी के उपलक्ष्य में आज गैस पीड़ितों के चार संगठनों ने पीड़ितों की बिगड़ती स्वास्थ्य और स्थानीय मिट्टी और भूजल में जारी प्रदूषण के लिए अमरीका की डाव केमिकल कम्पनी का कानूनी ज़िम्मेदारी से भागने की तीव्र भत्सना की है। संगठनों ने केंद्र और प्रदेश की सरकारों पर अपराधी कम्पनी से सही मुआवज़ा हासिल नहीं करने और पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया। भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले इन संगठनों ने यूनियन कार्बाइड कारखाने पास मानव श्रृंखला बनाकर और डाव कैमिकल का पुतला जलागकर अपना रोश प्रगट किया।
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इस दौरान भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्षा रशीदा बी ने कहा कि " सन 2005 में डाव केमिकल का भारत के बाज़ार में मात्र 2.5 % हिस्सा था, जबकि 2015 से इस कम्पनी का भारतीय बाज़ार में हिस्सा बढ़ता जा रहा है और फिलहाल यह आँकड़ा 22 % तक पहुँच गया है। यह तय है की इस विदेशी कम्पनी का हमारे प्रधानमन्त्री के साथ करीबी की वजह से ही ऐसा हो रहा है। इस बीच पिछले दिसम्बर से गैसकाण्ड की वजह से विधवा हुई पाँच हज़ार महिलाओं की एक हज़ार रूपए की मासिक पेन्शन प्रदेश सरकार के द्वारा बंद कर दिया गया है ।"
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मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कोरोना महामारी से मारे गए गैस पीड़ितों के झूठे आँकड़े पेश करने का आरोप लगाते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एन्ड एक्शन की रचना धींगरा ने कहा, "हम सरकारी अधिकारियों को चुनौती देते हैं की वे ऐसा एक सबूत पेश करें कि पिछले 36 सालों में हमने कभी तथ्यात्मक और वैज्ञानिक आधार के बगैर कोई बात कही हो। यह वही पुराना सरकारी छल है, हादसे की वजह से हुई मौतों और पीड़ितों को हुई बीमारियों के बारे में सरकारी अधिकारी गैस काण्ड की सुबह से ही झूठ बोलते आ रहे हैं। मौतों का सरकारी आँकड़ा वास्तविक आँकड़े से पाँच गुना कम है और 90 % से अधिक गैस पीड़ितों के बारे में यह बताया जा रहा है की उन्हें सिर्फ एक बार अस्पताल जाना पड़ा।"
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वही भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने कहा,"पिछले दस सालों में केंद्र तथा प्रदेश सरकारों के अधिकारियों ने हमें सर्वोच्च न्यायालय में अमरीकी कम्पनियों से अतिरिक्त मुआवज़ा के लिए लंबित सुधार याचिका में मौतों और बीमारियों के आँकड़े सुधारने का लिखित आश्वासन दिया है | पर इन आश्वासनों को कभी पूरा नहीं किया गया। दूसरी तरफ गैसकाण्ड के दूरगामी प्रभाव पर सरकारी चिकित्सीय शोध या तो बंद कर दिया गया है या दबा दिया गया है| गैसजनित पुरानी बीमारियों का इलाज आज भी लाक्षणिक दवाओं से हो रहा है, पीड़ितों के पुनर्वास का काम बंद पड़ा है और मिट्टी और भूजल की ज़हर सफाई के लिए कोई सरकारी योजना तक नहीं है।
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जबकि डाव कार्बाइड के खिलाफ बच्चे संगठन की नौशीन खान ने कहा कि "भोपाल के गैस पीड़ितों और दुनिया भर में औद्योगिक प्रदूषण से बीमार लोगों पर कोरोना महामारी के भयावह असर ने रसायन कम्पनियों पर कानूनी शिकंजा कसने की ज़रुरत को बड़े शिद्दत से रेखांकित किया है। पिछले 36 सालों में भारत और अमरीका की न्याय व्यवस्था यूनियन कार्बाइड और डाव केमिकल से क़ानून का पालन करवाने में नाकाम साबित हुई है। भोपाल में जारी अन्याय और बदहाली से कम्पनियों को मानवता और पर्यावरण के खिलाफ अपराध जारी रखने का प्रोत्साहन मिल रहा है।"
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