Prabhasakshi Exclusive: Russia-Ukraine War जिस मोड़ पर पहुँच गया है उसको देखते हुए अब PM Modi ही कुछ करके दिखाएंगे
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, मोदी ने अमेरिका यात्रा से पहले और अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए जिस तरह शांति का पक्ष एक बार फिर लिया है उससे संकेत मिलता है कि मोदी के स्तर पर संभवतः शांति का कोई प्रयास चल रहा है।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से हमने जानना चाहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध में वर्तमान में क्या स्थिति है? ऐसी खबरें भी आईं कि यूक्रेन ने अपने कुछ गांव रूस से वापस लिये हैं। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस संबंध में बयान दिया है। इसे कैसे देखते हैं आप? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यूक्रेन की ओर से एक-दो गांव वापस ले लेना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। यह युद्ध जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है उसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है। अमेरिका, नाटो और यूक्रेन के अन्य समर्थक देश भी अब मदद दे देकर थक चुके हैं। इसके अलावा नाटो के कई हथियारों को रूस जिस तरह से विफल कर रहा है उससे उन देशों की सरकार की चिंता बढ़ गयी है क्योंकि अभी तक वह जिन हथियारों को अजेय मानते थे वह बुरी तरफ विफल हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ‘यूक्रेन रिकवरी समिट’ का जो आयोजन किया उसमें उन्होंने कहा कि यूरोपीय पड़ोसी देश में मचाई गई तबाही के लिए रूस को अवश्य ही क्षतिपूर्ति करनी होगी। उन्होंने यूक्रेन को ब्रिटिश सरकार की ओर से तीन अरब अमेरिकी डॉलर की ऋण गारंटी की भी घोषणा की। सुनक ने यू्क्रेन की समझ-बूझ की सराहना की और देश के ऊर्जा ग्रिड को नष्ट करने की कोशिश करने को लेकर रूस पर प्रहार भी किया। बताया जा रहा है कि कुल 1,600 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के वार्षिक राजस्व के साथ यूक्रेन के पुनर्निर्माण में सहयोग करने का संकल्प लिया गया है।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, यूक्रेन में रूस के युद्ध के सबसे उल्लेखनीय पहलुओं में से एक है निजी सैन्य कंपनियों पर मास्को की बढ़ती निर्भरता। हालांकि, यह बात भी अहम है कि निजी सैन्य समूहों पर नियंत्रण के क्रेमलिन के प्रयास उनकी आपसी प्रतिद्वन्द्विता खत्म नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन अंतत: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इससे फायदा ही हो रहा है। इस युद्ध में वैगनर ग्रुप का नाम बार-बार आया है, जो एक निजी सैन्य कंपनी है। येवगेनी प्रिगोझिन के नेतृत्व में वैगनर ग्रुप जैसी ताकतों को सबसे भीषण लड़ाई का खामियाजा भुगतना पड़ा है, खासकर बखमुत के लिए खूनी लड़ाई के दौरान। यहां उसने बड़ी संख्या में अपने लड़ाकों को खोया। क्रेमलिन यूक्रेन में अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए एक ओर जहां सभी विकल्पों की जांच-परख कर रहा है, वहीं वह सेना में आम लोगों की अनिवार्य भर्ती का कदम भी टालना चाहता है। इसे देखते हुए निजी सैन्य कंपनियों को नियंत्रण में लेने से पुतिन को फायदा ही होगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका यात्रा से पहले और अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए जिस तरह शांति का पक्ष एक बार फिर लिया है उससे संकेत मिलता है कि प्रधानमंत्री मोदी के स्तर पर संभवतः शांति का कोई प्रयास चल रहा है। इससे पहले चीन और कई अन्य देश शांति का प्रयास कर चुके हैं लेकिन वह प्रयास विफल रहे। संभवतः भारत किसी ऐसे फॉर्मूले पर काम कर रहा है जिस पर रूस और यूक्रेन, दोनों को राजी किया जा सके।
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