पंजाब में बेअदबी मामले पर जमकर होती है राजनीति, पिछले चुनाव में अमरिंदर ने पलटा था पासा
अनुराग गुप्ता । Jan 11 2022 6:52PM
हाल के दिनों में पंजाब में बेअदबी के दो मामले सामने आए हैं। ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों ने बेअदबी मामले में नाप-तौल पर ही अपनी बात रखी है और किसी ने भी लिंचिंग की आलोचना तक नहीं की। जिससे साफ-साफ समझा जा सकता है कि चुनाव के वक्त यह कितना संवेदनशील मुद्दा है।
चंडीगढ़। पंजाब समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बिगुल बज गया है। ऐसे में राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी कमर कस ली है क्योंकि कोरोना महामारी के बीच होने वाले चुनावों में फिजिकल नहीं वर्चुअल माध्यमों से नेता मतदाताओं को लुभाने की कोशिशों में जुट गए हैं। इसी बीच हम पंजाब की बात करेंगे, जहां पर सत्ता हमेशा कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के आस-पास ही रही है। साल 2017 में मोदी लहर के बावजूद अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि इस बार अमरिंदर सिंह खुद की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं।
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बेअदबी का मामला छाया
हाल के दिनों में पंजाब में बेअदबी के दो मामले सामने आए हैं। ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों ने बेअदबी मामले में नाप-तौल पर ही अपनी बात रखी है और किसी ने भी लिंचिंग की आलोचना तक नहीं की। जिससे साफ-साफ समझा जा सकता है कि चुनाव के वक्त यह कितना संवेदनशील मुद्दा है। क्योंकि पिछले चुनाव में बेअदबी मामले को लेकर ही अमरिंदर सिंह ने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को निशाने पर लिया था और उनकी हैट्रिक छीन ली थी।राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि पंजाब में धर्म और राजनीति एकसाथ चलती है। पिछले चुनाव में शिअद-भाजपा गठबंधन बेअदबी मामले की वजह से ही हार गया। इसके अलावा प्रदेश में एंटी इनकंबेंसी भी थी। साल 2015 में फरीदकोट जिले के जवाहरसिंह वाला गांव के स्थानीय गुरुद्वारे से गुरू ग्रंथ साहिब का सरूप गायब हो गया था। उस वक्त प्रकाश सिंह बादल सरकार ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। लेकिन यह जांच बेनतीजा साबित हुई। तब से लेकर अब तक प्रदेश में बेअदबी के बहुत से मामले सामने आ चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, बेअदबी के सबसे ज्यादा मामले पंजाब में ही सामने आते हैं। साल 2017 से लेकर 2020 तक प्रदेश में कुल 721 मामले सामने आए।राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार के अलावा सबसे बड़ा मुद्दा धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी का था। उस वक्त कांग्रेस ने प्रदेश की जनता से वादा किया था कि वो इस बेअदबी मामले की जड़ तक जाएगी, लेकिन पार्टी को खुद अपने ही नेता के सवालों का कई बार सामना करना पड़ा है। माना जा रहा है कि राजनीतिक दल इस बार भी बेअदबी मामलों को सियासी रंग देने की कोशिश करेंगे। क्योंकि अमृतसर और फिर कपूरथला की घटना को लेकर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने साजिश की बात कही थी। इसके अलावा विपक्ष भी यही बात करता रहा है।इसे भी पढ़ें: कौन बनेगा पंजाब का अगला कप्तान? एक चरण में 14 फरवरी को होगा मतदान, जानें पूरा चुनावी कार्यक्रम
कानून बनाने की कोशिशें भी हुईं ?
साल 2015 से राजनीति के केंद्र में बने बेअदबी मामलों को रोकने के लिए शिअद-भाजपा सरकार ने एक विधेयक पारित किया था। जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान करने वाले के खिलाफ आजीवन कारावास का प्रावधान था लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने धर्मनिरपेक्षता का हवाला देते हुए इसे लौटा दिया था। इसके अलावा साल 2018 में कांग्रेस सरकार ने भी कोशिश की थी, जो सफल नहीं हुई।सिखों का मानना है कि बेअदबी मामले में अगर आरोपी को दोषी करार दिया भी जाता है तो उस पर आईपीसी की धारा 295 और 295ए लगती है। जिसमें अधिकतम 3 साल की सजा का प्रावधान है। जिसे सिख समुदाय पर्याप्त नहीं मानता है। अमृतसर और कपूरथला में हुई बेअदबी को लेकर सिख समुदाय काफी आक्रोशित है। ऐसे में राजनीतिक दल इसका फायदा उठाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं।We're now on WhatsApp. Click to join.
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