Prajatantra: Manipur को लेकर कटघरे में क्यों Modi Govt, राजनीति छोड़ समाधान ढूंढने पर देना होगा जोर
मणिपुर को लेकर कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल भाजपा पर हमलावर है। कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए जा रहे हैं। मणिपुर के 10 विपक्षी दलों के नेताओं ने राज्य के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह पर ही हिंसा का सूत्रधार होने का आरोप लगा दिया है।
पूर्वोत्तर में संघर्षों का एक लंबा इतिहास रहा है। हालांकि पिछले 5-7 वर्षों की बात करें तो जहां शांति लाने की कोशिश लगातार जारी है। लेकिन जिस तरीके से मई महीने के पहले सप्ताह से मणिपुर में हिंसा का दौर जारी है, उसने कहीं ना कहीं चिंताएं एक बार फिर से बढ़ा दी हैं। बड़ा सवाल यह है कि आखिर मणिपुर में पिछले डेढ़ महीने से ज्यादा वक्त से हिंसा का दौर क्यों जारी है। इसको लेकर राजनीति भी खूब हो रही और सवाल भी उठ रहे हैं कि ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं?
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मणिपुर के जटिल हालात के कारण क्या है
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘जनजातीय एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद ये झड़पें शुरू हुई थीं। मणिपुर के 10% भूभाग पर मेइती जनजाति समुदाय का दबदबा देखने को मिलता है। मणिपुर की कुल आबादी के लिहाज से इस समुदाय की हिस्सेदारी 64 फ़ीसदी से ज्यादा का है। इसका मतलब साफ है कि इस समुदाय का राजनीतिक दबदबा भी है। 60 विधायकों में से 40 विधायक किसी समुदाय से आते हैं। इस समुदाय का बड़ा हिस्सा हिंदू धर्म को मानता है। इसमें कुछ मुस्लिम बिरादरी के भी हैं। मणिपुर में 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला हुआ है। इसमें नागा और कुकी जनजाति मुख्य रूप से आते हैं। यह ईसाई धर्म का पालन करते हैं। अब मेइती समुदाय भी जनजाति का दर्जा की मांग कर रहा है। यही कारण है कि इस को लेकर बवाल मचा हुआ है। हालांकि मणिपुर के जनजाति समूहों को लगता है कि अगर मेइती को यह दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों में अवसर कम हो जाएंगे और पहाड़ों पर जमीन भी खरीदना भी शुरू कर सकते हैं जिससे कि उनके लिए मुश्किलें और बड़ सकती हैं। इस हिंसा में अब तक करीब 100 लोगों की मौत हुई है और 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
फेल हो रहे सरकार के कदम
मणिपुर में हिंसा शुरू होने के बाद से ही कोई ठोस कदम उठाए गए हैं। लोगों से शांति की अपील की जा रही है। उपद्रवी तत्व को निशाने पर लिया जा रहा है। खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने अलग-अलग समुदायों से मुलाकात की थी। सब की समस्याओं को जानने समझने का प्रयास किया था। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह भी इसमें लगातार लगे हुए हैं। बावजूद इसके मणिपुर में अब तक शांति बहाल नहीं हो सकी है। आलम यह है कि हाल में ही मणिपुर में शानदार जीत हासिल करने वाली भाजपा अब लोगों के निशाने पर आ गई हैं। भाजपा नेताओं के घरों को निशाना बनाया जा रहा है। यही कारण है कि अब साफ तौर पर लग रहा है कि मणिपुर में भाजपा नेताओं से उम्मीदें लोगों के कम हो गई है।
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कांग्रेस सहित विपक्ष का आरोप
मणिपुर को लेकर कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल भाजपा पर हमलावर है। कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए जा रहे हैं। मणिपुर के 10 विपक्षी दलों के नेताओं ने राज्य के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह पर ही हिंसा का सूत्रधार होने का आरोप लगा दिया है। इन नेताओं ने साफ तौर पर कहा है कि नरेंद्र मोदी को इस मामले में दखल देना चाहिए ताकि जातीय हिंसा से पैदा हुए संकट का समाधान सुनिश्चित हो सके। आरोप लगाया जा रहा है कि मणिपुर में डबल इंजन की सरकार पूरी तरीके से विफल हो गई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि आज मणिपुर के भाजपा विधायकों के एक समूह ने रक्षा मंत्री से मुलाकात की। मणिपुर के भाजपा विधायकों का एक और समूह प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपने गया, जिसमें कहा गया है कि लोगों का राज्य प्रशासन में विश्वास पूरी तरह से खत्म हो गया है। इसका सार है कि मुख्यमंत्री को बदलना होगा...। रमेश ने कहा कि मणिपुर में खुद भाजपा एकजुट नहीं है। यही कारण है कि आज राज्य बुरी तरह से विभाजित है। प्रधानमंत्री को परवाह ही नहीं है। विपक्ष आरएसएस को भी निशाने पर ले रहा है।
मणिपुर की राजनीति
मणिपुर में कुकी और मेइती समुदाय के बीच मैत्री संबंध भी रहे हैं। दोनों के बीच व्यापारिक रिश्ते भी रहे हैं। लेकिन आज के समय में स्थिति ऐसी है कि दोनों एक दूसरे के कट्टर विरोधी बने हुए हैं। राजनीतिक लिहाज से देखें तो मणिपुर में मेइती काफी महत्वपूर्ण है। 60 विधायकों में से 40 विधायक में मेइती समुदाय से ही हैं। बाकी के बीच नगा और कुकी जनजाति से आते हैं। अब तक मणिपुर के 12 मुख्यमंत्रियों में से 2 जनजाति समुदाय से भी रहे हैं। हाल में ही केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता आरके रंजन सिंह ने साफ तौर पर कहा था कि मणिपुर में राज्य सरकार विफल हो गई है। मणिपुर में लोकसभा की 2 सीटें हैं। एक पर भाजपा का कब्जा है जबकि दूसरे सीट पर एनपीएफ ने जीत हासिल की थी। मणिपुर में हिंसा के बाद से बीजेपी के लिए स्थितियां लगातार कमजोर हो रही है। 2024 चुनाव में पूर्वोत्तर में अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए भाजपा को हर हाल में वहां स्थितियों को नियंत्रण में लाने की कोशिश करनी चाहिए। हिंसा की वजह से भाजपा नेता आम लोगों के निशाने पर भी हैं।
फिलहाल मणिपुर हिंसा को लेकर चौतरफा बीजेपी गिरी हुई है। अपने भी बीजेपी पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। राजनीतिक लिहाज से भले ही मणिपुर छोटा राज्य हो लेकिन देश और पूर्वोत्तर की शांति के लिए वहां हिंसा रुकना बेहद जरूरी है। इसका बड़ा कारण यह है कि पूर्वोत्तर देश का छोटा हिस्सा है जो कि कई राष्ट्रों के साथ अपने बॉर्डर साझा करता है। देश की एकता अखंडता को बनाए रखने के लिए पूर्वोत्तर के शांति बना रहना चाहिए।
मणिपुर हिंसा को लेकर बीजेपी पर हम लोग के तीर चल रहे हैं। वही, सरकार का दावा है कि स्थिति पर काबू पाने के लिए हर तरीके से प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, सवाल यह भी है कि अब हिंसा क्यों नहीं रूकी, क्या हिंसा को लगातार किसी की ओर से भड़काने की कोशिश की जा रही ताकि इसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। विपक्षी दल मणिपुर हिंसा को लेकर सवाल तो उठा रहे हैं लेकिन उनके पास भी इसके समाधान को लेकर ठोस उपाय दिख नहीं रहा। संवेदनशील मद्दे पर भी राजनीति ठीक नहीं लगती पर यह बात भी सच है कि ऐसे मामले में राजनीति ना हो इसकी उम्मीद कम ही रहती है। यही तो प्रजातंत्र है।
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