लोकतंत्र की हत्या करने वाले परिवार के इशारे पर हुआ प्रेस की आजादी पर हमला : विष्णुदत्त शर्मा
शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र में अभिव्यक्ति की आजादी पर यह प्रहार महाराष्ट्र सरकार ने कांग्रेस के इशारे पर किया है। कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि वह लोकतंत्र को कुचलने में संकोच नहीं करती। 1975 में जब देश में आपातकाल लगाया गया था
भोपाल। महाराष्ट्र में पत्रकार अर्नब गोस्वामी के साथ जिस तरह दुव्यर्वहार किया है, जिस तरह उन्हें और उनके परिवार को शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया है, महाराष्ट्र सरकार और पुलिस की इस कार्रवाई ने इंदिरा गांधी के कार्यकाल की याद दिला दी। जिस तरह से कांग्रेस के एक परिवार ने 1975 में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र की हत्या की थी, आज भी उसी परिवार के इशारे पर महाराष्ट्र सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का प्रयास किया है। महाराष्ट्र सरकार, कांग्रेस पार्टी और महाराष्ट्र पुलिस को अपने इस व्यवहार के लिए देश को जवाब देना होगा। यह बात भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी से पुलिस के दुर्व्यवहार की निंदा करते हुए कही।
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आतंकियों का सत्कार, पत्रकार को प्रताड़ना
शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार और वहां की पुलिस आतंकियों का तो लाल कालीन बिछाकर स्वागत करती है। उन्हें जेल में सुविधाएं उपलब्ध कराती है। अजमल कसाब जैसे हत्यारे को बिरयानी खिलाती है। लेकिन एक पत्रकार उसके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार करती है, गिरफ्तार करती है। शर्मा ने कहा कि पत्रकार अर्नब गोस्वामी का कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने पालघर मामले को उठाया, अभिनेता सुशांत सिंह की कथित आत्महत्या के मामले को उठाया। शर्मा ने कहा कि सिर्फ इसलिए पुलिस और सरकार एक पत्रकार से आतंकवादियों से भी बुरा व्यवहार करती है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार और पुलिस को यह बताना होगा कि उन्हें प्रेस का गला घोंटने का यह अधिकार किसने दिया?
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लोकतंत्र को कुचलना कांग्रेस का इतिहास
शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र में अभिव्यक्ति की आजादी पर यह प्रहार महाराष्ट्र सरकार ने कांग्रेस के इशारे पर किया है। कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि वह लोकतंत्र को कुचलने में संकोच नहीं करती। 1975 में जब देश में आपातकाल लगाया गया था, तब भी पूरे प्रेस को जेल में डाल दिया गया था तथा लेखनी और आवाज को दबाने का प्रयास किया गया था। शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस की यह कार्रवाई एक पत्रकार के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह समूचे प्रेस की आजादी पर हमला है और इस तरह का व्यवहार कभी भी, किसी भी मीडिया संस्थान या पत्रकार के साथ हो सकता है। इसलिए देश के सभी पत्रकारों को एकजुट होकर महाराष्ट्र सरकार की इस कार्रवाई का विरोध करना चाहिए।
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